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नए निवेशकों को शेयर ट्रेडिंग कैसे करनी चाहिए?

नए निवेशकों को शेयर ट्रेडिंग कैसे करनी चाहिए?
✨#EditorsTake किन बातों का ख्याल रखने से आप बनेंगे सफल #Trader ?🔥 🎯नए ट्रेडर्स को क्यों जरूर सीखना चाहिए रिस्क मैनेजमेंट? ओवर नाइट पोजीशन में रिस्क मैनेजमेंट करना कितना अहम? ट्रेडर्स जरूर देखिए अनिल सिंघवी का ये वीडियो#StockMarket #TradingView #tradingtips @AnilSinghvi_ pic.twitter.नए निवेशकों को शेयर ट्रेडिंग कैसे करनी चाहिए? com/F1Bpe7i3Zx — Zee Business (@ZeeBusiness) September 20, 2022

Editor's Take: नए ट्रेडर्स के लिए रिस्क मैनेजमेंट क्यों जरूरी, अनिल सिंघवी ने बताया कैसे बने सफल ट्रेडर

Editor's Take: मंगलवार के ट्रेडिंग सेशन के दौरान शेयर बाजार में तीन दिनों से हो रही लगातार गिरावट पर ब्रेक लगा था. ये बड़ी बात इसलिए है क्योंकि कल के ट्रेडिंग सेशन में ग्लोबल बाजारों में अच्छी खासी गिरावट देखने को मिली थी. ग्लोबल बाजार एक से डेढ़ फीसदी तक फिसले थे लेकिन उसके बाद भी भारतीय शेयर बाजार (Indian Share Market) में अच्छी क्लोजिंग देखने को मिली. इस मामले पर ज़ी बिजनेस के मैनेजिंग एडिटर अनिल सिंघवी ने कहा कि कल के ट्रेडिंग सेशन में भारतीय बाजारों की चाल और ग्लोबल बाजारों में गिरावट की वजह से कंफ्यूजन पैदा हो रहा था कि ट्रेडर्स को आखिर क्या करना चाहिए. अनिल सिंघवी ने कहा कि शेयर बाजार में ट्रेडिंग करते समय कई बार इस पर कॉल लेनी पड़ती है कि आप कितना रिस्क ले सकते हो. ऐसे में अनिल सिंघवी ने बताया कि शेयर बाजार में नए ट्रेडर्स को किन खास बातों का ध्यान रखना चाहिए.

R2R फैक्टर पर जोर दें

अनिल सिंघवी ने बताया कि शेयर बाजार में R2R फैक्टर काफी अहम है और ट्रेडर्स के लिए इसकी अलग-अलग परिभाषा है. R2R यानी कि रिस्क टू रिवॉर्ड या रिवॉर्ड टू रिस्क, ये दोनों तरीकों से ही इस्तेमाल किया जा सकता है.

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किन बातों का ख्याल रखने से आप बनेंगे सफल #Trader ?🔥

🎯नए ट्रेडर्स को क्यों जरूर सीखना चाहिए रिस्क मैनेजमेंट?

ओवर नाइट पोजीशन में रिस्क मैनेजमेंट करना कितना अहम?

ट्रेडर्स जरूर देखिए अनिल सिंघवी का ये वीडियो#StockMarket #TradingView #tradingtips @AnilSinghvi_ pic.twitter.com/F1Bpe7i3Zx

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रिस्क मैनेजमेंट है जरूरी

अनिल सिंघवी ने कहा कि नए निवेशकों को रिस्क और रिवॉर्ड पर खास ध्यान देना चाहिए. अनिल सिंघवी ने कहा कि मान लीजिए कि बाजार में तेजी को देखते हुए ट्रेडर ने मुनाफा वसूल कर लिया है लेकिन अगले दिन मार्केट फिर तेजी के साथ खुला तो इस पर दुख होता है लेकिन कॉल यहां ये लेनी है कि अगर बाजार में तेजी के साथ ना खुलकर गिरावट के साथ खुलता तो इस स्थिति में ओवरनाइट पोजीशन कितनी रखनी है और रिस्क को मैनेज करना है तो कितना करना है.

ट्रेडिंग के समय अनुशासन रखे बरकरार

अनिल सिंघवी ने कहा कि पिछले 2 दिनों बाजार में तेजी देखने को मिली तो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लोगों के बीच हाहाकार मच गया. लेकिन बाजार में ट्रेडिंग की है तो 30 दिनों में से एक या दो दिन ऐसे आएंगे, जहां ट्रेडिंग आपके विपरीत होगी.

अनिल सिंघवी ने कहा कि पिछले 1-1.5 साल में जितने लोगों ने ट्रेडिंग शुरू की है और जो ओवरनाइट पोजीशन ले रहे हैं, उन्हें पहले रिस्क मैनेजमेंट सीखना चाहिए. रिस्क मैनेजमेंट सीखने का एक ही तरीका है कि अगर मेरे मार्केटिंग स्ट्रैटेजी के विपरीत बाजार में काम करता है तो आपको क्या करना है. ट्रेडर के तौर पर कितनी पोजीशन होनी चाहिए.

ओवर नाइट रिस्क लेते हैं ट्रेडर्स

अनिल सिंघवी ने कहा कि कई मामलों में देखा गया है कि ट्रेडर्स ओवरनाइट रिस्क लेते हैं. लेकिन इंट्राडे में मौका मिलने पर रिस्क नहीं लेते. अनिल सिंघवी ने कहा कि अगर आपको सफल ट्रेडर बनना है तो आपको पता होना चाहिए कि आपको कहां रिस्क लेना है और कितना लेना है.

शेयर बाजार में निवेश तो रिटर्न में भी क्लेश

बाजार में तेजी का दौर बना हुआ है और एक के बाद एक आने वाले कई चर्चित आरंभिक सार्वजनिक निर्गमों (आईपीओ) को हाथोहाथ लिया भी गया है। इस वजह से लोगों ने शेयरों में सीधे रकम लगानी भी शुरू कर दी है। खबरों के मुताबिक 2016 में लगभग 24 लाख नए डीमैट खाते खुले, जो 2008 के बाद से सबसे बड़ा आंकड़ा है। इन नए डीमैट धारकों और निवेशकों को एक बात ध्यान रखनी चाहिए। यदि आपने शेयरों में कारोबार किया है तो आयकर (आई-टी) रिटर्न दाखिल करना आपके लिए दिक्कत भरा हो सकता है।

आयकर के नजरिये से नफे और नुकसान को अलग-अलग तरीके से आंका जाता है। इसमें कई बातें देखी जाती हैं, जैसे आपने शेयरों की डिलिवरी लही या नहीं, आपने इंट्रा-डे कारोबार किया या नहीं, कहीं आपने वायदा-विकल्प में तो कारोबार नहीं किया। आपको अपना रिटर्न किस तरह दाखिल करना चाहिए, यह बात इस पर भी निर्भर करेगी कि आपने कितनी बार सौदे किए और कितने सौदे किए।

यदि आपकी सभी लिवाली और बिकवाली डिलिवरी पर आधारित रही है और आपका शेयर कारोबार आपकी आय का बहुत मामूली हिस्सा है तो आयकर रिटर्न करना बहुत सरल काम है। आपको आईटीआर-2 फॉर्म दाखिल करना होगा। यदि आपने 12 महीने से कम समय में ही शेयर बेच डाले हैं तो आपको उनसे हुए मुनाफे पर 15 फीसदी की दर से अल्पावधि पूंजीगत लाभ कर चुकाना होगा।

अगर आपने कुछ शेयर नुकसान उठाते हुए बेचे हैं तो उस नुकसान को उसी साल आपके अल्पावधि पूंजीगत लाभ कर में से घटा दिया जाएगा, जिससे आप पर कर की देनदारी कुछ कम हो जाएगी। पीडब्ल्यूसी इंडिया में व्यक्तिगत कर के पार्टनर एवं लीडर कुलदीप कुमार कहते हैं, 'अगर आपको संपत्ति, सोना, शेयर, डिबेंचर या कोई पूंजीगत संपत्ति बेचने पर किसी तरह का लाभ हुआ है तो आप इस नुकसान को उसमें से घटा सकते हैं। लेकिन अगर आपने शेयर अपने पास 1 साल से अधिक समय तक रखे थे और उसके बाद उन्हें घाटे में बेचा था तो आप उस घाटे को दीर्घावधि लाभ में से नहीं घटा सकते। इसकी वजह यह है कि दीर्घावधि लाभ पर किसी तरह का कर ही नहीं लगता।

रिटर्न दाखिल करने में दिक्कत उस वक्त आती है, जब आप बार-बार शेयर खरीदते-बेचते हैं और आपका कारोबार बहुत अधिक होता है। उस स्थिति में आपको कारोबारी यानी बिजनेस ओनर के तौर पर रिटर्न दाखिल करना होगा और उसके लिए आईटीआर-4 फॉर्म भरना होगा। क्लियरटैक्स डॉट इन में चार्टर्ड अकाउंटेंट और कर विशेषज्ञ प्रीति खुराना कहती हैं, 'अगर कोई शख्स भाव में उतार-चढ़ाव का फायदा उठाने के लिए ही कारोबार करता है तो आयकर विभाग उसे निवेश नहीं मानता।'

कर का हिसाब-किताब लगाते वक्त इस बात पर विवाद कई साल से चल रहा है कि किसी व्यक्ति ने कीमतों में उतार-चढ़ाव से मुनाफा कमाने की कोशिश में शेयर बेचे थे या उसने कंपनी की वृद्घि का फायदा उठाने की कोशिश की थी। कर आकलन अधिकारी लेनदेन की प्रकृति देखकर इसका फैसला कर सकता है। खुराना बताती हैं कि अधिकारी वेतनभोगियों को कारोबारी यानी बिजनेस ओनर के तौर पर रिटर्न दाखिल करने की सलाह देने से पहले दो पैमानों पर विचार करते हैं। पहला, यदि शेयर ट्रेडिंग से हुआ कारोबार वेतन के बराबर है तो करदाता को शेयर कारोबारी मान लिया जाता है। दूसरे पैमाने के तौर पर वे देखते हैं कि कारोबार कितनी बार किया गया है। यदि लिवाली और बिकवाली लगातार चलती रही है तो इसका मतलब है कि उस शख्स ने कीमतों में उतार-चढ़ाव का फायदा उठाने की कोशिश की है और वह निवेशक नहीं है। यदि कोई वयक्ति खुद को शेयर कारोबारी या निवेशक साबित नहीं कर पाता है तो उसके लिए बिजनेस ओनर के तौर पर रिटर्न दाखिल करना ही बेहतर होगा।

अगर आप पेशेवर हैं, फ्रीलांसर हैं, गृहिणी हैं, सेवानिवृत्त हो चुके हैं या आपका अपना कारोबार है तो भी यही सिद्घांत लागू होता है। अगर आप अक्सर शेयरों के सौदे करते हैं तो रिटर्न दाखिल करते वक्त शेयर बाजार के सौदों को पूंजीगत लाभ के मद में नहीं दिखाएं। अगर आपने डेरिवेटिव्स में कारोबार किया है या इंट्रा-डे ट्रेडिंग करते रहे हैं तो आपको हुए नफे या नुकसान को सीधे कारोबारी आय मान लिया जाएगा। आपके डेरिवेटिव्स सौदे आपके वेतन के मामूली हिस्सा भर ही क्यों न हों और कभीकभार ही किए गए क्यों न हों, आपको रिटर्न तो बिजनेस ओनर के तौर पर ही दाखिल करना पड़ेगा। ऐसी सूरत में आपको आईटीआर-4 फॉर्म भरना होगा। कर विश्लेषकों की राय है कि आपने केवल चार या पांच डेरिवेटिव्स सौदे ही क्यों न किए हों, आईटीआर-4 भरना ही आपके लिए ठीक रहेगा।

इसमें सबसे पहले यह देखिए कि आपको अपने कारोबार में कितना मुनाफा हुआ है और कितना नुकसान झेलना पड़ा है। इसके अलावा सौदों से हुई सकल आय की गणना कीजिए और यह भी देखिए कि पूरे वित्त वर्ष में आपने कुल कितने सौदे किए हैं। बिजनेस ओनर के रूप में आप खर्चों को अपनी सकल आय से घटा सकते हैं और अपनी कर देनदारी कम कर सकते हैं। आप व्यवसाय के लिए इस्तेमाल होने वाली हमारत के किराये या रखरखाव के खर्च, मोबाइल फोन या टेलीफोन के बिल, इंटरनेट बिल, डीमैट खाते के शुल्क, ब्रोकर के कमीशन, कारोबार के लिए इस्तेमाला होने वाले लैपटॉप पर मूल्यह्रïास और अपने काम से जुड़े किसी भी अन्य खर्च को आय में से घटा सकते हैं। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि सभी खर्च वास्तविक हों क्योंकि कई करदाताओं को बाद में कर नोटिस भी मिल चुके हैं, जिनमें उनसे यह बताने के लिए कहा गया है कि खर्च कहां और कैसे हुए थे। आपको बैलेंस शीट भी तैयार करनी होगी, जिसका विवरण आपको आईटी-4 में करना होगा। यह आपकी परिसंपत्तियों और देनदारियों का ब्योरा यानी स्टेटमेंट होता है।

बिजनेस ओनर के तौर पर आपको जो भी नुकसान हुआ है, उसे आप अगले आठ वित्त वर्षों तक ले जा सकते हैं और उन आठों वर्षों में हुए फायदे में से वह नुकसान घटा सकते हैं। हालांकि वायदा-विकल्प और इंट्रा-डे में हुए नुकसान के मामले में प्रावधान अलग-अलग हैं। यदि आपने एफऐंडओ में नुकसान उठाया है तो आप उसी आकलन वर्ष में इसे किराये और ब्याज से हुई आय में से घटा सकते हैं। निवेश से हुए लाभ में से भी आप इसे घटा सकते हैं। लेकिन आप नुकसान को वेतन में से नहीं घटा सकते। अगर आप नुकसान को अगले वित्त वर्ष में ले जा रहे हैं तो आप उन्हें आगे के वर्षों में हुए पूूंजीगत लाभ में से ही घटा सकते हैं। जिन लोगों ने इंट्रा-डे सौदे किए हैं, उनके सौदों को कर विभाग 'सटोरिया आय' मानता है। इसका मतलब है कि नुकसान सिर्फ 'सट्टïा व्यवसाय' में ही समायोजित किया जा सकेगा और यह सहूलियत भी अगले चार साल तक ही मिलेगी। मेकमाईरिटन्र्स डॉट कॉम के संस्थापक विक्रम रामचंद कहते हैं, 'करदाता इन प्रावधनों का तभी लाभ उठा सकते हैं, जब वे समय पर रिटर्न फाइल करते हैं। साथ ही उन्हें अपने बहीखाते को ऑडिट भी कराना पड़ता है। विलंब की स्थिति में आप नुकसान को आगे नहीं ले जा सकते हैं।' बहीखाते को ऑडिट कराने में कम से कम 25,000 रुपये खर्च करने होंगे।

Grey Market में किस IPO का क्या चल रहा भाव? जानिए आपको फायदा होगा या नुकसान?

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो

by बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो ।।
Published - Sunday, 13 November, 2022

GMP IPO

नई दिल्ली: जब भी कोई निवेशक किसी कंपनी के IPO में अप्लाई करता है तो उसकी नजर Grey Market पर जरूर रहती है. उसे देखने के बाद वह, खासकर रिटेल इन्वेस्टर्स यह तय करते हैं कि उन्हें किस कंपनी के IPO में अप्लाई करना चाहिए और किसमें नहीं. आइए, सबसे पहले यह समझते हैं कि आखिर ये Grey Market होता क्या है?

क्या होता है IPO ग्रे-मार्केट
शेयर बाजार में जो ट्रेडिंग होती है उसकी निगरानी मार्केट रेगुलेटर सेबी करता है, इसे White Market कहते हैं, क्योंकि ये कानून के दायरे में होता है. दूसरी तरफ कुछ बिजनेस काले धंधे या Black Market होते हैं, जो कानून की नजर में गलत होते हैं, जैसे कोई चीज स्मगलिंग या चोरी करके बेची जाए, लेकिन इन सबके बीच में एक ग्रे एरिया होता है, जो न तो White Market के दायरे में आता है और न Black Market के दायरे में. यानी न तो वो कानूनी है और न ही गैर-कानूनी. बस वो रेगुलेटेड नहीं है. ठीक ऐसे ही होते हैं IPO ग्रे मार्केट, जिसमें शेयरों की ट्रेडिंग तो होती है, लेकिन उन पर सेबी के नियम लागू नहीं होते. सेबी के नियम लिस्टेड कंपनियों पर ही लागू होते हैं, लेकिन अगर कोई IPO लिस्ट ही नहीं हुआ तो उस पर सेबी के नियम लागू नहीं हो सकते.

ग्रे-मार्केट निवेशकों के लिए कैसे मददगार है?
ग्रे मार्केट और कुछ नहीं बल्कि एक संकेत होता है कि कोई शेयर लिस्ट होने के बाद कैसा परफॉर्म करेगा. यदि कोई शेयर ग्रे-मार्केट में IPO Price ने नीचे ट्रेड कर रहा होता है तो उसकी परफॉर्मेंस अच्छी नहीं मानी जाती है और जो IPO Price से ऊपर ट्रेड कर रहा होता है, उसके प्रति रिटेल इन्वेस्टर्स अट्रैक्ट होते हैं. भले ही ग्रे-मार्केट आधिकारिक नहीं है, लेकिन गैर-कानूनी भी नहीं है.

किस कंपनी के IPO का ग्रे-मार्केट में क्या चल रहा भाव
- Fusion Micro Finance का IPO Price 368 रुपये है और इसका GMP 5 रुपये अधिक चल रहा है.
- Global Health का IPO Price 336 रुपये है और इसका GMP 20 रुपये अधिक चल रहा है.
- Bikaji Foods का IPO Price 300 रुपये है और इसका GMP 35 रुपये अधिक चल रहा है.
- Archeran Chemicals का IPO Price 407 रुपये है और इसका GMP 80 रुपये अधिक चल रहा है.
- Five Star Business Finance का IPO Price 474 रुपये है और इसका GMP 5 रुपये अधिक चल रहा है.
- Kaynes Technology का IPO Price 587 रुपये है और इसका GMP 85 रुपये अधिक चल रहा है.
- Inox Green Energy का IPO Price 65 रुपये है और इसका GMP 10 रुपये अधिक चल रहा है.
- Daps Advertising का IPO Price 30 रुपये है और इसका GMP 8 रुपये अधिक चल रहा है.
- Vital Chemtech का IPO Price 101 रुपये है और इसका GMP 80 रुपये अधिक चल रहा है.
- Amiable Logistics का IPO Price 81 रुपये है और इसका GMP 55 रुपये अधिक चल रहा है.

IPO ग्रे-मार्केट कैसे काम करता है
आमतौर पर IPO ग्रे-मार्केट तब एक्टिव होता है जब कोई कंपनी अपना IPO लाने का ऐलान करती है और उसका प्राइस बैंड तय करती है. प्राइस बैंड तय होने और लिस्टिंग के बीच में करीब 10-12 दिन का वक्त होता है, इस अवधि के दौरान भी ग्रे मार्केट में शेयरों की ट्रेडिंग शुरू हो जाती है, भले ही IPO शेयर मार्केट में लिस्ट न हुआ हो. इस दौरान IPO एप्लीकेशन को खरीदा या बेचा जाता है, अगर किसी को शेयर अलॉट हो जाते हैं तो भी उन शेयरों को एडवांस में ही खरीदा और बेचा जाता है. इसको ऐसे समझिए कि इसमें कोई सेलर IPO अलॉटमेंट के लिए एप्लीकेशन देता है, तो दूसरी ओर कोई खरीदार इश्यू की लिस्टिंग से पहले ही इश्यू प्राइस से ज्यादा पैसे देकर उन शेयरों को खरीदना चाहता है. ये सौदा बीच में मौजूद एक डीलर करवाता है. डीलर सेलर से कॉन्टैक्ट करके उन शेयरों को प्रीमियम पर ग्रे मार्केट में बेचने को कहता है. अगर सेलर लिस्टिंग के खतरे को मोल नहीं लेना चाहता और एक फिक्स मुनाफा कमाकर निकल जाना चाहता है तो वो शेयरों को एक फिक्स्ड अमाउंट पर ग्रे मार्केट में बेचने के लिए राजी हो जाता है. इसके बाद डीलर बायर को ये बताता है कि उसने शेयरों को सेलर से खरीद लिया है. ये शेयर बायर को ट्रांसफर कर दिए जाते हैं. अब इसके बाद बायर की मर्जी कि लिस्टिंग के बाद वो उन शेयरों को रखता है या बेच देता है.

लोग ग्रे मार्केट में ट्रेड क्यों करते हैं
जब कोई IPO बाजार में आने वाला होता है तो लोगों में उसे लेकर काफी उत्सुकता रहती है, खासतौर पर तब जब कोई बड़ा IPO आता है. जैसे कि मान लीजिए कि Paytm का IPO. लोगों को लगता है कि अगर ये इश्यू बाजार में आएगा तो काफी अच्छा लिस्ट होगा, तो क्यों न इसे लिस्टिंग से पहले ब्लॉक करके रख लिया जाए. मान लीजिए कि शेयर का इश्यू प्राइस 1000 रुपये है और उसे ग्रे मार्केट में 20 रुपये प्रति शेयर के प्रीमियम पर खरीदा गया और शेयर 40 रुपये के प्रीमियम पर लिस्ट हुआ है तो निवेशक को 20 रुपये प्रति शेयर का फायदा हो जाएगा.

ग्रे-मार्केट के खतरे
सबसे बड़ा खतरा तो ये है कि ये सेबी के दायरे में नहीं आता है, इसमें सबकुछ जुबानी होता है कुछ भी कॉन्ट्रैक्ट लिखित में नहीं होता है. इसलिए कब कोई मुकर जाए, इसका खतरा हमेशा बना रहता है. हालांकि सेलर और बायर के बीच में हमेशा एक डीलर होता है जो ये दोनों के बीच में इस डील को कराता है और ये सुनिश्चित कराता है कि किसी भी तरह की गड़बड़ी न हो पाए.

क्या होता है ग्रे-मार्केट प्रीमियम
ग्रे मार्केट का पूरा कामकाज ही प्रीमियम की धुरी पर घूमता है. इसे समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं. मान लीजिए किसी कंपनी ABC ने अपना IPO लाने का ऐलान किया, इश्यू प्राइस तय किया 1000 रुपये, 15 शेयरों का लॉट है.

ग्रे मार्केट का कोई खरीदार इसे 300 रुपये ज्यादा देकर पर भी लेने को राजी है, उसे लगता है कि ये करीब 1600 रुपये प्रति शेयर के ऊपर ही लिस्ट होगा, इसलिए उसे कम से कम 300 रुपये प्रति शेयर का फायदा हो जाएगा. ऐसे में वो खरीदार किसी विक्रेता से 300 रुपये के प्रीमियम पर शेयर खरीदने की डील कर लेता है. इसमें विक्रेता को एक लॉट पर 300X15 यानी 4500 रुपये का फिक्स प्रॉफिट मिल जाता है. जब भी शेयर लिस्ट होगा विक्रेता को 15 शेयर खरीदार को ट्रांसफर करने होंगे. ऐसे में जो ग्रे मार्केट प्रीमियम होगा वो 300 रुपये होगा. मगर विक्रेता को ये लगता है कि इश्यू की लिस्टिंग काफी अच्छी हो सकती है और 300 रुपये का प्रीमियम कम है, इसे 500 रुपये होना चाहिए तो यहीं से शुरू होता है डिमांड और सप्लाई का खेल, और तय होता है ग्रे मार्केट का प्रीमियम.

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शेयर बाजार में क्या है कमोडिटी ट्रेडिंग, जानिए कैसे करते हैं खरीद-बेच, कितना फायदेमंद

commodity trading

जिस तरह से हम अपनी रोजमर्रा की जरुरतों के लिए कोई वस्तु यानी कमोडिटी (commodity) जैसे अनाज, मसाले, सोना खरीदते हैं वैसे ही शेयर बााजार (share market) में भी इन कमोडिटी की खरीद बेच होती है. शेयर बााजार के कमोडिटी सेक्शन में इनकी ही खरीद बेच को कमोडिटी ट्रेडिंग (commodity trading) कहते हैं.

  • News18Hindi
  • Last Updated : May 06, 2021, 09:25 IST

मुंबई. जिस तरह से हम अपनी रोजमर्रा की जरुरतों के लिए कोई वस्तु यानी कमोडिटी (commodity) जैसे अनाज, मसाले, सोना खरीदते हैं वैसे ही शेयर बााजार (share market) में भी इन कमोडिटी की खरीद बेच होती है. शेयर बााजार के कमोडिटी सेक्शन में इनकी ही खरीद बेच को कमोडिटी ट्रेडिंग (commodity trading) कहते हैं. यह कंपनियों के शेयरों यानी इक्विटी मार्केट की ट्रेडिंग से थोड़ी अलग होती है. कमोडिटी की ट्रेडिंग ज्यादातर फ्यूचर मार्केट में होती है. भारत में 40 साल बाद 2003 में कमोडिटी ट्रेडिंग पर लगा प्रतिबंध हटा लिया गया था.

सामान्य तौर पर, कमोडिटी को चार प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है.

कीमती धातु - सोना, चांदी और प्लेटिनम

बेस मेटल - कॉपर, जिंक, निकल, लेड, टीन और एन्युमिनियम

एनर्जी - क्रूड ऑयल, नेचुरल गैस, एटीएफ, गैसोलाइन

मसाले - काली मिर्च, धनिया, इलायची, जीरा, हल्दी और लाल मिर्च.

अन्य - सोया बीज, मेंथा ऑयल, गेहूं, चना

कमोडिटी ट्रेडिंग में क्या अलग है
- कमोडिटी ट्रेडिंग और शेयर बाज़ार ट्रेडिंग करने में बुनियादी फर्क है. शेयर बाजार में आप शेयरों को एक बार खरीद कर कई साल बाद भी बेच सकते हैं लेकिन कमोडिटी मार्केट में दो-तीन नियर मंथ में ही कारोबार होता है. इसलिए सौदे खरीदते या बेचने में एक निश्चित अवधि का पालन करना जरूरी होता है. यह इक्विटी फ्यूचर ट्रेडिंग (equity future trading) की तरह होता है.

फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट क्या है -

दो पार्टियों के बीच यह खरीदने बेचने का ऐसा सौदा होता है जो आज के दाम पर फ्यूचर की डेट में एक्सचेंज होता है. कमोडिटी राष्ट्रीय स्तर ऑनलाइन मॉनिटरिंग और सर्विलांस मैकेनिज्म के साथ ट्रेड होता है. एमसीएक्स और एनसीडीएक्स में कमोडिटी फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट एक महीने, दो महीने और तीन महीने के लिए एक्सापाइरी सायकल के आधार पर खरीदे जाते हैं.

पोर्टफोलियो में विविधता के लिए कमोडिटी में निवेश फायदेमंद -
विशेषज्ञों के मुताबिक पोर्टफोलियों में विविधता के लिए निवेशक को इक्विटी के साथ साथ कमोडिटी में भी निवेश करना चाहिए. इससे कीमतों में उतार-चढ़ाव का फायदा लिया जा सकता है. हालांकि, रिटेल और छोटे निवेशकों को कमोडिटी में निवेश में विशेष सावधान होना चाहिए. बाजार की अस्थिरता और कम जानकारी पूरा पैसा डूबा सकती है. निवेशकों को इसमें डिमांड सायकल और कौन से कारक कमोडिटी बाजार को प्रभावित करते हैं यह जानना जरूरी होता है.

कमोडिटी ट्रेडिंग से फायदा -
भारत में 25 लाख करोड़ रुपए सालाना का कमोडिटी मार्केट तेजी से बढ़ रहा है. यह मुख्यत लिवरेज मार्केट होता है. मतलब छोटे और मध्यम निवेशक भी छोटी सी राशि से मार्जिन मनी के जरिये कमोडिटी ट्रेडिंग कर सकते हैं.

हेजिंग -
किसानों, मैन्युफैक्चरर और वास्तविक उपयोगकर्ताओं के लिए कमोडिटी के दाम में उतार चढ़ाव का रिस्क कम हो जाता है.

पोर्टफोलियों में विविधता -
कमोडिटी एक नए एसेट क्लास के रुप में विकसित हो रही है. यह पोर्टपोलियों में प्रभावी विविधता लाती है.

ट्रेडिंग अपॉरच्यूनिटी -
कमोडिटी का डेली टर्नओवर लगभग 22,000 - 25,000 करोड़ रुपए है, जो एक बेहतर ट्रेडिंग अपॉर्च्यूनिटी उपलब्ध कराती है.

हाई लिवरेज -
इसमें बहुत कम पैसे में आप मार्जिन मनी के सहारे बड़े सौदे कर सकते हैं.

समझने में आसानी-
कमोडिटी के बेसिक नेचर और सिंपल इकोनॉमिक फंडामेंटल की वजह से इसे समझना भी आसान होता है

इंडियन कमोडिटी एक्सचेंज का क्या है रोल -

इंडियन कमोडिटी एक्सचेंज वह संस्था है जो कमोडिटी फ्यूचर में ट्रेडिंग के लिए प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराती है. जैसे स्टॉक मार्केट इक्विटी में ट्रेडिंग के लिए स्पेस उपलब्ध कराता है. वर्तमान में फ्यूचर ट्रेडिंग के लिए 95 कमोडिटी उपलब्ध है जो रेगुलेटर फॉर्वर्ड मार्केट कमिशन ( एफएमसी) द्वारा जारी गाइडलाइन और फ्रेमवर्क के अंदर हैं. भारत में 3 नेशनल और 22 क्षेत्रिय एक्सचेंज अभी काम कर रहे हैं.

एमसीएक्स (मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज) क्या है -

एमसीएक्स (मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज) द्वारा सुगम कमोडिटी मार्केट में कमोडिटी का कारोबार अक्सर एमसीएक्स ट्रेडिंग के रूप में जाना जाता है. जिस प्रकार बीएसई और एनएसई स्टॉक में कारोबार के लिए मंच प्रदान करते हैं, वैसे ही एमसीएक्स कमोडिटी में कारोबार के लिए एक मंच प्रदान करता है. इसमें कारोबार मेजर ट्रेडिंग मेटल और एनर्जी में होती है. इसमें रोजाना एक्सचेंज वैल्यूम 17,000-20,000 करोड़ है.

एनसीडीएक्स-
यह दिसंबर 2003 में अस्त्तिव मे आया. इसमें मुख्यत एग्री ट्रेडिंग होती है. रोजाना एक्सचेंज वैल्यूम लगभग 2000 - 3000 करोड़.

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शेयर बाजार में क्या है कमोडिटी ट्रेडिंग, जानिए कैसे करते हैं खरीद-बेच, कितना फायदेमंद

commodity trading

जिस तरह से हम अपनी रोजमर्रा की जरुरतों के लिए कोई वस्तु यानी कमोडिटी (commodity) जैसे अनाज, मसाले, सोना खरीदते हैं वैसे ही शेयर बााजार (share market) में भी इन कमोडिटी की खरीद बेच होती है. शेयर बााजार के कमोडिटी सेक्शन में इनकी ही खरीद बेच को कमोडिटी ट्रेडिंग (commodity trading) कहते हैं.

  • News18Hindi
  • Last Updated : May 06, 2021, 09:25 IST

मुंबई. जिस तरह से हम अपनी रोजमर्रा की जरुरतों के लिए कोई वस्तु यानी कमोडिटी (commodity) जैसे अनाज, मसाले, सोना खरीदते हैं वैसे ही शेयर बााजार (share market) में भी इन कमोडिटी की खरीद बेच होती है. शेयर बााजार के कमोडिटी सेक्शन में इनकी ही खरीद बेच को कमोडिटी ट्रेडिंग (commodity trading) कहते हैं. यह कंपनियों के शेयरों यानी इक्विटी मार्केट की ट्रेडिंग से थोड़ी अलग होती है. कमोडिटी की ट्रेडिंग ज्यादातर फ्यूचर मार्केट में होती है. भारत में 40 साल बाद 2003 में कमोडिटी ट्रेडिंग पर लगा प्रतिबंध हटा लिया गया था.

सामान्य तौर पर, कमोडिटी को चार प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है.

कीमती धातु - सोना, चांदी और प्लेटिनम

बेस मेटल - कॉपर, जिंक, निकल, लेड, टीन और एन्युमिनियम

एनर्जी - क्रूड ऑयल, नेचुरल गैस, एटीएफ, गैसोलाइन

मसाले - काली मिर्च, धनिया, इलायची, जीरा, हल्दी और लाल मिर्च.

अन्य - सोया बीज, मेंथा ऑयल, गेहूं, चना

कमोडिटी ट्रेडिंग में क्या अलग है
- कमोडिटी ट्रेडिंग और शेयर बाज़ार ट्रेडिंग करने में बुनियादी फर्क है. शेयर बाजार में आप शेयरों को एक बार खरीद कर कई साल बाद भी बेच सकते हैं लेकिन कमोडिटी मार्केट में दो-तीन नियर मंथ में ही कारोबार होता है. इसलिए सौदे खरीदते या बेचने में एक निश्चित अवधि का पालन करना जरूरी होता है. यह इक्विटी फ्यूचर ट्रेडिंग (equity future trading) की तरह होता है.

फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट क्या है -

दो पार्टियों के बीच यह खरीदने बेचने का ऐसा सौदा होता है जो आज के दाम पर फ्यूचर की डेट में एक्सचेंज होता है. कमोडिटी राष्ट्रीय स्तर ऑनलाइन मॉनिटरिंग और सर्विलांस मैकेनिज्म के साथ ट्रेड होता है. एमसीएक्स और एनसीडीएक्स में कमोडिटी फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट एक महीने, दो महीने और तीन महीने के लिए एक्सापाइरी सायकल के आधार पर खरीदे जाते हैं.

पोर्टफोलियो में विविधता के लिए कमोडिटी में निवेश फायदेमंद -
विशेषज्ञों के मुताबिक पोर्टफोलियों में विविधता के लिए निवेशक को इक्विटी के साथ साथ कमोडिटी में भी निवेश करना चाहिए. इससे कीमतों में उतार-चढ़ाव का फायदा लिया जा सकता है. हालांकि, रिटेल और छोटे निवेशकों को कमोडिटी में निवेश में विशेष सावधान होना चाहिए. बाजार की अस्थिरता और कम जानकारी पूरा पैसा डूबा सकती है. निवेशकों को इसमें डिमांड सायकल और कौन से कारक कमोडिटी बाजार को प्रभावित करते हैं यह जानना जरूरी होता है.

कमोडिटी ट्रेडिंग से फायदा -
भारत में 25 लाख करोड़ रुपए सालाना का कमोडिटी मार्केट तेजी से बढ़ रहा है. यह मुख्यत लिवरेज मार्केट होता है. मतलब छोटे और मध्यम निवेशक भी छोटी सी राशि से मार्जिन मनी के जरिये कमोडिटी ट्रेडिंग कर सकते हैं.

हेजिंग -
किसानों, मैन्युफैक्चरर और वास्तविक उपयोगकर्ताओं के लिए कमोडिटी के दाम में उतार चढ़ाव का रिस्क कम हो जाता है.

पोर्टफोलियों में विविधता -
कमोडिटी नए निवेशकों को शेयर ट्रेडिंग कैसे करनी चाहिए? एक नए एसेट क्लास के रुप में विकसित हो रही है. यह पोर्टपोलियों में प्रभावी विविधता लाती है.

ट्रेडिंग अपॉरच्यूनिटी -
कमोडिटी का डेली टर्नओवर लगभग 22,000 - 25,000 करोड़ रुपए है, जो एक बेहतर ट्रेडिंग अपॉर्च्यूनिटी उपलब्ध कराती है.

हाई लिवरेज - नए निवेशकों को शेयर ट्रेडिंग कैसे करनी चाहिए?
इसमें बहुत कम पैसे में आप मार्जिन मनी के सहारे बड़े सौदे कर सकते हैं.

समझने में आसानी-
कमोडिटी के बेसिक नेचर और सिंपल इकोनॉमिक फंडामेंटल की वजह से इसे समझना भी आसान होता है

इंडियन कमोडिटी एक्सचेंज का क्या है रोल -

इंडियन कमोडिटी एक्सचेंज वह संस्था है जो कमोडिटी फ्यूचर में ट्रेडिंग के लिए प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराती है. जैसे स्टॉक मार्केट इक्विटी में ट्रेडिंग के लिए स्पेस उपलब्ध कराता है. वर्तमान में फ्यूचर ट्रेडिंग के लिए 95 कमोडिटी उपलब्ध है जो रेगुलेटर फॉर्वर्ड मार्केट कमिशन ( एफएमसी) द्वारा जारी गाइडलाइन और फ्रेमवर्क के अंदर हैं. भारत में 3 नेशनल और 22 क्षेत्रिय एक्सचेंज अभी काम कर रहे हैं.

एमसीएक्स (मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज) क्या है -

एमसीएक्स (मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज) द्वारा सुगम कमोडिटी मार्केट में कमोडिटी का कारोबार अक्सर एमसीएक्स ट्रेडिंग के रूप में जाना जाता है. जिस प्रकार बीएसई और एनएसई स्टॉक में कारोबार के लिए मंच प्रदान करते हैं, वैसे ही एमसीएक्स कमोडिटी में कारोबार के लिए एक मंच प्रदान करता है. इसमें कारोबार मेजर ट्रेडिंग मेटल और एनर्जी में होती है. इसमें रोजाना एक्सचेंज वैल्यूम 17,000-20,000 करोड़ है.

एनसीडीएक्स-
यह दिसंबर 2003 में अस्त्तिव मे आया. इसमें मुख्यत एग्री ट्रेडिंग होती है. रोजाना एक्सचेंज वैल्यूम लगभग 2000 - 3000 करोड़.

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