लाभ पद्धति

Double Entry System in Hindi – दोहरा लेखा प्रणाली
दोहरा लेखा प्रणाली को इटली के वेनिस नगर में ‘Luca Pacioli’ द्वारा सन 1494 में शुरू किया गया था। इस प्रणाली के अनुसार प्रत्येक लेन-देन में दो account affect होते हैं, जिसमें एक को Debit किया जाता है और दूसरे को Credit किया जाता है। Business का कोई भी ऐसा transaction नहीं होता है जिससे सिर्फ एक account ही affect होता हो। इसका मतलब यह है कि हर-एक transaction के दो रूप (Two Aspects) होते हैं। Double Entry System का यह मतलब नहीं है कि कोई भी transaction को दो बार लिखा जाता है या दो बार record किया जाता है। जो भी person या account कोई benefit receive करता है उसे Debit किया जाता है और जो person या account business को कुछ देता है उसे Credit करते हैं।
Meaning of Double Entry System (दोहरा लेखा प्रणाली का अर्थ) –
दोहरा लेखा प्रणाली का आशय लेखाकर्म की उस प्रणाली से है जिसके अनुसार निश्चित पुस्तकों में लेखा करते समय हर-एक लेन-देन के दोनों aspects में से एक को Debit (Dr.) और दूसरे लाभ पद्धति लाभ पद्धति को Credit (Cr.) कुछ निश्चित नियमों के आधार पर किया जाता है। जैसे business में अगर कोई Machinery purchase की जाती है तो business में वह Machine बढ़ जाती है जबकि Cash कम हो जाता है। इस तरह Double Entry System के जो Rules होते हैं उसी के according transaction को record करते हैं कि कौन-से account को Debit करना है और कौन-से account को Credit करना है।
Definition of Double Entry System (दोहरा लेखा प्रणाली की परिभाषा) –
“Every business transaction has a two-fold effect and that is affects two accounts in opposite directions and if a complete record were to be made of each such transaction, it would be necessary to debit one account and credit another account. It is this recording of the two fold effect of every transaction that has given rise of the term Double Entry System.” — J. R. Batliboi
(business के हर एक transactions पर दो गुना effect पड़ता है और यह अलग-अलग directions में प्रभावित करता है, और अगर हम इस तरह के लेन-देन का पूरा Record रखना चाहते हैं तो यह ज़रूरी होगा कि एक account को Debit और दूसरे account को Credit किया जाए। यह हर लेन-देन के double effect की recording है जिसनें Double Entry System को जन्म दिया।)
इस तरह हम short में कह सकते है कि –
लेखांकन की जिस प्रणाली में प्रत्येक Debit के लिए Credit और प्रत्येक Credit के लिए Debit किया जाता है उसे दोहरा लेखा प्रणाली (Double Entry System) कहते हैं।
Advantages of Double Entry System (दोहरा लेखा प्रणाली के लाभ) –
1. Scientific System (वैज्ञानिक प्रणाली) –
दोहरा लेखा प्रणाली का एक लाभ यह है कि इसमें सारे लेन-देनों को Rules के according record किया जाता है, पुस्तपालन की यह प्रणाली दूसरी प्रणाली की तुलना में वैज्ञानिक प्रणाली है।
2. Complete record of every transaction (हर लेन-देन का पूरा रेकॉर्ड) –
Double Entry System में सारे accounts तीन पार्ट में बाँट दिए जाते हैं। जैसे- Personal Accounts, Real Accounts, और Nominal Accounts और इसी के according सारे लेन-देनों को Debit या Credit किया जाता है। इस तरह इस प्रणाली के अन्तर्गत सारे लेन-देनों का record रखा जाता है।
3. Prepare Trial Balance (तलपट बनाना) –
Double Entry System का एक advantage यह है कि अलग-अलग account बनाकर जितनी भी amount record की गयी है जितनी amount Debit में है उतनी ही amount Credit में record होनी चाहिए। इसको check करने के लिए Trial Balance prepare किया जाता है
4. Prepare Trading and Profit & Loss Account (व्यापारिक व लाभ-हानि खाता तैयार करना) –
Trial Balance prepare करने के से पता चल जाता है कि Debit और Credit के balance बराबर हैं और इसी Trial Balance की help से फिर Trading Account बनाया जाता है जिससे Gross Profit या Gross Loss का पता चलता है और फिर इसी तरह Profit and Loss Account prepare करके एक particular period का Net Profit या Net Loss का पता चलता है।
5. Knowledge of Financial Position of the business (व्यवसाय के वित्तीय स्थिति की जानकारी) –
हर एक businessman अपने business की वित्तीय स्थिति के बारे में ज़रूर जानना चाहता है कि उसका business कैसा चल रहा है? उसकी assets कितनी हैं? उसकी Liabilities क्या-क्या हैं? इस सारी चीज़ों के बारे में Balance Sheet के द्वारा पता चलता है।
तो अब आप इसे अच्छे से समझ गए होंगे कि Double Entry System क्या है? इसके Advantages क्या-क्या हैं? What is Double Entry System in Hindi? Advantages of Double Entry System
स्वास्थ्य
जिला स्तर पर मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) में उन्नाव में चिकित्सा संबंधी गतिविधियों की निगरानी के लिए इस विभाग से संबंधित सभी कार्यों के लिए जिम्मेदार है। वह जिला अस्पताल के प्रभारी भी हैं। उनकी सहायता के लिए सी.एम.एस. महिला जिला महिला अस्पताल, पर्यवेक्षक नेत्र अस्पताल और कई अन्य कार्यकर्ताओं की देखभाल करने के लिए
जिला उन्नावके स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख संपर्क
क्र०सं० | अधिकारी | मोबाइल संख्या |
---|---|---|
1. | मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सी०एम०ओ०) | 8005192700 |
2. | मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (सी०एम०एस०) | 7607061583 |
3. | मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (सी०एम०एस०), महिला चिकित्सालय | 9451293910 |
स्वास्थ्य विभाग को आगे 3 श्रेणियों में विभाजित किया गया है:
एलोपैथी:
यह चिकित्सा पद्धति की एक प्रणाली है जिसका उद्देश्य प्रभावों के उत्पादन के उपचार के उपयोग से बीमारी का मुकाबला करना है। इस विभाग का मुख्य उद्देश्य रोग को रोकने के लिए स्वाइन फ्लू जैसे विभिन्न रोगों के खिलाफ लोगों को टीकाकरण प्रदान करना है। यह पोषित बच्चों के तहत सहायता प्रदान करने में सहायता करता है
होम्योपैथी:
यह एक चिकित्सा पद्धति है जिसमें बीमारियों को बड़ी मात्रा में प्राकृतिक पदार्थों की खुराक की खुराक से इलाज किया जाता है, जो कि बीमारी के लक्षण उत्पन्न करते हैं। यह विभाग जिला होम्योपैथिक अधिकारी द्वारा प्रबंधित किया जाता है।
आयुर्वेद:
आयुर्वेद, जिसका शाब्दिक अर्थ है विज्ञान का विज्ञान (आयु = जीवन, वेद = विज्ञान), आयुर्वेद एक प्राचीन चिकित्सा विज्ञान है जो हजारों साल पहले भारत में विकसित किया गया था। यह विभाग जिला आयुर्वेदिक अधिकारी द्वारा प्रबंधित किया जाता है।
एंबुलेंस सेवा
108 मुख्य रूप से एक आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली है, मुख्य रूप से महत्वपूर्ण देखभाल, आघात और दुर्घटना पीड़ितों आदि के रोगियों में शामिल होने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
102 सेवाओं में मूल रूप से बुनियादी रोगी परिवहन शामिल हैं, जिसका उद्देश्य गर्भवती महिलाओं और बच्चों की जरूरतों को पूरा करना है, हालांकि अन्य श्रेणियां भी लाभ ले रही हैं और उन्हें शामिल नहीं किया जाता है। जेएसएसके एनटाइटेलमेंट उदा। घर से सुविधा के लिए नि: शुल्क हस्तांतरण, रेफरल के मामले में अंतर सुविधा स्थानान्तरण और माता और बच्चों के लिए वापस छोड़ें 102 सेवा का मुख्य ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
स्थानीय चिकित्सा संस्थान
स्थानीय प्रशासन स्तर पर नागरिकों की सहायता के लिए सीएचसी और पीएचसी हैं। सीएचसी समुदाय स्वास्थ्य केंद्र के लिए खड़ा है जिसमें 30 की बिस्तर क्षमता है, पीएचसी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और उप-स्वास्थ्य केंद्र के लिए एसएचसी स्टैंड है।
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों का उद्देश्य
नागरिकों के लिए उपलब्ध चिकित्सा उपचार और संबंधित सुविधाएं बनाने के लिए।
उपयुक्त सलाह, उपचार और सहायता प्रदान करने के लिए जो चिकित्सकीय रूप से यथासंभव हद तक बीमारी का इलाज करने में मदद करेगी।
यह सुनिश्चित करने के लिए कि इलाज अच्छी तरह से माना जाने वाला फैसले पर सबसे अच्छा होता है, समय-समय पर और व्यापक और नागरिकों की सहमति से इलाज किया जाता है।
आप बीमारी की प्रकृति, उपचार की प्रगति, इलाज की अवधि और उनके स्वास्थ्य और जीवन पर प्रभाव के बारे में जागरूकता सुनिश्चित करने के लिए और
इस संबंध में किसी भी शिकायत को कम करने के लिए।
उन्नाव जिले के सीएचसी की समय सारणी निम्न है-
- ओपीडी समय: 8 बजे से दोपहर 2 बजे
- आपातकाल: 24 घंटे
इसमें विभिन्न सुविधाएं हैं:
- ओपीडी
- आंतरिक रोगियों के लिए सेवाएं
- टेस्ट सुविधाएं
- एक्स-रे सुविधाएं
- ऑपरेशन सुविधाएं
- एम्बुलेंस सुविधा (108,102)
- गर्भपात
- वितरण
- आवश्यक / जटिल डिलीवरी
- टीकाकरण
- शिकायत पुस्तिका
- आई का इलाज
- कुष्ठ रोग का इलाज
- टीबी, पोलियो, डिप्थीरिया, टेटनस, वूप्सिंग खांसी और शिशुओं में खसरा के टीकाकरण।
- एड्स की प्रचार
- मृत्यु और जन्म का पंजीकरण
- मुक्त मौखिक गर्भनिरोधक गोलियां, कंडोम मोहरे
स्वास्थ्य विभाग की योजनाएं
जननी सुरक्षा योजना
जननी सुरक्षा योजना (जेएसवाई) राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत एक सुरक्षित मातृत्व हस्तक्षेप है। यह गरीब गर्भवती महिलाओं के बीच संस्थागत वितरण को बढ़ावा देने के माध्यम से मातृ एवं नवजात मृत्यु दर को कम करने के उद्देश्य से कार्यान्वित किया जा रहा है। यह योजना सभी राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों (यूटी) में कार्यान्वित की जा रही है, जिसमें निम्न प्रदर्शन राज्यों (एलपीएस) पर विशेष ध्यान दिया गया है।
जननी शिशु सुरक्षाकर्र्यम (जेएसएसके)
भारत सरकार ने 1 जून, 2011 को जननी शिशु सुरक्षाकर्र्यम (जेएसएसके) शुरू की है। इस योजना का अनुमान है कि 12 मिलियन से अधिक गर्भवती महिलाओं को उनकी डिलीवरी के लिए सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ मिलेगा। इसके अलावा यह उन लोगों को प्रेरित करेगा जो अभी भी अपने घरों में संस्थागत प्रसव के लिए चुनने के लिए चुनते हैं। यह एक ऐसी आशा है कि एक आशा है कि राज्य आगे आएँगे और यह सुनिश्चित करेगा कि जेएसएसके के तहत लाभ, हर संस्था की सुविधा के लिए आने वाली हर गर्भवती महिला तक पहुंच जाएंगे। सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने इस योजना के कार्यान्वयन की शुरुआत की है।
ब्रेल लिपि पद्धति
ब्रेल लिपि उभरे हुए छ: बिन्दुओं की ऐसी लिपि है, जिससे जिससे स्पर्श द्वारा पढ़ा-लिखा जाता है। इसमें पढ़ने व लिखने के लिए दृष्टि की आवश्यकता नहीं होती है। इस लिपि का आविष्कार सन् 1937 में एक दृष्टिहीन व्यक्ति लुई ब्रेल ने किया, परन्तु इस लिपि को मान्यता लुई ब्रेल के मरणोपरान्त मिली।
ब्रेल लिपी के स्वरूप
इस लिपि का स्वरूप इस प्रकार है :
इन छ: बिन्दुओं के विभिन्न संयोगों के आधार पर विश्व की सभी भाषाओं की वर्ण मालाएँ, विराम चिन्ह, संक्षेप तथा संकेत आदि तैयार किए गये हैं। भारतीय ब्रेल भी इन्हीं छः बिन्दुओं पर आधारित है। भारत की सभी भाषाएँ हिन्दी, संस्कृत, मराठी,गुजराती, बंगाली, तमिल, तेलुगू इत्यादि इस लिपि के माध्यम से पढ़ी तथा लिखी जा सकती हैं।
ब्रेल चिन्ह मोटे कागज पर लेखन पाटी (ब्रेल स्लेट) तथा स्टाइल्स अथवा ब्रेल लेखन सामग्री की सहायता से उभारे जाते हैं। लेखन पाटी पर लिखते समय स्टाइल्स दबाकर एक-एक बिन्दु कागज पर बनाए जाते हैं, जो दूसरी ओर उभरकर आते हैं। अतः लेखन पाटी पर दायें से बायें लिखना पड़ता है। लेखन पाटी पर कागज के दोनों ओर लिखा जा सकता है। दूसरी ओर लिखते समय दो पंक्तियों के बीच नई ब्रेल पंक्ति लिखी जाती है।
बेल लेखन पाटी पर स्टाइलस से लिखते समय एक पूर्ण अक्षर के लिए अपेक्षित बिन्दु संयोगों को ही एक प्रकोष्ठ (Cell) में, किन्तु एक बार में एक बिन्दु को दबाया जाता है जबकि ब्रेल लेखन मशीनों पर उसी अक्षर के लिए सम्पूर्ण अपेक्षित बिन्दु संयोगों; यथा-‘र’ के लिए 1,2,3 तथा 5 संख्या के सभी बिन्दुओं को एक साथ दबाया जाता है।
ब्रेल मशीनों लाभ पद्धति के प्रकार
बेल लेखन मशीनें मुख्यतः दो प्रकार की हैं—
एक ऐसी जिनसे कागज के दोनों और लिखा जा सकता है और शब्द कागज के दूसरी ओर उभरते हैं। उदाहरण के लिए स्टेन्सवी लेखन मशीन। लेखन पाटी लाभ पद्धति की तरह इस मशीन पर भी दायें से बायें लिखना होता है। ‘स्टेन्सवी‘ (Stainby) लेखन मशीन के साथ दो प्रकार के बोर्ड लगे होते हैं—एक अन्तर पंक्तियाँ (Interline) ब्रेल लेखन के लिए जबकि एक अन्तर बिन्दीय (Inter Point) ब्रेल लेखन के लिए। जब कागज के दूसरी तरफ लिखते समय पहले से लिखी हुई दो पंक्तियों के बीच नई बेल पंक्ति लिखी जाती है तो अन्तर पंक्तिय ब्रेल कहा जाता है। अन्तर-बिन्दीय ब्रेल लेखन करते समय ब्रेल पंक्तियाँ एक-दूसरे के अधिक समीप होती हैं। कागज के एक तरफ लिखे हुए शब्दों के बिन्दुओं के बीच खाली जगह में दूसरी ओर नये शब्द लिखे जाते हैं अत: इसे अन्तर बिन्दीय ब्रेल कहा जाता है। अतः स्पष्ट है कि अन्तर बिंदीय ब्रेल द्वारा एक कागज पर अंतर पंक्तिय ब्रेल की अपेक्षा अधिक लिखा जा सकता है।
दूसरी प्रकार की ब्रेल मशीनें ऐसी हैं, जिनसे कागज के एक ही ओर लिखा जा सकता है, किन्तु ब्रेल पंक्तियाँ एक-दूसरे के बहुत समीप होती हैं। इन मशीनों की एक विशेषता यह भी है कि अक्षर उभरकर ऊपर ही लिखे जाते हैं न कि कागज के दूसरी ओर। उदाहरण के लिए ‘पार्किन्स’ (Perkins) तथा ‘मारवुर्ग’ (Marburg) ब्रेल लेखन मशीन आदि। ऐसी मशीनों पर लिखते समय बायें से दायें लिखा जाता है और आवश्यकता पड़ने पर जो कुछ लिखा जा रहा हो तो उसे साथ ही साथ पढ़ा भी जा सकता है। जबकि स्टेन्सवी’ जैसी लेखन मशीनों तथा लेखन पाटी पर लिखा हुआ पढ़ने के लिए कागज उल्टा कर पढ़ना होता है।
ब्रेल लिपि सीखने की विधि
दृष्टिबाधित विद्यार्थि की स्पर्श क्षमता के विकास के बाद उसे ब्रेल पढना सिखाया जाता है। ब्रेल सीखने की अग्र तीन विधियाँ बतायी गयी हैं-
- वाक्य विधि- वाक्य विधि में छोटे वाक्यों का सहारा लिया जाता है। वाक्य में शब्दों का मामूली फेरबदल हो लाभ पद्धति सकता है। यह एक खिलौना है। यह बड़ा खिलौना है। यह मेरा खिलौना है। मेरा खिलौना बड़ा है आदि। बच्चों को वाक्यों को याद करके उन्हें पढ़ने की कोशिश करनी चाहिए। अभ्यास करने से विभिन्न शब्दों से परिचय हो जाता है। कई शब्दों का परिचय हो जाने पर अक्षर विन्यास पर ध्यान देना चाहिए।
- शब्द विधि- इस विधि द्वारा शुरू में परिचित तथा सार्थक शब्दों का सहारा लिया जाता है। बिन्दु विन्यास समझ में आने से पूर्व ही बच्चे शब्दों को छूकर पहचानने का प्रयास करते हैं। कागज (या फ्लैश कॉर्ड्स) पर तीन चार पंक्तियों में तीन-चार शब्दों को बार-बार लिखकर बच्चों को दिया जा सकता है। अगली पंक्ति में वही शब्द अपने पूर्व पंक्ति में आए शब्द के ठीक नीचे लिखा हो तो अच्छा रहेगा। शब्दों को छूकर पहचानने के बाद अक्षर विन्यास पर विचार किया जा सकता है।
- अक्षर विधि- ऊपर दोनों विधियाँ विश्लेषण की हैं, जबकि अक्षर विधि संश्लेषण विधि है। इसमें बच्चे पहले अक्षर पहचानते हैं तथा फिर अक्षरों से शब्दों का निर्माण करते हैं। पहचानने में सरल अक्षरों की पहचान पहले करवाते हैं।
ब्रेल के लाभ
दृष्टितबाधित विद्यार्थियों द्वारा ब्रेल सीखने का मुख्य लाभ है कि वे अध्ययन सामग्री को लिखित रूप से अपने पास संजोकर रख सकते हैं। इसके लिए माध्यमिक स्तर पर छात्रों को नोट्स लेने के लिए बाध्य करना चाहिए। नोट्स लेने से तात्पर्य किसी बड़ी बात को छोटे रूप में लिखने से है। नोट्स लेने की आदत का विकास करने से छात्रों को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं; जैसे-
- नोट्स लेने से छात्रों का ध्यान कक्षा में केन्द्रित रहता है।
- नोट्स लेने से भविष्य में बातों को याद रखना आसान हो जाता है।
- नोट्स स्वयं की पढ़ाई के लिए उपयोगी होते हैं।
- इससे लिखने की गति बढ़ती है।
- नोट्स परीक्षा के पहले बहुत काम आते हैं।
- नोट्स लेने से छात्रों को अन्य मनोवैज्ञानिक लाभ भी होते हैं।
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ड्रिप सिंचाई क्या है | Drip Irrigation in Hindi | ड्रिप सिंचाई प्रणाली के बारे में जानकारी
ड्रिप सिंचाई (Drip Irrigation) से सम्बंधित जानकारी
खेतो में अच्छी फसल हो इसके लिए खेत की अच्छी तरह से सिंचाई होनी भी बहुत आवश्यक है | किसानो द्वारा फसल की सिंचाई के लिए तरह-तरह की तकनीकों को अपनाया जाता है, यदि फसल की सिंचाई अच्छे से होती है, तो उसकी पैदावार भी अच्छी होती है तथा फसल भी स्वस्थ होती है | टपक (Drip) सिंचाई पद्धति एक ऐसी विधि है, जिसमे फसल को जल मंद गति से बूँद-बूँद के रूप में जड़ क्षेत्र एक छोटी व्यास की प्लास्टिक पाइप से प्रदान की जाती है | सिंचाई की इस तकनीक का इस्तेमाल सर्वप्रथम इजराइल देश में किया गया | जिसके बाद वर्तमान समय में आज पूरी दुनिया के अनेक देशो में इस तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है |
इस विधि में जल को अपव्ययी तरीके से उपयोग में लाया जाता है | जिससे पानी बूँद-बूँद के रूप में सीधा पेड़ की जड़ो में पहुँचता है, और पेड़ की जड़े धीरे-धीरे पानी को सोखती है | इस विधि में जल की हानि कम होती है, तथा शुष्क एवं अर्ध-शुष्क क्षेत्रों के लिए यह विधि अत्यंत उपयुक्त मानी जाती है | ऐसे क्षेत्रों में फल और बगीचों की सिंचाई के लिए इस विधि को उपयोग में लाया जाता है | इस विधि में उवर्रको को घोल के रूप में पौधों की जड़ो तक पहुंचाया जाता है | जल की कमी वाले स्थानों के लिए इस विधि को काफी उपयुक्त माना गया है | यदि आप भी टपक विधि के बारे में जानना चाहते है, तो इस पोस्ट में आपको ड्रिप सिंचाई क्या है, Drip Irrigation in Hindi, ड्रिप सिंचाई प्रणाली के बारे में जानकारी प्रदान की जा रही है |
टपक सिंचाई क्या है (Drip Irrigation in Hindi)
यह एक सिंचाई विधि है, जिसका इस्तेमाल दुनिया के कई देशो में बहुत तेजी के साथ देखा जा रहा है | इस विधि में पौधों की सिंचाई को टपक विधि द्वारा किया जाता है | जिसके लिए छोटी व्यास वाली प्लास्टिक की पाइप का इस्तेमाल किया जाता है | इस विधि में पौधों की जड़ो में जल को बूँद-बूँद के रूप में पहुंचाया जाता है, जिससे सतह वाष्पन एवं भूमि रिसाव से जल की हानि भी कम होती है, तथा पौधों को उवर्रक पहुचाने के लिए उवर्रक को घोल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है | सिंचाई की यह तकनीक उन क्षेत्रों के लिए काफी उपयुक्त मानी जा रही है, जहाँ जल की कमी तथा जमीन असमतल और सिंचाई प्रक्रिया काफी खर्चीली होती है |
भारत में टपक सिंचाई विधि का प्रयोग (Drip Irrigation Method in India)
भारत के विभिन्न राज्यों में टपक सिंचाई पिछले 15 से 20 वर्षो में काफी लोकप्रिय हुई है | वर्तमान समय में देश के लगभग 3.51 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में टपक सिंचाई विधि का इस्तेमाल किया जा रहा है, जो कि 1960 में मात्र 40 हेक्टयेर था | भारत में टपक विधि का इस्तेमाल करने वाले सर्वाधिक क्षेत्र वाले मुख्य राज्य महाराष्ट्र (94 हजार हेक्टेयर), कर्नाटक (66 हजार हेक्टेयर) तथा तमिलनाडु (55 हजार हेक्टेयर) हैं ।
टपक सिंचाई के लाभ (Benefits of Drip Irrigation)
- टपक सिंचाई विधि में जल दक्षता 95 तक होती है, वही पारम्परिक सिंचाई प्रणाली में जल दक्षता लगभग 50 प्रतिशत होती है |
- इस विधि के प्रयोग से जल की अधिक खपत के साथ उवर्रको को अनावश्यक बर्बादी को भी रोका जा सकता है |
- इस विधि से सिंचित फसल की वृद्धि तीव्र गति से होती है,जिससे फसल शीघ्र परिपक्व होती है |
- यह खरपतवार नियंत्रण पर अत्यंत ही सहायक होती है,क्योकि सिमित सतह नमी के चलते खर-पतवार कम उगते है |
- टपक यानि कि ड्रिप सिंचाई विधि एक आदर्श मृदा नमी स्तर प्रदान करती है,जिससे फसल अच्छे से विकसित होती है |
- इस विधि में कीटनाशकों और कवकनाशकों के घुलने की सम्भावना भी कम होती है |
- इसकी सिंचाई के लिए लवणयुक्त जल को भी उपयोग में लाया जा सकता है |
- इस विधि का उपयोग कर की गयी फसल की सिंचाई से पैदावार 150 प्रतिशत तक बढ़ जाती है |
- टपक सिंचाई में पारम्परिक सिंचाई की तुलना में 70% जल की बचत होती है |
- इस सिंचाई का सबसे अच्छा फ़ायदा यह है कि इस विधि का इस्तेमाल कर लवणीय,बलुई एवं पहाड़ी भूमि में भी सफलतापूर्वक खेती को किया जा सकता है |
- मृदाअपरदन की संभावना न होने के कारण मृदा संरक्षण को भी बढ़ावा दिया जा सकता है |
ड्रिप सिंचाई प्रणाली के बारे में जानकारी
यह टपक सिंचाई प्रणाली पम्प ईकाई, नियन्त्रण प्रधान, प्रधान एवं उप-प्रधान नली, पार्श्विक एवं निकास आदि उपकरणों से मिलकर बनी होती है | इस विधि में पंप इकाई जल स्त्रोत से जल को लेकर पाइप प्रणाली में जल छोड़ने हेतु उचित दबाव का प्रबंध करती है | नियंत्रण प्रधान में कपाट उपस्थित होता है, जिसका कार्य पाइप प्रणाली में जल के निकलने के लिए उचित दाब को स्थापित करना है, इसके अलावा इस पाइप में एक छननी भी लगी होती है, जिसका कार्य सफाई करना होता है | नियंत्रण प्रधान में उवर्रक व पोषक जलकुंड भी मौजूद होता है | इसका कार्य सिंचाई के दौरान पर्याप्त मात्रा में उवर्रक को जल में छोड़ना होता है | अन्य सिंचाई विधियों की तुलना में यह एक विशेष लाभ वाली सिंचाई होती है |
प्रधान नली,उप-प्रधान नली एवं पार्श्विक, नियंत्रण प्रधान से खेतो में जल की पूरी की जाती है | यह एक तरह से पॉलीथीन की बनी होती है, जिसका इस्तेमाल प्रत्यक्ष सौर ऊर्जा से नष्ट होने से बचाने के लिए इन्हे जमीन में दबाया जाता है | पार्श्विक नलीयों का व्यास 13-32 मीलीमीटर होता है, निकास युक्ति का इस्तेमाल कर पार्श्विक पौधों को जल की पूर्ति को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है |
टपक सिंचाई की फसले (Drip Irrigation Crops)
टपक सिंचाई विधि का इस्तेमाल मुख्य रूप से कतार वाली फसलों फल एवं सब्जी, वृक्ष एवं लता फसलों के लिए किया जाता है | इसके एक से अधिक निकासों को प्रत्येक पौधों तक पहुंचाया जाता है | इस विधि को मुख्य रूप से अधिक मूल्य वाली फसलों को उगाने के लिए किया जाता है, क्योकि इसमें सिंचाई विधि संस्थापन की कीमत अधिक होती है | इस विधि को अधिकतर फार्म, व्यावसायिक हरित गृहों तथा आवासीय बगीचों आदि में प्रयोग में लाया जाता है | यह लम्बी दूरी वाली फसलों के लिए काफी उपयुक्त मानी जाती है |
टपक विधि का इस्तेमाल सेब, अंगूर, संतरा, नीम्बू, केला, अमरूद, शहतूत, खजूर, अनार, नारियल, बेर, आम आदि फसलों के लिए भी कर सकते है, तथा टमाटर, बैंगन, खीरा, लौकी, कद्दू, फूलगोभी, बन्दगोभी, भिण्डी, आलू, प्याज जैसी फसलों में भी ड्रिप विधि का इस्तेमाल कर सकते है | इसके अतिरिक्त कपास, गन्ना, मक्का, मूंगफली, गुलाब एवं रजनीगंधा जैसी फसलों को भी इस विधि द्वारा उगाया जा सकता है | सिंचाई की इस तकनीक को न सिर्फ जल एवं मृदा संरक्षण बल्कि फसल की अच्छी पैदावार के लिए भी करते है |