एक व्यापार को समाप्त करने के लिए संकेत

एक व्यापार को समाप्त करने के लिए संकेत
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औद्योगिकरण का युग1hw
हुगली और सूरत के बंदरगाहों से .
Solution : (i) नए बंदरगाहों के बढ़ते महत्व औपनिवेशिक सत्ता की बढ़ती शक्ति का संकेत था। (ii) बम्बई और कलकता के नये बंदरगाहों से व्यापार यूरोपीय देशों के नियंत्रण में था। (iii) माल यूरोपीय जहाजों के द्वारा ले जाता जाता था।(iv) पुराने व्यापारिक घराने प्रायः समाप्त हो चुके थे जो बच गए थे उनके पास यूरोपीय कंपनियों के नियंत्रण वाले नेटवर्क में काम करने के अलावा और कोई चारा नहीं था।
एक व्यापार को समाप्त करने के लिए संकेत
कुछ वर्षों पहले बहु-ब्रांड खुदरा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को लेकर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने एक बड़ा दांव चला। यहां तक कि वह गठबंधन के एक प्रमुख सहयोगी तृणमूल कांग्रेस के समर्थन वापस लेने पर भी नहीं झुकी और तृणमूल तो सरकार से अलग भी हो गई। फिर भी संप्रग सरकार ने इस कानून में समझौते की गुंजाइश छोड़ दी, खासतौर से यह कहते हुए कि किसी जगह बहु-ब्रांड खुदरा में एफडीआई का अंतिम फैसला राज्य सरकारों का होगा, इससे इस सुधारवादी कदम की धार कम हो गई।
यह उल्लेख करना महत्त्वपूर्ण होगा कि बहु-ब्रांड खुदरा में एफडीआई का बुनियादी मकसद बेहद अहम बैक-एंड आपूर्ति शृंखला में अधिक मुद्रा के प्रवाह को सुनिश्चित करना था। भारत की खस्ताहाल आपूर्ति शृंखला कई आपूर्तिगत बाधाओं के लिए जिम्मेदार है और इसका सामान्य तौर पर लंबे समय से कायम असहज मुद्रास्फीति में भी अहम योगदान रहा है। कोई बहु-ब्रांड खुदरा शृंखला, जितने बड़े पैमाने पर अपना संचालन करना चाहेगी, उसे उसी स्तर की आपूर्ति शृंखला का निर्माण और संचालन करना होगा, ऐसे में इसका निर्धारण राज्यों द्वारा करने की मंजूरी देना इस कानून की भावना के खिलाफ रहा।
यह भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने भी बहु-ब्रांड खुदरा मसले पर राजनीतिक रुख अपना लिया। इसका अर्थ यही है कि कई भाजपा शासित राज्यों ने इसके फायदों को नजरअंदाज कर दिया। इसके अतिरिक्त इस नीति के साथ कई अनिश्चितताएं भी जुड़ गईं क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि आम चुनाव में जीत के बाद वह इस नीति को पलट देगी, निश्चित रूप से पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में कमोबेश यही संकेत दिखता है कि पार्टी विरोध में है। इस घटनाक्रम का एक दुर्भाग्यपूर्ण नतीजा अब भारत की व्यापार वार्ताओं में भी नजर आ रहा है। इसी समाचार पत्र में गत सप्ताह प्रकाशित एक समाचार के अनुसार भारत और दक्षिणपूर्व एशियाई देशों (आसियान) के साथ हुए एक मुक्त व्यापार समझौते (एफटीएम) में दरार पड़ती दिख रही है। यह स्थिति बहु-ब्रांड खुदरा में एफडीआई को लेकर भारत के भ्रमित रवैये को लेकर उत्पन्न हुई।
परिणामस्वरूप आसियान के दो महत्त्वपूर्ण देश थाईलैंड और इंडोनेशिया भारत के साथ सेवाओं के मुक्त व्यापार के अनुबंध को समाप्त करने पर जोर दे रहे हैं। कथित तौर पर वे अपनी कंपनियों को समूचे भारत में निवेश की मंजूरी दिए जाने को लेकर दबाव बना रहे हैं। दोनों देशों में खुदरा क्षेत्र शानदार स्थिति में है और खासतौर से मुद्रास्फीति से संघर्ष करने में इंडोनेशियाई शृंखलाओं की विशेषज्ञता भारत के लिए खासी उपयोगी होगी। हालांकि भारत की दुविधा, कमजोरी और सुधारों को लेकर ढुलमुल रवैये ने थाईलैंड और इंडोनेशिया को एफटीए की मंजूरी को लटकाए रखने पर मजबूर किया है।
वहीं अपने निर्यात को बढ़ाने और आंतरिक क्षेत्र को स्थायित्व प्रदान करने के लिए भारत को दक्षिणपूर्व एशिया के बड़े बाजार की दरकार है, जो भारत के गतिशील सेवा क्षेत्र के लिए अपने द्वार खोले रखे। अब यह संभव होता नहीं दिख रहा। यह एक स्वरूप (पैटर्न) का हिस्सा है। अतीत में सुधारों को लेकर चिंतित नजरिया और घरेलू स्तर पर एक साथ कई पक्षों को खुश करने की कवायद के चलते भारतीय निर्यात की राह बड़े स्तर पर बाधित रही। उदाहरण के तौर पर यूरोपीय संघ के साथ भारत का बेहद आवश्यक एफटीए इस वजह से रुक गया क्योंकि भारत के वाहन, सूचना प्रौद्योगिकी और दवा क्षेत्रों के लिए बहुत ज्यादा मांगें की जा रही थीं। भारत को अपना निर्यात मोर्चा दुरुस्त रखने की जरूरत है। यह सुनिश्चित करने के लिए उसे निश्चित तौर पर व्यापार वार्ताओं को सही दिशा में आगे बढ़ाना होगा और घरेलू सुधारों को विभिन्न हित समूहों और सियासत से दूर रखना होगा, तभी सही नतीजे मिल पाएंगे।
ब्रिटेन में राजनीतिक घटनाक्रम: भारत-ब्रिटेन एफटीए वार्ता पर इसके प्रभाव के बारे में कोई संकेत नहीं, गोयल कहते हैं
वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि दोनों देशों के बीच प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते के लिए चल रही बातचीत पर ब्रिटेन में हाल के राजनीतिक घटनाक्रम के प्रभाव के बारे में कोई संकेत नहीं हैं। 7 जुलाई को, ब्रिटिश प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसन ने अपने मंत्रिमंडल के भीतर से एक अभूतपूर्व विद्रोह के बाद कंजर्वेटिव पार्टी के नेता के रूप में अपने इस्तीफे की घोषणा की और उनकी सरकार को हिलाकर रख देने वाले घोटालों की एक श्रृंखला के मद्देनजर अपने करीबी सहयोगियों द्वारा छोड़े जाने के बाद, नेतृत्व के चुनाव को ट्रिगर किया। एक नया टोरी नेता जो आगे चलकर उसका उत्तराधिकारी बनेगा।
जनवरी में, दोनों देशों ने औपचारिक रूप से द्विपक्षीय व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिए एक मुक्त व्यापार समझौते के लिए बातचीत शुरू की। इस तरह के समझौतों में, दो देश निवेश और सेवाओं के व्यापार को बढ़ावा देने के लिए मानदंडों को आसान बनाने के अलावा उनके बीच व्यापार की अधिकतम संख्या पर सीमा शुल्क को समाप्त या काफी कम कर देते हैं।
“यह (यूके में राजनीतिक घटनाक्रम) हाल ही में हुआ है, और हमें उस तरह का कोई संकेत नहीं मिला है। लेकिन चूंकि कंजर्वेटिव पार्टी अभी भी सरकार में रहने वाली है और आम तौर पर अंतरराष्ट्रीय जुड़ाव के संबंध में, सरकार की निरंतरता है। इसलिए, मुझे कोई तत्काल समस्या नहीं दिख रही है और मैंने ऐसा कोई कारण नहीं सुना है, जो भारत और ब्रिटेन के बीच मजबूत द्विपक्षीय साझेदारी को प्रभावित कर सकता है, ”गोयल ने पीटीआई को बताया। वह इस सवाल का जवाब दे रहे थे कि क्या ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के इस्तीफे से भारत-ब्रिटेन व्यापार समझौते के लिए चल रही बातचीत प्रभावित होगी।
वार्ता एक उन्नत चरण में है, और दोनों पक्ष प्रस्तावित समझौते के कई अध्यायों पर सहमत हुए हैं। दिवाली तक वार्ता के समापन की समय सीमा को पूरा करने के बारे में पूछे जाने पर, मंत्री ने कहा कि एफटीए वार्ता “बहुत” जटिल मामले हैं और इसमें बहुत सावधानी बरती जाती है उन्होंने कहा, “हम इन चुनौतीपूर्ण समय-सीमा को पूरा करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करेंगे।”
अप्रैल में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और उनके यूके समकक्ष बोरिस जॉनसन ने एफटीए वार्ता समाप्त करने के लिए बातचीत करने वाली टीमों के लिए दिवाली की समय सीमा निर्धारित की थी। दिवाली इस साल 24 अक्टूबर को पड़ रही है। यूके भी भारत में एक प्रमुख निवेशक है। नई दिल्ली ने 2021-22 में 1.64 अरब अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित किया है। अप्रैल 2000 और मार्च 2022 के बीच यह आंकड़ा लगभग 32 बिलियन अमरीकी डॉलर था।
यूके को भारत के मुख्य निर्यात में तैयार वस्त्र और वस्त्र, रत्न और आभूषण, इंजीनियरिंग सामान, पेट्रोलियम और पेट्रोकेमिकल उत्पाद, परिवहन उपकरण और पुर्जे, मसाले, धातु उत्पाद, मशीनरी और उपकरण, फार्मा और समुद्री आइटम शामिल हैं। प्रमुख आयातों में कीमती और अर्ध-कीमती पत्थर, अयस्क और धातु स्क्रैप, इंजीनियरिंग सामान, पेशेवर उपकरण, अलौह धातु, रसायन और मशीनरी।
सेवा क्षेत्र में, यूके भारतीय आईटी सेवाओं के लिए यूरोप के सबसे बड़े बाजारों में से एक है। द्विपक्षीय व्यापार 2020-21 में 13.2 बिलियन अमरीकी डालर की तुलना में 2021-22 में बढ़कर 17.5 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया है। 2021-22 में भारत का निर्यात 10.5 बिलियन अमरीकी डॉलर था, जबकि आयात 7 बिलियन अमरीकी डॉलर था।
वित्त मंत्रालय बना रहा नये टैक्स सिस्टम की योजना, आयकर में कटौती के संकेत
नई दिल्ली। वित्त मंत्रालय (Finance Ministry) छूट या रियायतों से मुक्त टैक्स सिस्टम (free tax system) की समीक्षा की योजना बना रहा है। सूत्रों ने बताया कि नई व्यवस्था में टैक्स को कम किए जाने से यह अधिक आकर्षक बन पाएगी। इसी तरह का टैक्स सिस्टम कॉरपोरेट करदाताओं (corporate taxpayers) के लिए भी सितंबर, 2019 में लाई गई थी। इसमें टैक्स रेट को घटाया गया था और साथ ही छूट या रियायतों को भी समाप्त किया गया था।
सूत्रों ने कहा कि सरकार का इरादा ऐसी कर प्रणाली स्थापित करने का है, जिसमें किसी तरह की रियायतें न हों। इसके साथ ही सरकार छूट और कटौतियों वाली जटिल पुराने टैक्स सिस्टम को समाप्त करना चाहती है। आम बजट 2020-21 में एक नए टैक्स सिस्टम पेश की गई थी।
इस नए टैक्स सिस्टम करदाताओं को विभिन्न कटौतियों और छूट के साथ पुरानी व्यवस्था और बिना छूट और कटौतियों वाली निचली दरों की नई व्यवस्था में से चयन का विकल्प दिया गया था।
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नई टैक्स सिस्टम पसंद कर रहे लोग
सूत्रों ने कहा कि इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि जिन लोगों ने अपना आवास और शिक्षा ऋण चुका दिया है वह नए टैक्स सिस्टम को अपनाना चाहते हैं।
टैक्स सिस्टम को आसान बनाना है लक्ष्य
सूत्रों का कहना है कि 2020-21 में नई टैक्स सिस्टम लाने का मकसद कर प्रणाली को आयकरदाताओं के लिए आसान बनाना था। साथ ही उन्हें अपनी सुविधा के अनुसार निवेशक विकल्पों के चुनाव को और बेहतर बनाना था जिसमें वह बेवजह टैक्स छूट के नाम पर गैर-जरूरी निवेश करने से बचें।
वर्तमान समय में क्या है स्थिति
व्यक्तिगत आयकरदाताओं के लिए एक फरवरी, 2020 को पेश नई कर व्यवस्था में ढाई लाख रुपये तक की सालाना आय वाले लोगों को कोई कर नहीं देना होता। ढाई लाख से पांच लाख रुपये की आय पर पांच प्रतिशत का कर लगता है। इसी तरह पांच लाख से 7.5 लाख रुपये की आय पर 10 प्रतिशत, 7.5 लाख से 10 लाख रुपये पर 15 प्रतिशत, 10 लाख से 12.5 लाख रुपये की आय पर 20 प्रतिशत, 12.5 से 15 लाख रुपये की आय पर 25 प्रतिशत तथा 15 लाख रुपये से अधिक की आय पर 30 प्रतिशत कर लगता है।
मोदी सरकार के व्यापार प्रतिबंधों के पीछे आर्थिक तर्क की जगह राजनीतिक नुकसान का डर है
अप्रैल में केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'निर्यात केंद्रित अर्थव्यवस्था' के निर्माण के सपने की बात की थी, लेकिन एक महीने के भीतर ही केंद्र सरकार ने गेहूं, कपास, चीनी और स्टील पर निर्यात प्रतिबंध लगा दिए हैं. The post मोदी सरकार के व्यापार प्रतिबंधों के पीछे आर्थिक तर्क की जगह राजनीतिक नुकसान का डर है appeared first on The Wire - Hindi.
अप्रैल में केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘निर्यात केंद्रित अर्थव्यवस्था’ के निर्माण के सपने की बात की थी, लेकिन एक महीने के भीतर ही केंद्र सरकार ने गेहूं, कपास, चीनी और स्टील पर निर्यात प्रतिबंध लगा दिए हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फोटो साभार: पीआईबी)
यह एक मानी हुई बात है कि आर्थिक नीति को सुसंगत और अनुमान लगाने लायक होना चाहिए. नीतिगत चंचलता व्यापक आर्थिक विकास के लिहाज से अच्छा संकेत नहीं होती है.
अप्रैल के एक व्यापार को समाप्त करने के लिए संकेत मध्य में, जब भारत ने 2021-22 में वस्तु और सेवाओं में 670 अरब डॉलर का निर्यात दर्ज किया था तब केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘निर्यात केंद्रित अर्थव्यवस्था’ के निर्माण के सपने की बात की थी, लेकिन एक महीने के भीतर ही केंद्र सरकार ने गेहूं, कपास, चीनी और स्टील पर निर्यात प्रतिबंध लगा दिए हैं.
चावल के निर्यात की भी सीमा तय की जा सकती है. सरकार मुद्रास्फीति में अचानक वृद्धि से घबरा हुई लगती है और इसके राजनीतिक नतीजों की कल्पना ने मोदी को चिंतित कर दिया है.
लेकिन आलोचकों का सवाल है कि जब भारत की मुद्रास्फीति की दर अमेरिका या यूरोप के आसपास भी नहीं है, तब ऐसी अतिरंजित प्रतिक्रिया की क्या जरूरत थी?
स्टील निर्यात पर बगैर किसी पूर्व सूचना के अचानक निर्यात शुल्क लगाने का फैसला बेहद चौंकाने वाला था. टाटा स्टील और जेएसडब्ल्यू जैसे स्टील दिग्गजों ने हाल ही में निर्यात को ध्यान में रखते हुए एक ट्रिलियन रुपये के बराबर क्षमता बढ़ोतरी की योजना का ऐलान किया था, लेकिन निर्यात शुल्क इन इरादों पर पानी फेरने वाला था.
स्टील क्षमता में बढ़ोतरी योजना को अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण नए निवेश के तौर पर देखा गया था. यह इसलिए भी अहम था क्योंकि आठ साल के मोदी राज में अर्थव्यवस्था में निजी निवेश का अकाल-सा रहा है.
स्टील उद्योग निर्यात को बढ़ावा देने के लिए नई क्षमता के निर्माण की घोषणा करने वाले शुरुआती उद्योगों में से था. इसका कारण यह है कि कई सालों से घरेलू मांग में कमी होने के कारण क्षमता इस्तेमाल काफी कम 75 फीसदी के आसपास है. लेकिन निर्यात पर शुल्क लगाने ने (क्षमता विकास के) फैसले की समीक्षा के लिए प्रेरित किया है.
इसी तरह से, भारत हाल के वर्षों में कृषि का एक मजबूत निर्यातक रहा है. 2021-22 में कृषि क्षेत्र का कुल निर्यात 50 अरब अमेरिकी डॉलर रहा. भारत चावल (10 अरब डॉलर) और चीनी (4.5 अरब डॉलर), कपास (6 अरब डॉलर) और गेहूं (2.5 एक व्यापार को समाप्त करने के लिए संकेत अरब डॉलर) के सबसे बड़े निर्यातकों में से एक था.
सरकार ने महंगाई को काबू में करने के लिए इनमें से ज्यादातर वस्तुओं पर निर्यात प्रतिबंध लगा दिया है. सरकार के हिसाब से ये प्रतिबंध अस्थायी हैं, लेकिन निर्यातकों का कहना है कि बगैर किसी सूचना के इस तरह अचानक प्रतिबंध लगाने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत की साख को चोट पहुंचती है क्योंकि आयातक देश आपूर्ति की निरंतरता चाहते हैं.
चावल के एक बड़े निर्यातक कोहिनूर फूड्स के मैनेजिंग डायरेक्टर गुरनाम अरोड़ा का कहना है, ‘अगर आपूर्ति की निरंतरता को लेकर उनका आप पर से भरोसा उठ जाता है, तो वे किसी और जगह जा सकते हैं.’ सरकार द्वारा 13 मई को अचानक निर्यात प्रतिबंध लगाने से इस विश्वसनीयता को धक्का लगा है.
ऐसे में सवाल है कि निर्यात केंद्रित अर्थव्यवस्था के निर्माण का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना, महंगाई नियंत्रण के नाम पर निर्यातों पर पाबंदी लगाने के फैसले से कैसे मेल खाता है? भारत का कुल व्यापार (वस्तुओं और सेवाओं का आयात और निर्यात) अब जीडीपी का करीब 50 प्रतिशत है, और इसलिए यह विकास का एक महत्वपूर्ण तत्व है. यह हमारे विदेश से रिश्तों और रुपये के मूल्य को भी गंभीर रूप से प्रभावित करता है.
आश्चर्यजनक ढंग से यह निर्यात प्रतिबंध उस समय लापरवाह किस्म से लगाए गए, जब रुपया भी भारी दबाव में है. ये प्रतिबंध मुख्य तौर पर कृषि उत्पादों पर केंद्रित हैं, जिससे कृषि आय बढ़ाने के सरकार की प्रतिबद्धता को लेकर सवाल उठता है. किसानों के लिए हर 5-6 सालों में कीमतों में बढ़ोतरी होती है और उन्हें उसका लाभ लेने से वंचित करना एक बेहद खराब नीति है.
अगर सरकार सार्वजनिक तौर पर यह दावा करती है कि भारत की बढ़ी हुई मुद्रास्फीति की हालत अमेरिका या यूरोप की तुलना में आधी भी खराब नहीं है, तो यह ऐसे निर्यात प्रतिबंधों को किस तरह से जायज ठहरा सकती है?
अमेरिका और यूरोपीय संघ ने इतनी बड़ी संख्या में वस्तुओं पर प्रतिबंध नहीं लगाया है. यहां तक कि एक व्यापार को समाप्त करने के लिए संकेत नीति आयोग के पूर्व अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया, जो व्यापार क्षेत्र के एक ख्याति प्राप्त अर्थशास्त्री हैं, भी यह स्वीकार करते हैं कि सरकार सालों से व्यापार नीति सुधार को लेकर अपने पांव पीछे खींचती रही है. निर्यात प्रतिबंध लगाने का फैसला इस प्रवृत्ति को ही मजबूती देने वाला है.
प्रधानमंत्री द्वारा इस तरह के व्यापक निर्यात प्रतिबंध लगाने का मुख्य कारण राजनीतिक है- भारतीय जनता पार्टी मुद्रास्फीति पर नियंत्रण को मोदी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार और मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील मोर्चा (यूपीए) सरकार के बीच के प्रमुख अंतर के तौर पर स्थापित कर चुकी है. भाजपा यह कहते हुए नहीं थकती है कि प्रख्यात अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह महंगाई पर नियंत्रण नहीं कर पाए, लेकिन मोदीनॉमिक्स ने इस मामले में चमत्कार कर दिया है.
लगता है कि प्रधानमंत्री तेजी से इस मोर्चे पर मिली हुई बढ़त को गंवाते जा रहे हैं.
ऐसा लगता है कि इन निर्यात प्रतिबंधों के पीछे 2011-13 की आसमान छूती मुद्रास्फीति और यूपीए सरकार द्वारा भुगते गए उसके परिणामों के दोहराव होने का प्रधानमंत्री को डर है.
मुद्रास्फीति की कम या सामान्य दर को ही मोदी संभवतः अपनी एकमात्र उपलब्धि के तौर पर पेश कर सकते थे और अब वह भी हाथ से फिसलती जा रही है. ज्यादातर अन्य पैमानों- जीडीपी वृद्धि, रोजगार, निजी निवेश, अनौपचारिक क्षेत्र की आय- पर मोदी के आठ सालों के कार्यकाल के पास दिखाने के लिए काफी कम है.
ऐसे में यह बात समझ में आ सकती है कि आखिर केंद्र एक व्यापार को समाप्त करने के लिए संकेत सरकार निर्यात प्रतिबंधों के जरिये महंगाई पर नियंत्रण करने के लिए इतनी बेचैन क्यों है? लेकिन यह अपने पांव पर खुद कुल्हाड़ी मारने के समान हो सकता है.