स्केलिंग रणनीतियां

भग्न संरचना

भग्न संरचना
सेनार्ट द्वारा संपादित संस्कृत महावस्तु के तृतीय परिच्छेद में धम्मपद-सहस्सवग्र्ग (धर्मपदेसु सहस्र वर्ग:) के 24 पद्य उद्धृत किए गए हैं। जबकि पालि त्रिपिटक के सहस्सवग्ग में कुल 16 गाथाएं ही हैं। इससे प्रतीत होता है कि महावस्तु के कर्ता के संमुख एक संस्कृत पद्यात्मक धर्मपद था जिसमें पद्यों की सख्या पालि धम्मपद की अपेक्षा अधिक थी।

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Dhammapada : Mahatma Buddha

धम्मपद बौद्ध साहित्य का सर्वोत्कृष्ट लोकप्रिय ग्रंथ है। इसमें बुद्ध भगवान् के नैतिक उपदेशों का संग्रह यमक, अप्पमाद, चित्त आदि 26 वग्गों (वर्गों) में वर्गीकृत 423 पालि गाथाओं में किया गया है। त्रिपिटक में इसका स्थान सुत्तपिटक के पाँचवें विभाग खुद्दकनिकाय के खुद्दकपाठादि 15 उपविभागों में दूसरा है। ग्रंथ की आधी से अधिक गाथाएँ त्रिपिटक के नाना सुत्तों में प्रसंगबद्ध पाई जा चुकी हैं। धम्मपद की रचना उपलब्ध प्रमाणों से ई.पू. 300 व 100 के बीच हो चुकी थी, ऐसा माना गया है।

बौद्ध संघ में इस ग्रंथ का इतना भग्न संरचना गहरा प्रभाव है कि उसमें पारंगत हुए बिना लंका में किसी भिक्षु को उपसंपदा प्रदान नहीं की जाती। 'धम्मपद का व्युत्पत्तिगत अर्थ है धर्मविषयक कोई शब्द, पंक्ति या पद्यात्मक वचन'। ग्रंथ में स्वयं कहा गया है- अनर्थ पदों से युक्त सहस्रों गाथाओं के भाषाण से ऐसा एकमात्र अर्थपद, गाथापद व धम्मपद अधिक श्रेयकर है जिसे सुनकर उपशांति हो जाए (गा. 100- 102)। बौद्ध साधु प्राय: इसी ग्रंथ की किसी गाथा या उसके अंशमात्र का आधार लेकर अपना प्रवचन आरंभ करते हैं, जिस प्रकार ईसाई पादरी बाइबिल के किसी वचन से। इस कार्य में उन्हें धम्मपद की अट्ठकथा नामक टीका से बड़ी सहायता मिलती है जिसमें प्रत्येक गाथा के विशद् अर्थ के अतिरिक्त उसके दृष्टांत स्वरूप एक व अनेक कथाएँ दी गई हैं। यह अट्टकथा बुद्धघोष या उनके कालवर्ती किसी अन्य आचार्य द्वारा त्रिपिटक में से ही संगृहीत की गई हैं। इसमें वासवदत्ता और उदयन की कथा भी आई है।

धम्मपद का वर्ण्य विषय

जो ग्रंथ इतना प्राचीन है, जिसकी बौद्ध संप्रदाय में महान प्रतिष्ठा है, तथा अन्य विद्वानों ने भी जिसकी मुक्त कंठ से प्रशंसा की है, उसमें सामान्य व्यावहारिक नीति के अतिरिक्त कैसा तत्वचिंतन उपस्थित किया गया है, इसकी स्वभावत: जिज्ञासा होती हैं। ग्रंथ में बौद्धदर्शनसम्मत त्रिशरण, चार आर्यसत्य तथा अष्टांगिक मार्ग का तो उल्लेख है ही (गा. 190-192), किंतु उसमें आत्मा, निर्वाण, पुनर्जन्म, पुण्य-पाप वा स्वर्ग नरक आदि ऐसी बातों पर भी कुछ स्पष्ट विचार पाए जाते हैं जिनके संबंध में स्वयं बौद्ध धर्म के नाना संप्रदायों में मतभेद है। यहाँ स्वयं भगवान बुद्ध कहते हैं, "मैं अनेक जन्मों रूप संसार में लगातार दौड़ा और उस गृहकारक शरीर के निर्माता को ढूंढता फिरा, क्योंकि यह बार-बार का जन्ममरण दु:खदायी है। रे गृहकारक, अब मैंने तुझे देख लिया, अब तू पुन: घर न भग्न संरचना बना पावेगा। मैंने तेरी सब कड़ियों को भग्न कर डाला, गृहकूट बिखर गया, चित्त संस्काररहित हो गया और मेरी तृष्णा क्षीण हो गई" (गा. 153-54) यहाँ एक जीव और उसके पुनर्जन्म तथा संस्कार व तृष्णा के विनाश द्वारा पुनर्जन्म से मुक्ति की मान्यता सुस्पष्ट है। मोक्ष का स्वरूप एवं उसे प्राप्त करने की क्रिया का यहाँ इस प्रकार वर्णन है- "जिनके पापों का संचय नहीं रहा या जिनका भोजनमात्र परिग्रहशेष रहा है, तथा आस्रव क्षीण हो गए हैं, उनको वह शून्यात्मक व अनिमित्तक मोक्ष गोचार है (गा. 92-93)। यहाँ पापबंध के कारणों, आस्रवों तथा संचित कर्मों के क्षय से मोक्षप्राप्ति मोक्ष के शून्यात्मक और अनिमित्तक स्वरूप का विधान किया गया है। "कोई पापकर्मी गर्भ से मनुष्य या पशुयोनि में उत्पन्न होते हैं, कोई नरक हो और कोई सुमति द्वारा स्वर्ग को जाते हैं, तथा जिनके आस्रव नहीं रहा वे परिनिर्वाण को प्राप्त होते हैं। अंतरिक्ष, समुद्र, पर्वतविवर आदि जगत् भर में ऐसा कोई प्रदेश नहीं जहाँ जाकर पापी कर्मफल पाने से छूट सके" (गा. 126-27) "भग्न संरचना असत्यवादी पापी और असंयमी कषायधारी भिक्षु प्रमादी, परधरसेवी, मिथ्यादृष्टि आदि सब नरकगामी है" (306-09)। यहाँ जीव की गर्भ योनि, नरक, स्वर्ग व मुक्ति इन गतियों तथा कर्मफल की अनिवार्यता की स्वीकृति में संदेह नहीं रहता। ब्राह्मण का स्वरूप एक पूरे वग्ग (गा. 383-423) में बतलाया गया है, जो ऐतिहासिक, धार्मिक, सामाजिक अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण हैं। जाति, गोत्र, जटा तथा मृगचर्म मात्र से एवं भीतर मैला रहकर बाहर मल मलकर स्नान करने से कोई ब्राह्मण नहीं होता। मैं तो ब्राह्मण उसी को कहूँगा जो कामतृष्णा का त्यागी, अनासक्त, अहिंसक, मन-वचन-काय से पापहीन, रागद्वेष मान से रहित, क्षमाशील, ज्ञानी, ध्यानी, क्षीणस्रव अरहंत हैं। 100 वर्षों तक प्रति मास सहस्रों का दान देते हुए यज्ञ करनेवाले की अपेक्षा एक मूहर्तमात्र आत्मभावना से पूजा करनेवाला श्रेष्ठ है (गा.106)

RSMSSB LDC exam paper S to Z – 2018 (Answer Key) Second Shift

(A) The is rich, still he does not help the poor.
(B) He is very rich, still lie does not help the poor.
(C) He was a rich man, still he does not help the poor.
(D) He is too rich, he does not help the poor.

47. ‘वह आधे घण्टे से तुम्हारा इन्तजार कर रही है ।
सरल वाक्य का अंग्रेजी में रूपान्तरण होगा –
(A) She has been waited for you half hour.
(B) She has been waiting for you for half an hour.
(C) She had been waiting you half an hour.
(D) She have been waiting for you for half an hour.

48. टिप्पण लेखन में उच्च अधिकारी किस ओर हस्ताक्षर अंकित करता है ?
(A) दायीं ओर
(B) बायीं ओर
(C) मध्य में
(D) पत्र के आरम्भ में

49. व्यावसायिक एवं प्रशासनिक क्षेत्र में पत्र लेखन क्या कार्य करता है ?
(A) स्थायी प्रलेख का
(B) कुशलमंगल पूछने का
(C) शिष्टाचार निभाने का
(D) आमंत्रण देने का

मशरूम आकृति विज्ञान

कवक आकृति विज्ञान c

कवक आमतौर पर मैक्रोमैक्सीस और माइक्रोइलेक्ट्रिस में वर्गीकृत किया जाता है। यह वर्गीकरण टैक्सोनोमिक है और इसका उपयोग उन कवक को विभाजित करने के लिए किया जाता है जिनकी अलग-अलग विशेषताएं हैं। आइए देखें कि उनमें से प्रत्येक की क्या विशेषताएं हैं:

Macromycetes

वे सबसे अच्छे ज्ञात क्लासिक्स हैं जिनकी एक विशिष्ट टोपी की आकृति है। उदाहरण के लिए, इस समूह में हम मशरूम पाते हैं। सभी कवक भी हैं जो हम जंगलों की विभिन्न मिट्टी में देखते हैं। इनमें एक आकृति विज्ञान होता है जो नेत्रहीन रूप से किसी भी प्रकार की वृद्धि के बिना फल शरीर को विकसित करता है। फ्रूटिंग बॉडी की यह संरचना निम्नलिखित भागों के साथ वर्णित है:

कवक का वर्गीकरण और आकारिकी

सूक्ष्म कवक

मशरूम भग्न संरचना विशेषज्ञों को माइकोलॉजिस्ट कहा जाता है। उनमें से कई जीवों की शारीरिक विशेषताओं के अनुसार वर्गीकरण पर आधारित हैं। यह है कि वे कैसे निर्धारित करते हैं कि प्रत्येक जीव किस प्रजाति का है। आइए देखें फफूंद के 3 अलग-अलग आकारिकी रूप:

फिलामेंटस कवक

फिलामेंटस कवक की पूरी संरचना हाइप से बना है और अलैंगिक प्रजनन का उत्पाद है। इस संरचना को मायसेलियम कहा जाता है। जंगली मशरूमों का माइसेलियम भूमिगत कई मीटर तक बढ़ सकता है। इस प्रकार, हमने पहले उल्लेख किया था कि जो हम देखते हैं वह पूरे कवक के फलने वाला शरीर है।

सभी हाइपहे जो भूमिगत हैं और सब्सट्रेट के नीचे यौन रूप से प्रजनन करते हैं। यह केवल हाइपहा है जो पृथ्वी की सतह की ओर निकलती है जिसमें यौन प्रजनन के लिए विशेष संरचनाएं होती हैं। इस प्रजनन के लिए जो आंकड़े जिम्मेदार हैं, उन्हें कोनिडिया कहा जाता है।

अद्वितीय सांस्कृतिक विरासत है- कटारमल सूर्य मंदिर

रनीश एवं हिमांशु साह

कटारमल का सूर्य मंदिर-उत्तर भारत की मध्य कालीन वास्तुकृतियों में विशिष्ट स्थान रखता है। अल्मोड़ा नगर से 13 किमी की दूरी पर बसे कोसी कस्बे से डेढ़़ किमी0 की पैदल चढ़ाई चढ़ कर अथवा कोसी बाजार से लगभग दो किमी आगे से मोटर मार्ग से भी कटारमल पहॅुचा जा सकता है जहां एक टीले पर सूर्य मंदिर समूह स्थित है। इसे बड़ा आदित्य भी कहा जाता है।

कटारमल के सूर्य मंदिर का नाम उत्तर भारत के सूर्य उपासकों में ही नहीं अन्य मतावलम्बियों में भी बड़ी श्रद्धा के साथ लिया जाता है। मध्यकाल की वास्तुकला और स्थापत्य के प्रतीक मूल मंदिर को आठवीं, नवी शती के मध्य बनवाया गया था। कुमाऊँ के सांस्कृतिक इतिहास में इस मंदिर की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस क्षेत्र में कत्यूरियों का उदय एक शक्तिशाली राजवंश के रूप में हुआ। उन्होंने न केवल अपनी तलवार के बल पर एक विशाल राजवंश की नींव रख उसका विस्तार किया अपितु उन्हानें मूर्तिकला और देवालय निर्माण के प्रति भी अभूतपर्व रूचि प्रदर्शित की। जागेश्वर तथा बैजनाथ मंदिर कत्यूरियों के काल में ही बने जिनकी मूर्तिकला और मंदिर निर्माण शैली भी दर्शनीय है। उनके काल में सूर्य सहित विभिन्न सम्प्रदायों के अनेकों मंदिरों का निर्माण हुआ।

सर्दियों में घूमने के लिए बेहतरीन जगह है 'दक्षिण भारत के आगरा' नाम भग्न संरचना से मशहूर बीजापुर

सर्दियों में घूमने के लिए बेहतरीन जगह है

बीजापुर में स्थित इब्राहिम रोजा मकबरे को देखकर ही ताजमहल बनाने की प्रेरणा ली गई थी। यहां मकर संक्राति पर भारी भीड़ जुटती है। तो आज चलते हैं इसके ऐतिहासिक-सांस्कृतिक सफर पर.

बेंगलुरु से करीब 530 किलोमीटर दूर स्थित कर्नाटक राज्य के जिला बीजापुर का प्राचीन नाम विजयपुर है। आदिल वंश की राजधानी रहे इस शहर का इतिहास अपने स्वर्णिम अतीत की याद दिलाता है। कन्नड़ भाषा बोलता यह शहर पर्यटकों का भरपूर स्वागत करता है। साफ-सुथरी सड़कों और मुगलकालीन स्थापत्य कला वाले इस शहर में नवंबर से भग्न संरचना फरवरी के बीच र्यटन के मद्देनजर मौसम खुशगवार रहता है।

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