युग्मों की लोकप्रियता के कारण

युग्मों की लोकप्रियता के कारण
ग़ज़ल की कक्षाएं किसी मुकाम पर पहुंचें उसके पहले ही ऐसा कुछ हो जाता है कि काफिला रुक जाता है। इस बार भी ऐसा ही कुछ हुआ है सब कुछ शुरू होने को ही था कि पूज्यनीय दादीजी का स्वर्गवास हो गया । और उसके बाद फिर हमारे प्रदेश में चुनाव आ गये । पत्रकारिता से जुड़ा होने के कारण चुनाव को लेकर व्यस्तता हो ही जाती है तिस पर युग्मों की लोकप्रियता के कारण ये कि मुख्यमंत्री का चुनाव हमारे ही जिले की एक सीट से होने के कारण हमारा जिला खबरों में बना रहा। अब जाकर कहीं थोड़ा सा आराम मिला है। शैलेश जी का मेल मिला तो याद आया कि अरे आज से तो कक्षाएं प्रारंभ करने का वादा था। मेरे कवि मित्र ब्लाग पर पोस्ट में जो वर्ड वेरिफिकेशन लगा है उसके कारण काम मुश्किल हो गया है। शैलेश जी ने बताया कि ये ब्लागर की ओर से ही लगाया गया है। दरअस्ल में मेरे जैसे लोग जो कि विंडोज लाइव रायटर पर काम करते हैं उनके लिये ये परेशानी वाला काम है क्योंकि हम लोग तो ब्लागर पर साइन ही नहीं करते, जो कुछ भी करना होता है वो वही रायटर में लिख कर पोस्ट लगा देते हैं। खैर चलिये हम काम प्रारंभ करते हैं। ग़ज़ल की कक्षाओं को हमने कहीं पर छोड़ा था वहीं से हमको सिरा पकड़ना है । मुझे नहीं मालूम कि कहां पर क्या छूटा था और क्या हो चुका था मगर प्रयास रहेगा कि सिरा ठीक प्रकार युग्मों की लोकप्रियता के कारण से पकड़ लिया जाये।
आज ही अपने एक मित्र डॉ कैलाश गुरू स्वामी का फोन आया कहने लगे कि पंकज एक अच्छा शेर निकला है सुनो
अल्लाह दस्ते नाज़ की नाज़ुक सी उंगलियां
उस पर गुलाबे इत्र की ख़ुश्बू का बोझ है
स्वामी जी ने सुबह को इस मलमल के समान नाजुक और महीन युग्मों की लोकप्रियता के कारण शेर से ख़ुशनुमा बना दिया। हालंकि इस प्रकार के शेर और ये कहन अब विलुप्त होते जा रहे हैं। अब ग़ज़ल कुछ कठोर होती जा रही है। ग़ज़ल से नफ़ासत और नज़ाकत दोनों ही समाप्त होती जा रही हैं ।
आज हम एक ऐसे विषय से प्रारंभ करते हैं जो कि पहले हमने केवल चर्चाओं में लिया है उस पर कभी बात विस्तार से कुछ नहीं कहा। एक समस्या जो कि कई सारे लोगों के सामने आती रही है वो ये है कि मात्राओं को गिना किस प्रकार जाये। दूसरा ये कि दीर्घ मात्रा को लघु और कभी दीर्घ ही माना जाता है ऐसा कैसे होता है। दरअस्ल ग़ज़ल में गिनने का तरीका कुछ अलग है यहां पर दो लघु मिलकर एक दीर्घ बन जाते हैं और कभी ऐसा भी होता है कि दोनों नहीं मिलते अलग-अलग ही रहते हैं। युग्मों की लोकप्रियता के कारण युग्मों की लोकप्रियता के कारण यहां पर कभी ऐसा होता है कि एक दीर्घ को कभी तो दीर्घ में ही गिना जाता है और कभी ऐसा होता है कि उसको लघु मान लिया जाता है। ये दरअस्ल में मात्रओं के उच्चारण के कारण होता है। ग़ज़ल को जब बनाया गया तो इसको आम बोल-चाल के वाक्यों से ही बनाया युग्मों की लोकप्रियता के कारण गया है। इसीलिये हम देखते हैं कि ग़ज़ल में बातचीत का लहज़ा जितना अधिक होता है वो ग़ज़ल उतनी ही लोकप्रिय होती है। कहीं-कहीं ग़ज़ल का अर्थ कहा जाता है ''महबूबा से बातचीत'' और इसीलिये ग़ज़ल में मात्राओं की गणना इसी आधार पर की जाती है कि उन मात्राओं को उच्चारण कैसे किया गया था। उच्चारण करते समय अगर किसी दीर्घ मात्रा पर हम रुके अर्थात उस पर वज़न दिया तो वो दीर्घ ही रही। किन्तु यदि किसी दीर्घ पर हम नहीं रुके जल्दी से युग्मों की लोकप्रियता के कारण उसको पढ़कर गुज़रे तो वो लघु में गिन ली जाती है। कुल मिलाकर ये बात ग़ज़ल के प्रकरण में महत्वपूर्ण है कि ग़ज़ल सुनाते समय ही आनंद देती है। क्योंकि लिखने वाले को पता होता है कि कहां मात्रा गिरी है और कहां पर नहीं ।
ग़ज़ल की अगर बात करें तो मतले के पहले मिसरे में जो वज्न आ गया, उसके बाद पूरी की पूरी ग़ज़ल में वही का वहीं वज्न आना है। अब आप उसको बदल नहीं सकते हैं। अगर आपने बदला तो मिसरा बहर से बाहर हो जायेगा। मात्राओं का जो क्रम आपने पहले मिसरे में तय कर लिया वह ग़ज़ल की बहर हो गई है। ये जो मात्राओं का विन्यास है। उसी को बहर कहा युग्मों की लोकप्रियता के कारण जाता है। ये विन्यास भी पूर्व निर्धारित हैं। जैसे कि एक मिसरा है '' सजा कर ज़ुल्फ़ में तारे पहन कर चांदनी निकलो'' अब इसमें मात्राओं का विन्यास क्या है ये देखें । स 1, जा 2, कर 2, ज़ुल् 2 ( अगर आप देखें तो यहां पर एक भंग आता है अर्थात आप यहां पर रुक जाते हैं इसका मतलब ये है कि आपका रुक्न पूरा हो गया 1222) फिर फ 1, में 2 ता 2 रे 2 (यहां पर हम फिर रुकते हैं अर्थात पुन: रुक्न पूरा हो गया रुक्न का अर्थ होता है मात्राओं का एक समूह 1222) प 1 हन 2 कर 2 चां 2 ( यहां पर तीसरा रुक्न पूरा हो गया है क्योंकि आप यहां रुक गये हैं 1222 ) द 1 नी 2 निक 2 युग्मों की लोकप्रियता के कारण लो (और ये था अंतिम रुक्न 1222 ) । इसका मतलब ये है कि आपके मिसरे का वज्न है 1222-1222-1222-1222 अब आपको आगे इसी मिसरे पर काम करना है । ये जो मिसरा मैंने दिया है ये कुमार विश्वास के मुक्तक 'कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है' की वज़न पर है। दरअसल में युग्मों की लोकप्रियता के कारण कुमार विश्वास जी के वो सारे मुक्तक पूरी तरह से बहर में हैं और इसीलिय सुनने में आनंद देते हैं। उसी मुक्तक को गायें तो आपको मात्राओं का खेल समझ में आयेगा। गाते समय याद रखें कि जो चार लाइनें मैंने लिखी हैं नीचे मिसरे को वैसे ही पढ़ें अर्थात ''कोई दीवा'' पढ़कर रुक जायें फिर ''ना कहता है'' पढ़कर रुक जायें विश्राम के बाद युग्मों की लोकप्रियता के कारण आगे का रुक्न पढ़ें ''कुई पागल'' और फिर रुक कर पढ़ें '' स मझ ता है '' । दस पंद्रह बार पढ़ें आपको मात्राओं का खेल समझ में आ जायेगा।
कु ई दी वा ( कोई का को लघु में गिना जा रहा है क्योंकि उसका उच्चारण कुई आ रहा है )
न कह ता है ( ना लघु में गिना जा रहा है क्योंकि पढ़ते समय केवल न की ध्वनि आ रही है )
कु ई पा गल (कुई पागल )
स मझ ता है
आज के लिये इतना ही ये केवल और केवल प्राथमिक जानकारी है। अगर समझ में नहीं आये युग्मों की लोकप्रियता के कारण तो चिंता न करें हम आगे इसको विस्तार से समझने की कोशिश करेंगे। जो लोग गुनगुना लेते हैं गा लेते हैं उनके लिये ये समझना आसान होगा। चलिये मिलते हैं अगली कक्षा में ।