प्रवृत्ति के साथ व्यापार

कैंडलस्टिक चार्ट की बुनियादी समझ
एक व्यापारी के लिए, कैंडलस्टिक चार्ट की दो सबसे पसंदीदा विशेषताएँ हैं:
- प्रत्येक कैंडलस्टिक एक विशेष अवधि के दौरान व्यापारों की विशिष्ट संख्या के पूरा होने को दर्शाता है।
- इससे यह भी पता चलता है कि उस विशेष अवधि के दौरान अधिक बिक्री का दबाव था या खरीदी का दबाव था।
इस ब्लॉग में, हम कैंडलस्टिक चार्ट और उनका विश्लेषण कैसे करें के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे:
कैंडलस्टिक्स चार्ट का उद्गम:
जापानी कैंडलस्टिक चार्ट भविष्य के मूल्य उतार-चढ़ाव का विश्लेषण करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सबसे पुरानी प्रकार की चार्टिंग तकनीक है।
1700 के दशक में, कैंडलस्टिक चार्ट के शुरुआती रूपों का इस्तेमाल चावल की कीमतों का अनुमान लगाने के लिए किया गया था।
1750 में, मुनेहिसा होमा के नाम से एक जापानी व्यापारी ने अपने कैंडलस्टिक विश्लेषण का इस्तेमाल सकाता में चावल के आदान-प्रदान में व्यापार करने के लिए करना शुरू किया।
कैंडलस्टिक चार्ट का निर्माण:
प्रत्येक कैंडलस्टिक मुख्य रूप से रियल बॉडी और विक्स से बना होता है जिसे शड़ौस या टेल्स के रूप में भी जाना जाता है:
कैंडलस्टिक चार्ट पर पैटर्न की व्याख्या करना:
जैसा कि कैंडलस्टिक्स अधिक आकर्षक होती हैं, व्यापारी ऐसी कैंडलस्टिक पैटर्न की तलाश करता है जो निरंतरता या उलट-फेर हो सकती हो।
इन कैंडलस्टिक पैटर्न को मंदी और तेजी वाली कैंडलस्टिक पैटर्न में भी वर्गीकृत किया जा सकता है।
मार्केट एक्सपर्ट्स से कैंडलस्टिक विश्लेषण की मूल बातें सीखें
कैंडलस्टिक पैटर्न एक एकल कैंडलस्टिक पैटर्न हो सकता है या दो-तीन कैंडलस्टिक्स को मिलाकर बनाया जा सकता है।
इस तरह के कैंडलस्टिक पैटर्न के कुछ उदाहरण हैं:
एकल कैंडलस्टिक पैटर्न का उदाहरण:
कई कैंडलस्टिक पैटर्न्स कई कैंडल्स द्वारा बनाई जाती है।
कई कैंडलस्टिक पैटर्न का उदाहरण:
o बुलिश एंगलफ़ींग
o बीयरिश एंगलफ़ींग
कैंडलस्टिक चार्ट का विश्लेषण करते समय तीन मान्य ताएँ:
1. एक को ताकत खरीदनी चाहिए और कमजोरी को बेचना चाहिए:
शक्ति प्रवृत्ति के साथ व्यापार आमतौर पर एक तेजी (हरे) कैंडल द्वारा दर्शायी जाती है जबकि कमजोरी एक मंदी (लाल) कैंडल द्वारा दर्शायी जाती है।
आम तौर पर हरे रंग की कैंडल के दिन खरीदना चाहिए और प्रवृत्ति के साथ व्यापार लाल कैंडल के दिन बेचना चाहिए।
2. एक को पैटर्न के साथ लचीला होना चाहिए:
बाजार की स्थितियों के कारण पैटर्न में मामूली बदलाव हो सकते हैं।
इसलिए, चार्ट पर इन कैंडलस्टिक पैटर्न का विश्लेषण करते समय थोड़ा फ्लेक्सिबल होना चाहिए।
3. एक को पूर्व प्रवृत्ति की तलाश करनी चाहिए:
अगर आप तेजी से कैंडलस्टिक पैटर्न की तलाश कर रहे हैं तो पूर्व प्रवृत्ति मंदी होनी चाहिए और इसी तरह, अगर आप एक मंदी के पैटर्न की तलाश कर रहे हैं तो पूर्व प्रवृत्ति तेज होनी चाहिए।
महत्वपूर्ण सीख:
- कैंडलस्टिक चार्ट एक प्रकार के तकनीकी चार्ट हैं जो बार चार्ट या लाइन चार्ट के समान मूल्य के उतार-चढ़ाव का विश्लेषण करते हैं।
- प्रत्येक कैंडलस्टिक मुख्य रूप से वास्तविक शरीर और विक्स से बना होता है जिसे छाया या पूंछ के रूप में भी जाना जाता है:
- संपत्ति का शुरुआती मूल्य> समापन मूल्य = ओपन कैंडलस्टिक बॉडी के शीर्ष पर होगा।
- संपत्ति का समापन मूल्य> प्रारंभिक मूल्य = क्लोज कैंडलस्टिक बॉडी के शीर्ष पर होगा।
- जैसा कि कैंडलस्टिक्स अधिक आकर्षक होती हैं, व्यापारी ऐसी कैंडलस्टिक पैटर्न की तलाश करता है जो निरंतरता या उलट-फेर हो सकती हो।
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उपभोग प्रवृत्ति या उपभोग क्रिया क्या है? पूरी जानकारी
उपभोग प्रवृत्ति या उपभोग क्रिया (Propensity to प्रवृत्ति के साथ व्यापार Consume or Consumption ) – उपभोग प्रवृत्ति या उपभोग क्रिया प्रभावपूर्ण माँग एवं रोजगार के आवश्यक निर्धारक तत्व है। यह उस आय की ओर संकेत करता है जो उपभोग पर व्यय किया जाता है। अर्थात् प्रवृत्ति कुल आय और कुल उपभोग के सम्बन्ध को प्रकट करती है। इस प्रकार यदि अर्थव्यवस्था में आय में वृद्धि होती है तो उपभोग की प्रवृत्ति भी प्रवृत्ति के साथ व्यापार बढ़ती है और यदि आय में कमी होती है तो उपभोग प्रवृत्ति भी कम हो जाती है।
जिस बिन्दु पर आय एवं उपभोग दोनों बराबर होते हैं उसे अन्तराल शून्य बिन्दु कहते प्रवृत्ति के साथ व्यापार हैं। प्रायः आय बढ़ने के साथ-साथ आय और उपभोग का अन्तर भी बढ़ता जाता है। इसे निम्नलिखित रेखाचित्र के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
उपभोग प्रवृत्ति या उपभोग क्रिया
उपभोग प्रवृत्ति या उपभोग क्रिया (Propensity to Consume or Consumption )
प्रस्तुत चित्र से यह स्पष्ट होता है कि यदि समाज की कुल आय का उपभोग कर लिय जाये तो आय एवं उपभोग-वक्र POरेखा 45° के समान उठती हुई होगी परन्तु ec उपभोग प्रवृत्ति रेखा यह स्पष्ट करती है कि आय में वृद्धि होने के बाद लोग कितना उपभोग करते हैं। यदि cc रेखा काल्पनिक आय एवं उपभोग वक्र PQ रेखा के नीचे ही रहती परन्तु बढ़ती हुई स्थिति को दर्शाती है। जो यह प्रकट करती है कि आय में वृद्धि के साथ-साथ उपभोग में वृद्धि होती है, परन्तु आय के अनुपात में नहीं। अतः आय एवं उपभोग के इस अन्तर को विनियोग (Investment) के द्वारा पूरा करना चाहिए। अन्यथा आय के स्तर को बनाये रखना असम्भव नहीं हो सकता हैं। चित्र में बिन्दु अन्तराल शून्य बिन्दु है अर्थात् यहाँ पर आय एवं उपभोग दोनों बराबर हैं, परन्तु जिस अनुपात में आय में में वृद्धि होती है उस अनुपात में उपभोग न होने के कारण E बिन्दु के दाहिने तरफ के अन्तर को विनियोग के द्वारा पूरा करना आवश्यक होता है जिससे पूर्व आय के स्तर को बनाये रखा जा सके।
प्रवृत्ति के साथ व्यापार
ग्रामीण भारत में दहेज प्रथा का क्रमिक उद्भव: 1960-2008 के साक्ष्य
Korea Institute of Public Finance
University of Connecticut
1961 से अवैध घोषित किये जाने के बावजूद , दहेज परंपरा ग्रामीण भारत में व्यापक रूप से फैली हुई है। दो - भागों की श्रृंखला के इस पहले भाग में, यह लेख राज्यों और धार्मिक एवं सामाजिक समूहों में 1960 - 2008 के दौरान जारी दहेज प्रथा के क्रमिक उद्भव को चिन्हित करता है। यह पता चलता है कि घरेलू आय के एक हिस्से के रूप में दहेज में राष्ट्रीय स्तर पर धीरे-धीरे गिरावट आई है– तथापि इस अवधि के दौरान कुछ राज्यों और धार्मिक समूहों में दहेज़ में वृद्धि हुई है।
दहेज की प्रथा, यानी शादी के समय दुल्हन की तरफ से दुल्हे को किया जाने वाला अंतरण कई देशों में सर्वव्यापी है। इस लेख में, हम अपना ध्यान ग्रामीण भारत पर केंद्रित करते हैं, जहां 1961 से अवैध किये जाने के बावजूद दहेज परंपरा व्यापक रूप से फैली हुई है। 2006 के ग्रामीण आर्थिक और जनसांख्यिकी सर्वेक्षण (आरईडीएस) के अनुसार, 1960-2008 के दौरान 95% शादियों में दहेज का भुगतान किया गया था। प्रत्येक शादी में अक्सर दहेज परिवार की कई वर्षों की आय के बराबर होता है और यह लड़कियों के परिवारों पर काफी बोझ डालता है। हालांकि, हाल के दशकों में दहेज के उद्भव के बारे में बहुत कम जानकारी है जिसमें उल्लेखनीय आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन हुए हैं।
क्या भारत में दहेज महंगाई का सामना किया जा रहा है, यह दहेज पर लोकप्रिय और अकादमिक दोनों चर्चाओं में जीवंत बहस का विषय रहा है। इस लेख में, हम 1960-2008 के दौरान हुई लगभग 40,000 शादियों के आंकड़ों का उपयोग करके ग्रामीण भारत में समय के साथ और राज्यों, जातियों और धर्मों में दहेज भुगतान में बदलाव आया है या नहीं, और आया है तो किस प्रकार से, इसका आकलन करते हैं (अनुकृति तथा अन्य 2020)।
हमारा विश्लेषण भारत के सन्दर्भ में दहेज डेटा के सबसे नवीनतम स्रोत- 2006 आरईडीएस के डेटा पर आधारित है- यह डेटा 17 प्रमुख राज्यों को कवर करता है जिसमें भारत की आबादी का लगभग 96% हिस्सा है। शादी के समय प्राप्त या दिए गए उपहारों के मूल्य की जानकारी का उपयोग करते हुए, हम निबल दहेज की गणना दुल्हन के परिवार द्वारा दूल्हे या उसके परिवार को दिए गए उपहारों के मूल्य और दूल्हे के परिवार द्वारा दुल्हन के परिवार को दिए गए उपहारों के मूल्य के बीच के अंतर के रूप में करते हैं। । हमारे प्रमुख निष्कर्षों पर चर्चा निम्नानुसार है।
1975 से पहले और 2000 के बाद कुछ बढ़ोत्तरी के साथ औसत निबल दहेज समय के साथ उल्लेखनीय रूप से स्थिर रहा है (चित्र 1)। निबल दहेज में यह प्रवृत्ति दुल्हन के परिवार द्वारा दूल्हे के परिवार को किए गए सकल भुगतान की प्रवृत्ति से मिलती है। इसके विपरीत, दूल्हे के परिवार द्वारा दुल्हन के परिवार को किए गए भुगतान का सिलसिला भी लगातार बना रहा है, लेकिन वह काफी कम है। यदि एक दूल्हे का परिवार औसतन लगभग रु. 5,000 (वास्तव में) दुल्हन के परिवार को उपहार देने के लिए खर्च करता है तो दुल्हन के परिवार से दिए जा रहे उपहार की कीमत इससे सात गुना अधिक यानी लगभग 32,000 रुपये है, जिसका मतलब औसत वास्तविक निबल दहेज 27,000 रुपये हो जाता है।
चित्र 1. विवाह के वर्ष के अनुसार वास्तविक निवल और कुल दहेज की प्रवृत्ति
टिप्पणियाँ: (i) बायां पैनल विवाह के वर्ष में दुल्हन के परिवार द्वारा भुगतान किए गए सकल दहेज के अभारित औसत और अभारित पांच-वर्षीय चल औसत को इंगित करता है। (ii) दायां पैनल विवाह के वर्ष में दुल्हन के परिवार और दूल्हे के परिवार से वास्तविक भुगतान का मोटे तौर पर अभारित औसत इंगित करता है।
नकारात्मक निबल दहेज के साथ शादियों का अनुपात, यानी, जहां दूल्हे के परिवार ने दुल्हन के परिवार को अन्य तरीकों की तुलना में अधिक भुगतान किया, वह शून्य तो नहीं है, लेकिन मात्रा में काफी कम है। अधिकांश शादियों में दूल्हे के परिवार को स्पष्ट निबल दहेज का भुगतान शामिल था। हमारे अध्ययन की अवधि के दौरान भारत में प्रति व्यक्ति आय में इजाफा हुआ है, अतः इन स्थिर प्रवृत्तियों का अर्थ है कि घरेलू आय के हिस्से के रूप में दहेज में राष्ट्रीय स्तर पर धीरे-धीरे गिरावट आई है।
भारत में सभी प्रमुख धार्मिक समूहों में दहेज प्रचलित है (चित्र 2)। यह प्रवृत्ति हिंदुओं के सन्दर्भ में राष्ट्रीय प्रवृत्ति के समान है- और यह आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि भारत में हिंदू धर्म बहुसंख्यक धर्म है (हमारे नमूने का 89 प्रतिशत हिंदू हैं)। इसमें भी एक महत्वपूर्ण बात इस ग्राफ से स्पष्ट है कि भारत में दहेज केवल एक हिंदूओ में प्रचलित नहीं है। मुस्लिम शादियों में औसत निबल दहेज हिंदुओं की तुलना में केवल थोड़ा ही कम प्रवृत्ति के साथ व्यापार है और अध्ययन अवधि के दौरान यह स्थिर रहा है। इसके विपरीत, इसी अवधि के दौरान ईसाई और सिख समाज में दहेज में उल्लेखनीय वृद्धि दिखाई दी है, जिसके चलते हिंदुओं प्रवृत्ति के साथ व्यापार और मुसलमानों की तुलना में औसत दहेज अधिक हो गया है।
चित्र 2. विवाह के वर्ष के अनुसार धर्म और जाति के अंतर्गत वास्तविक निवल दहेज की प्रवृत्ति
टिप्पणियाँ: (i) यह आंकड़ा 1960-2008 के दौरान वर्ष-वार शादी और धर्म (बाएं पैनल) या जाति (दाएं पैनल) द्वारा, दुल्हन की ओर से भुगतान किए गए वास्तविक निबल दहेज के पांच साल के चल अभारित औसत को दर्शाता है। (ii) सभी धर्म एक जाति समूह में शामिल हैं। SC, ST और OBC क्रमशः अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को दर्शाता है।
दहेज उच्च जाति की स्थिति के साथ सकारात्मक रूप से सह-संबद्धित है, और दहेज भुगतान में जाति पदानुक्रम समय के साथ नहीं बदला है (चित्र 2)। उच्च जाति की शादियों में सबसे अधिक दहेज है, इसके बाद अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आते हैं।
यद्यपि औसत दहेज की प्रवृत्ति राष्ट्रीय स्तर पर स्थिर है, समय के साथ राज्यों में पर्याप्त अंतर दिखाई देता है (चित्र 3)। केरल राज्य में 1970 के दशक से निश्चित तौर पर और लगातार दहेज में बढ़ोत्तरी प्रदर्शित हुई है और हाल के वर्षों में वहां का औसत दहेज उच्चतम रहा है। बढ़ोत्तरी की प्रवृत्ति वाले अन्य राज्य हरियाणा, पंजाब और गुजरात हैं। केरल की धार्मिक संरचना में 26% मुस्लिम, 18% ईसाई, और 55% हिंदू हैं– वहां यह प्रवृत्ति पहले वर्णित धर्म द्वारा भिन्न प्रवृत्तियों के अनुकूल है। इसी प्रकार से, सिख बहुल राज्य पंजाब में बढ़ोत्तरी की प्रवृत्ति भी सिख दहेज में वृद्धि के अनुरूप है। दूसरी ओर, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में औसत दहेज में कमी आई है।
चित्र 3. राज्य और विवाह के वर्ष के अनुसार वास्तविक निबल दहेज की प्रवृत्ति
टिप्पणियाँ: यह आंकड़ा राज्यों में प्रवृत्ति के साथ व्यापार विवाह के वर्ष के अनुसार, दुल्हन द्वारा भुगतान किए गए वास्तविक निबल दहेज के पांच साल के चल, अभारित औसत को दर्शाता है।
यह लेख दो-भागों की श्रृंखला में पहला है। अगले भाग में इस बात पर ध्यान केंद्रित होगा कि घरेलू निर्णय लेने और इंटर-टेम्पोरल संसाधन आवंटन को दहेज कैसे प्रभावित करता है। यह श्रृंखला विश्व बैंक के ‘लेट्स टॉक डेवलपमेंट‘ ब्लॉग के सहयोग से प्रकाशित की गई है।
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लेखक परिचय : एस. अनुकृति विकास अनुसंधान समूह, विश्व बैंक में अर्थशास्त्री हैं। संगोह क्वोन कोरिया इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस में एसोसिएट फेलो हैं। निशीथ प्रकाश कनेक्टिकट विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर हैं और अर्थशास्त्र विभाग और मानवाधिकार संस्थान में संयुक्त पद पर हैं।
आर्थिक अव्यवस्था भारत की एक सच्चाई है लेकिन यह एक अवसर भी है
चीन की सुपर ग्रोथ की कहानी का उपसंहार मुमकिन है, जिसका फायदा भारत उठा सकता है लेकिन उसे समझना पड़ेगा कि व्यवस्थागत अव्यवस्था एक बड़ी हकीकत है जिसे कबूल करना ही पड़ेगा.
चित्रण : दिप्रिंट टीम
इस साल के शुरू से अल्पकालिक आर्थिक वृद्धि की संभावनाओं के कमजोर पड़ने, ऊर्जा की लागत में वृद्धि, व्यापार संतुलन में अधिक नकारात्मकता, वित्तीय असंतुलन, पोर्टफोलियो पूंजी के बाहर जाने, रुपये की कीमत में गिरावट, कंपनियों की बढ़ती सावधानी, बाजार में घबराहट, और उपभोक्ताओं पर महंगाई की मार के कारण आर्थिक क्षितिज पर काले बादल घिरने लगे थे.
इन सबके पीछे अपने कारण तो हैं ही, कई के स्रोत वैश्विक स्थिति में भी हैं लेकिन केवल उन्हीं के ऊपर ज़ोर देना गलत होगा. दीर्घकालिक प्रवृत्तियों को भी समझने की जरूरत है.
आर्थिक प्रवृत्तियों को समझने के लिए प्रायः ‘एनट्रॉपी’ यानी व्यवस्थागत अव्यवस्था का उपयोग नहीं किया जाता, लेकिन यह माध्यम का निर्धारण करने में अगर घटनाओं की दीर्घकालिक दिशा को नहीं, तो आज कामकाज में अव्यवस्था और ढीलापन को अच्छी तरह रेखांकित करता है. माना जाता है कि ‘एनट्रॉपी’ समय के साथ बढ़ती जाती है जबकि आर्थिक प्रवृत्तियां चक्राकार घूमती हैं; लेकिन चक्र लंबा होता है (मान लीजिए 60 साल का) तो अंतर महत्व नहीं रखता.
बढ़ी हुई आर्थिक ‘एनट्रॉपी’ के जटिल अणुओं में कई तत्व शामिल होते हैं. पहला तत्व है अमीर और गरीब देशों में कमजोर कंधों पर वैश्वीकरण का भारी वजन और इसके साथ देश के अंदर तथा वैश्विक स्तर पर उन कुलीनों का उत्कर्ष जिनके पास अकूत धन होता है. दूसरा तत्व है— वित्तीय पूंजीवाद (2008 के वित्तीय संकट का एक कारण) के वैचारिक वर्चस्व से पैदा हुई आकस्मिक अमीरी का अधिक नाटकीय प्रदर्शन, जिसके बाद ‘वेंचर कैपिटलिज्म’ को प्रमुखता हासिल हुई. तीसरे तत्व, और इसके समानांतर विकास हुआ है ‘बिग टेक’ की ताकत और उसके प्रभाव में वृद्धि का.प्रवृत्ति के साथ व्यापार
‘ग्रेट गैट्सबी’ युग के पुनरागमन के साथ उन व्यवसायों और उनके नकली स्टार्ट-अप का उभार हुआ है, जो ‘जो जीता वही सिकंदर’ जुमले में विश्वास करते हैं, सुरक्षित रोजगार की जगह मुक्त बाजार वाली अर्थव्यवस्था आई है, और हानिकारक मध्यस्थहीनता शुरू हुई है. इसके तीन उदाहरण हैं—पारंपरिक वित्तीय व्यवस्था डिजिटाइजेशन और बिग डाटा से प्रभावित हुई है; मीडिया विषैले, सूत्र मुक्त सामाग्री के बिग टेक के स्पोन्सरशिप से प्रभावित हुआ है; और खुदरा व्यापार ई-कॉमर्स से प्रभावित हुआ है.
अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक
दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं
हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.
धनतंत्रवादियों और श्रमजीवियों में बंटे समाज के निर्माण की ओर ले जाने वाले इन मौलिक परिवर्तनों को चौथी प्रवृत्ति की ओर से चुनौती मिली है. वह प्रवृत्ति है गरीब देशों से बड़ी संख्या में प्रवासियों का अमीर देशों में जबरन प्रवेश. पांचवां तत्व यह है कि चीन (और भारत जैसी कुछ छोटी अर्थव्यवस्थाओं) के उभार के बाद सत्ता संतुलन बदला है, पुराने सत्ता समीकरण बदले हैं लेकिन उथलपुथल से नया समीकरण अभी नहीं बना है.
इसके साथ, जैविक विज्ञान के तहत गुप्त प्रयोगशालाओं में खतरनाक अनुसंधानोन और जानवरों तथा पक्षियों के औद्योगिक स्तर पर फ़ार्मिंग के चलते एक के बाद एक महामारी/ संक्रमण—मैड काउ रोग, सार्स, बर्ड फ्लू, कोविड-19, और अब मंकी फॉक्स— से पैदा हुए संकट को जोड़ लीजिए. इसका प्रतीकार भी हो रहा है. कार्ल आइलान जैसे फाइनांसर ने गर्भवती सूअरों के साथ प्रयोगों के लिए मैकडोनल्ड को चेताया है.
इसका एक नतीजा यह हुआ है कि सप्लाइ चेन खुले हैं और यात्रा तथा पर्यटन व्यवसाय को धक्का पहुंचा है. सामान और लोगों की आवाजाही में व्यवधान आया है. अंत में, ग्लोबल वार्मिंग के कारण जबरन किए जा रहे तकनीकी परिवर्तन को जोड़ लें, जो खास उद्योगों को ही नहीं बल्कि पूरे के पूरे सेक्टरों (ऊर्जा, परिवहन, मैनुफैक्चरिंग) को अचानक क्रमभंग का सामना करना पड़ा है.
अव्यवस्था के इन विविध, अप्रत्याशित प्रवृत्ति के साथ व्यापार तत्वों के आर्थिक प्रभाव हानिकारक रहे हैं, जियसे 2008 का वित्तीय संकट. अनियंत्रित वित्तीय पूंजीवाद के साथ, अमेरिका में स्थिर आर्थिक आय वाले समूहों को आवास मुहैया कराने की राजनीतिक मांग के खतरनाक मेल के कारण जो ‘समाधान’ किया गया उसके चलते सार्वजनिक कर्ज में भारी इजाफा हुआ.
जब कोविड-19 ने चुनौती दी तो विचित्र किस्म का मौद्रिक नीतियां लागू की गईं. अब उन्हें वापस लेने की कोशिश से न केवल स्थिरता आई लेकिन शायद मुद्रास्फीति के साथ मंदी (एक और घातक कॉकटेल) भी आई और शेयर बाजार में गिरावट भी.
राजनीतिक अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर जो कुछ किया जा रहा है, चाहे वह राजनीतिक भाई-भतीजावाद का उभार हो या दूसरी सच्चाइयों के प्रसार के लिए आर्थिक राष्ट्रवाद का उभार हो या ब्रेक्सिट और डोनल्ड ट्रंप को आगे बढ़ाना, वह सब अस्तव्यस्तता को ही प्रतिबिंबित करते हैं. उदार लोकतंत्र के आदर्श को ताकतवर नेता के शासन के जरिए वैचारिक चुनौती मिल रही है, जबकि सत्ता प्रवृत्ति के साथ व्यापार परिवर्तन (ऊपर से लेकर नीचे तक) ने हरेक देश को प्रतिरक्षा पर खर्च बढ़ाने को मजबूर किया है, जो कि आम तौर पर अच्छा संकेत नहीं है.
घटनाक्रम चीन की सुपर ग्रोथ की कहानी का उपसंहार कर सकते हैं. इससे भारत फायदा उठा सकता है लेकिन उसे समझना पड़ेगा कि ‘एनट्रॉपी’ यानी व्यवस्थागत अव्यवस्था एक बड़ी हकीकत है जिसे कबूल करना ही पड़ेगा.