अगर डॉलर गिरता है तो मुझे क्या निवेश करना चाहिए?

चीन से विदेशी कंपनियों की क्या होगी वापसी!
गत 28 अप्रैल को राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ कोविड-19 महामारी पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कथित तौर पर यह अजीब दावा किया कि कई कंपनियां चीन से बाहर जाएंगी और उनके निवेश को आकर्षित करने के लिए भारत को तैयार रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि आखिर भारत के पास प्रचुर श्रमशक्ति, कौशल, और बेहतर आधारभूत ढांचा है। कुछ समय बाद ही केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने एक कारोबारी समाचार चैनल से कहा, 'पूरी दुनिया में चीन और उसकी अर्थव्यवस्था के प्रति नफरत का भाव है। यह विपत्ति में वरदान जैसी स्थिति है। यह भारत और भारतीय निवेशकों, खासकर एमएसएमई क्षेत्र के लिए निवेश जुटाने का एक बढिय़ा अवसर है।'
उसके बाद आई एक समाचार रिपोर्ट में यह दावा किया गया कि 'भारत ने चीन से बाहर जाने की सोच रही कंपनियों से निवेश आकर्षित करने के लिए अपनी कोशिशें तेज कर दी हैं।' देश में वैश्विक निवेश के प्रोत्साहन एवं समर्थन के लिए गठित इकाई 'इन्वेस्ट इंडिया' ने निवेश की मंशा रखने वाली करीब 1,000 वैश्विक कंपनियों की सूची भी तैयार कर ली है। इस समाचारपत्र में प्रकाशित एक और रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत चीन से बाहर निकल रही कंपनियों को लुभाने के लिए लक्जमबर्ग के दोगुने आकार का लैंड पूल तैयार करने में जुटा है। देश भर में 4.61 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की पहचान भी की जा चुकी है। असम सरकार ने कहा कि वह चीन से बाहर निकलने का इरादा रखने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करने की योजना बना रही है ताकि वे राज्य में उत्पादन इकाइयां लगा सकें।
इस तरह चीन से कंपनियों के बाहर निकलने और उन्हें अपने यहां आकर्षित अगर डॉलर गिरता है तो मुझे क्या निवेश करना चाहिए? करने के सुर काफी तेज होने लगे हैं। अचानक ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के शासन वाले राज्यों- उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश ने अधिकांश श्रम कानूनों को अगले तीन वर्षों के लिए निलंबित करने की घोषणा कर दी है। कारोबारी अक्सर कष्टदायक श्रम कानूनों की मौजूदगी और उनकी आड़ में इंस्पेक्टर राज होने की शिकायत करते रहे हैं। ऐसे में सरकार को लगता है कि श्रम कानूनों को निलंबित कर देने से अरबों डॉलर का निवेश आ जाएगा। क्या वाकई में ऐसा होगा? मुझे तो ताज्जुब होगा अगर कोविड संकट के बाद चीन छोड़कर जाने वाले विदेशी निवेश के भारत आने में थोड़ी भी तेजी आती है। इस धारणा के पीछे मेरे ये कारण है:
1. क्या वाकई में कोई कंपनी चीन से जा रही है?: अर्थशास्त्री एवं चीन मामलों के जानकार डॉ सुब्रमण्यन स्वामी कहते हैं कि देशों की स्थिति किराना दुकानों जैसी नहीं होती है कि थोड़े कम भाव पर सामान बेचने से ग्राहक उनकी तरफ आने लगें। ये निर्णय किसी आवेग में नहीं लिए जाते हैं और न ही ये किसी घटना से प्रेरित होते हैं और बेहद जटिल होते हैं। ऐसे में अचरज नहीं है कि अमेरिकन चैंबर ऑफ कॉमर्स इन चाइना के मार्च में किए गए एक सर्वे में यह पाया गया कि 70 फीसदी से अधिक कंपनियों की कोविड की वजह से अपना उत्पादन और आपूर्ति शृंखला परिचालन चीन से कहीं और जाने की कोई योजना नहीं है। यानी विदेशी कंपनियों के चीन से बाहर निकलने की पूरी सोच ही गलत है। इसकी वजह क्या है?
विदेशी कंपनियां चीन की व्यापक आपूर्ति शृंखला क्षमताओं, श्रम उत्पादकता और विश्व-स्तरीय ढांचे की वजह से वहां गईं। इसके अलावा उन्हें वहां पर बड़ा घरेलू बाजार भी मिल रहा है। एक महामारी इन वजहों को नहीं बदल सकती है और इस पर असरदार तरीके से काबू पाकर चीन ने अपनी छवि को और पुख्ता भी कर लिया है। एमचैम चाइना के अध्यक्ष एलेन बीबे कहते हैं, 'चीन वैश्विक कोविड संक्रमण वक्र से आगे नजर आता है, खासकर महीनों के लॉकडाउन के बाद आर्थिक गतिविधियां फिर से शुरू करने के मामले में। यह बताता है कि कंपनियां चीन आना ही क्यों पसंद करती हैं?'
अगला सवाल यह है कि चीन छोड़कर जाने वाली कंपनियां क्या भारत आने को लेकर उत्सुक हैं? इसके पुख्ता सबूत नहीं हैं। असल में, ऑटो कंपनियों जैसे बड़े पैमाने पर अंतर्संबद्ध कारोबारों के लिए अपना काम समेटकर दूसरी जगह चले जाना नामुमकिन है। और अगर कुछ कंपनियां चीन से चली भी जाती हैं तो फिर वे भारत क्यों आएंगी?
2. विदेशी कंपनियों के लिए भारत आकर्षक नहीं:अगर डॉलर गिरता है तो मुझे क्या निवेश करना चाहिए? वर्ष 2018 में भारत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आकर्षित करने वाले शीर्ष 10 देशों की सूची से बाहर चला गया। एटी कियर्नी एफडीआई विश्वसनीयता सूचकांक में भारत 2015 के बाद पहली बार शीर्ष 10 से बाहर गया था जबकि दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में एफडीआई प्रवाह 11 फीसदी बढ़ा था। भारत सरकार के उद्योग संवद्र्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग के पिछले साल जारी आंकड़े बताते हैं कि छह साल में पहली बार वर्ष 2018-19 में भारत में एफडीआई गिर गया। भारत विदेशियों के लिए आकर्षक नहीं है। इसके कई कारण हैं और सभी समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं। बात केवल जमीन की उपलब्धता या सख्त श्रम कानूनों का मसला नहीं है। यह लालफीताशाही, फिरौती, पूर्व-प्रभावी सुधार, नियमों में अस्थिरता, कर आतंकवाद, खराब श्रम उत्पादकता, बंदरगाहों पर होने वाली देरी और सॉवरिन जोखिम का मामला है।
3. स्थानीय लोगों को भी अनाकर्षक लगता है भारत: विदेशी निवेश को लेकर हो रही पूरी चर्चा ही मजाक लगती है क्योंकि हर कोई जानता है कि विकल्प रखने वाले भारतीय कारोबारी भी भारत में निवेश नहीं करना चाहते हैं। घरेलू निवेश पिछले छह वर्षों से सुस्त रहा है और पूंजीगत उत्पाद क्षेत्र में यह दिखाई भी देता है। इसकी वजह यह है कि घरेलू मांग कमजोर रही है, क्षमता अधिक है और सार्वजनिक निवेश कम है। इस तरह अधिक निवेश करने के लिए घरेलू कारोबारियों के पास कोई प्रोत्साहन नहीं है। किसी भी हाल में भारत निजी निवेश में सूखे जैसी स्थिति से ही गुजर रहा है।
ये तीनों बिंदु, खासकर आखिरी दो बिंदुओं के बारे में तो हर कोई जानता है। लिहाजा वह विश्वास कहां है कि चीन से एफडीआई हटेगा और उसकी वजह से भाजपा-शासित राज्य कदम उठाने लगे हैं? असल में, यह नेताओं की मीडिया को व्यस्त रखने की एक रणनीति नजर आती है ताकि वह अप्रासंगिक खबरों के पीछे भागे और कोविड संकट से निपटने को लेकर सरकार की योजनाओं को लेकर सवाल न उठाए। इसकी शुरुआत प्रधानमंत्री द्वारा मुख्यमंत्रियों को चीन से एफडीआई का रुख भारत की ओर मोडऩे की बात से हुई थी। लेकिन इसका कोई आधार नहीं था। हालांकि भाजपा-शासित राज्यों ने इसे इशारा समझकर आनन-फानन में शोरशराबा शुरू कर दिया।
यहां पर एक दिलचस्प विरोधाभास भी है जिसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। प्रधानमंत्री वर्ष 2014-15 में एफडीआई आंकड़े बेहतर रहने का श्रेय लेने में काफी खुश थे। लेकिन जब ये आंकड़े गिरने लगे तो एफडीआई को उनकी उपलब्धियों की सूची से हटा दिया गया। अब राज्य सरकारें चीन से बाहर निकलने वाले एफडीआई को आकर्षित करने को लेकर उत्साहित दिख रही हैं। अधिक विदेशी निवेश आकर्षित करने की राह में रोड़े अटकाने के लिए कई केंद्रीय मंत्रालयों के तैयार रहने के बावजूद ऐसा है।
रुपया लगातार गिर रहा है, लेकिन यह वरदान भी साबित हो सकता है
क्या कोई रुपए में गिरावट के सिर्फ दो बुरे नतीजे बता सकता है?
अगर एक अमेरिकी डॉलर (American dollar) 80 रुपए का हो जाता है तो इतनी हाय तौबा क्यों? अगर मेरी दादी आज जिंदा होतीं तो यह भोला सा सवाल जरूर करतीं. वैसे अर्थव्यवस्था का जो हाल है, उसे देखते हुए चारों तरफ से हाय-तौबा मची है. नेताओं से लेकर शेयर मार्केट के सट्टेबाज, और सोशल मीडिया से लेकर क्रिप्टो करंसी के दीवाने नौजवान- हर तरफ से रुपए में गिरावट पर त्राहिमाम-त्राहिमाम की चीख पुकार सुनाई दे रही है.
वैसे मैं किसी को डराना नहीं चाहता, लेकिन अगर रुपए में गिरावट ही आपके लिए कयामत की दस्तक है तो आपने दूसरे खौफनाक मंजर नहीं देखे. विदेशी निवेशकों ने इस कैलेंडर वर्ष में 30 बिलियन डॉलर वापस खींच लिए हैं. भारत को चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 70 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा हुआ है. हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 50 बिलियन डॉलर गिरकर 600 बिलियन डॉलर हो गया है. करीब 270 बिलियन डॉलर के विदेशी कर्ज का बोझ हमारे कंधों पर है जिसे नौ महीने के भीतर चुकाना है. ऐसे में सोचिए कि डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत 80 के इस पार होगी या उस पार?
चीन और जापान ने अपनी करंसी को जानबूझकर कमजोर रखा
लेकिन मुझे यह '80 का फोबिया' बेहद हास्यास्पद लगता है. मैं सोचता हूं कि इस बात को कितने लोग समझते होंगे कि जापान और चीन ने कैसे जानबूझकर अपनी मुद्राओं की कीमत कम रखी- सिर्फ इसलिए ताकि निर्यात बाजार में उनके उत्पाद धूम मचा सकें.
अब यह तो सभी लोग जानते होंगे कि इन दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं ने पिछले 50 सालों में चामत्कारिक रूप से आसमान छुआ है. बेशक, उनकी आर्थिक कायापलट की दूसरी वजहें भी हैं लेकिन कृत्रिम तरीके से रॅन्मिन्बी और येन के मूल्यह्रास से भी उन्हें बहुत फायदा हुआ. यह भी सच है कि दोनों देशों को ‘करंसी मैन्यूपुलेटर्स’ कहकर बदनाम किया गया, चूंकि पश्चिमी ब्लॉक चोटिल हुआ और उन्हें इन दोनों देशों की मजबूत अर्थव्यवस्थाओं से संघर्ष करना पड़ रहा है.
तो, चीन और जापान ने जानबूझकर अपनी करंसियों को कमजोर क्यों किया? क्योंकि शुरुआती दौर में सस्ती करंसी ने उनके अपने टेक, अप्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्थाओं की ‘हिफाजत’ की. इस बीच उन्हें अपने औद्योगिक आधार को आधुनिक और उत्पादक बनाने के लिए पर्याप्त समय मिल गया.
लेकिन यहां हम अपने आधे-अधूरे ज्ञान का इस्तेमाल रुपये में गिरावट पर अफसोस जताने के लिए कर रहे हैं. इस दौरान हम यह अगर डॉलर गिरता है तो मुझे क्या निवेश करना चाहिए? भूल रहे हैं कि चीन ने किस तरह हमें शिकस्त दी है. सोचिए, सिर्फ तीन दशक पहले, हमारी जीडीपी चीन के बराबर थी. उफ्फ हमारी प्रति व्यक्ति आय भी उससे ज्यादा थी. लेकिन आज चीन की अर्थव्यवस्था 20 ट्रिलियन डॉलर की है और हम हर मंच पर अपने 3 ट्रिलियन डॉलर के आसपास की अर्थव्यवस्था का ढिंढोरा पीटने की वजह ढूंढ रहे हैं.
सच कहूं तो अगर अर्थव्यवस्था का विकास ही हमारे लिए राष्ट्रीय गौरव है तो हमें प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने पर जोर देना चाहिए, न कि रुपए को 'मजबूत' रखने पर.
रुपए में गिरावट का नुकसान गिनाइए
क्या कोई मुझे दो, सिर्फ दो वजहें बता सकता है कि रुपए में गिरावट का बुरा नतीजा क्या होगा? मैं देख सकता हूं कि लोगों ने झट से अपने हाथ उठा लिए क्योंकि एक प्रतिकूल प्रभाव तो सार्वभौमिक और निर्विवाद है. रुपये में गिरावट से आयातित वस्तुएं कुछ समय के लिए महंगी हो जाएंगी. तेल की कीमतें, उर्वरक, पूंजीगत वस्तुओं का निवेश सब महंगा हो जाएगा- आयात के लिए ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी. तो, कोई शक नहीं कि कमजोर रुपये का एक भयानक नतीजा आयातित मुद्रास्फीति है.
चलिए अब यह बताइए कि दूसरा बुरा नतीजा क्या है? खामोशी. बहुत से लोग चुप हो जाएंगे. दूसरा नतीजा. हम्म मेरे ख्याल से, रुपए में गिरावट देश के स्वाभिमान को मिट्टी में मिला देगा.
अरे छोड़िए भी. यह कोई आर्थिक दलील नहीं, सिर्फ एक मूर्खतापूर्ण, राजनीतिक और भावुक टिप्पणी है. क्योंकि कड़वी सच्चाई यह है कि आयात महंगा होने के अलावा, रुपए में गिरावट का ऐसा कोई- मैं दोहराता हूं- ऐसा कोई बहुत बड़ा नुकसान नहीं होने वाला. हां, इसमें बहुत सी अच्छी बातें छिपी हुई हैं, जैसे उच्च निर्यात आय, एसेट्स की कीमत में सुधार, अधिक घरेलू निवेश वगैरह वगैरह.
इसके अलावा, अगर बाजार अच्छा है, और सरकारें घबराती नहीं हैं या जूझने को तैयार रहती हैं ,तो एक ऐसी व्यवस्था कायम होने लगती है जो अपने आप को सुधारती चले. अपनी गलतियों से सीखती रहे. कैसे? ठीक है, मैं समझाता हूं, शुरुआत आपके बाजीगर, यानी गिरते रुपए से.
इसका फायदा है- इसे समझने के लिए कुछ उदाहरण
विडंबना यह है कि एक डॉलर को खरीदने के लिए जैसे-जैसे ज्यादा से ज्यादा रुपये की जरूरत होती है, तो धीरे-धीरे यह पहिया उलटने लगता है. भारतीय एसेट्स और निवेश, जिन्हें पहले 'महंगा' होने अगर डॉलर गिरता है तो मुझे क्या निवेश करना चाहिए? के लिए छोड़ दिया गया था, अब आकर्षक लगने लगते हैं. यह साबित करने के लिए हम एक आसान सा उदाहरण दे रहे हैं-
कल्पना कीजिए कि छह महीने पहले, एक विदेशी निवेशक ने शेयर A को 75 रुपये में बेच दिया और एक डॉलर वापस घर ले गया. इसके दो पहलू हैं. एक, A के शेयर की कीमत गिर गई. और दो, रुपया भी गिर गया.
अब दूसरे विदेशी निवेशक, रुपये और शेयर की कीमत में गिरावट (यानी, उनके पोर्टफोलियो की कीमत पर दोहरी मार), दोनों के डर से बिक्री शुरू करते हैं.
कल्पना कीजिए कि इस बिक्री की होड़ में शेयर A की कीमत 75 रुपये से घटकर 60 रुपये हो जाती है, जबकि अब एक डॉलर खरीदने के लिए 80 रुपये की जरूरत है, जो पहले 75 रुपये में उपलब्ध था.
सोचें कि हमारे पहले विदेशी निवेशक के दिमाग में क्या चल रहा है, जिसने शेयर A को 75 रुपये में बेच दिया था और एक डॉलर ले गया था. वह लार टपकाने लगा है. क्योंकि अब, वह शेयर A को लगभग 75 सेंट्स में खरीद सकता है और उसे प्रत्येक डॉलर के लिए 25 सेंट का शुद्ध मुनाफा होगा. यानी अपने लेनदेन में उसे 25% की भारी कमाई हो सकती है.
जैसा कि हमारे आसान उदाहरण से साबित होता है, बिक्री और बाजार से निकासी का चक्र उलट जाएगा. किसी अर्थव्यवस्था में, जैसे-जैसे एसेट्स की कीमतें गिरती हैं, और रुपया भी गिरता है, विदेशी विक्रेता खरीदार बन जाते हैं. अब एसेट्स की कीमतें मजबूत होने लगती हैं, रुपया गिरना बंद हो जाता है, घरेलू निवेश बढ़ जाता है, आयात की जगह घरेलू माल बाजार में उपलब्ध होता है (जिसे आयात प्रतिस्थापन कहते हैं), जीडीपी तेजी से बढ़ती है, सरकार का राजस्व बढ़ता है.
महंगाई जोखिम है पर उससे निपटने में समझदारी दिखानी होगी
लेकिन मुद्रास्फीति एक बड़ा जोखिम बनी हुई है. इसलिए, नीति निर्माता मुद्रास्फीति को काबू में करने के लिए ब्याज दरों में वृद्धि करते हैं. यह खपत और निवेश की मांग को कम करता है. कीमतें बढ़ना बंद हो जाती हैं.
लेकिन विडंबना यह है कि उच्च ब्याज दरों से विदेशी मुद्रा आकर्षित नहीं होती. जैसा कि हमने ऊपर देखा, विदेशी मुद्रा का प्रवाह ज्यादा होता है तो एसेट्स की कीमतें और निवेश बढ़ते हैं. आमदनी तेजी से बढ़ने लगती है. आय बढ़ती है तो मांग भी बढ़ती है.
आर्थिक आत्मविश्वास बढ़ता है तो ब्याज दर का चक्र भी उलटने लगता है, जिससे टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुएं, निर्माण, आवास, पूंजीगत वस्तुओं और अन्य चीजों की मांग बढ़ जाती है. अर्थव्यवस्था में वृद्धि होने लगती है.
स्टॉक की कीमतें, जो रुपए में गिरावट की वजह से गिरने लगी थीं, अब ब्याज की दर कम होने की वजह से बढ़ने लगती हैं. इससे अर्थव्यवस्था में पूंजी निर्माण को और बढ़ावा मिलता है. आय प्रभाव लौटता है, यानी उपभोक्ता की आय में परिवर्तन होने के कारण उत्पाद या सेवा की मांग बदलती है. आखिर में, अगर निवेश और आयात प्रतिस्थापन चतुराई से होता है, तो अर्थव्यवस्था अधिक असरकारक और प्रतिस्पर्धी बन जाती है.
तो, जाहिर है रुपए की कीमत, मुद्रास्फीति की दर, एसेट्स के मूल्य और खपत/निवेश की मांग, सभी सिलसिलेवार होते हैं. A में बदलाव होता है तो B भी बदलता है, और इससे A फिर से बदल जाता है. बाजार खुद को सुधारता चलता है (बेशक, काफी दर्द और तनाव के जरिए).
Cryptocurrency में भारी गिरावट, जानिए यह पैसा बनाने का मौका या खतरे की घंटी
क्रिप्टो मार्केट में नए साल की शुरुआत से ही गिरावट देखी जा रही है. महंगाई दर, लिक्विडिटी और US Fed Reserve के अगले कदम को लेकर आशंकाओं के कारण कई प्रमुख क्रिप्टोकरेंसी में डबल डिजिट की गिरावट आ चुकी है.
aajtak.in
- नई दिल्ली,
- 15 जनवरी 2022,
- (अपडेटेड 15 जनवरी 2022, 6:30 PM IST)
- Bitcoin नवंबर में था 68,000 डॉलर के पार
- 40,000 डॉलर से नीचे आया बिटकॉइन
पिछले कुछ दिनों में क्रिप्टोकरेंसी मार्केट (Cryptocurrency Market) में काफी अधिक गिरावट का सेंटिमेंट देखने को मिला है. इस वजह से इंवेस्टर्स इस बात को लेकर काफी चिंता में नजर आ रहे हैं कि उन्हें क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) में इंवेस्ट करना चाहिए या नहीं. क्रिप्टो मार्केट नए साल की शुरुआत से ही लगातार गिर रहा है. महंगाई दर, लिक्विडिटी और US Fed Reserve के अगले कदम को लेकर आशंकाओं के कारण कई प्रमुख क्रिप्टोकरेंसी में डबल डिजिट की गिरावट आ चुकी है.
आई है इतनी गिरावट
CoinMarketCap के अनुसार, सबसे बड़ी Cryptocurrency Bitcoin 11 नवंबर 2021 को 68,000 डॉलर (करीब 50.5 लाख रुपये) के पार पहुंच गई थी. Bitcoin का भाव 10 जनवरी को घटकर 40,000 डॉलर (करीब 29.7 जाख रुपये) के नीचे आ गया. दूसरी सबसे बड़ी क्रिप्टोकरेंसी Ethereum भी 10 जनवरी, 2022 को 3,000 डॉलर (करीब 2.25 लाख रुपये) से नीचे आ गई जो 11 नवंबर को 4,800 डॉलर (करीब 3.5 लाख रुपये) के पार पहुंच गई थी. तीसरी सबसे बड़ी Crypto Binance सात नवंबर, 2021 को 668 डॉलर (करीब 50,000 रुपये) पर पहुंच गई थी. 10 जनवरी 2022 को यह 420 डॉलर (करीब 31,000 रुपये) के नीचे आ गई थी.
10 जनवरी के बाद दिखी है थोड़ी रिकवरी
CoinMarketCap पर उपलब्ध डेटा के अनुसार 10 जनवरी, 2022 के बाद से अब तक Bitcoin, Etherum और Binance सहित सभी क्रिप्टोकरेंसी में थोड़ी ही सही लेकिन तेजी देखने को मिल रही है.
निवेशकों को क्या करना चाहिए
हालांकि, किसी चीज में गिरावट का मतलब यह नहीं होता है कि आप उससे एकदम दूर हो जाओ. शेयर मार्केट के पंडित तो गिरावट के समय शेयरों में इंवेस्टमेंट बढ़ाने की सलाह देते हैं. असल में यह फॉर्मूला Crypto पर भी लागू होता है. ऐसे में अगर कोई इंवेस्टर मार्केट रिसर्च करते रहता है और उसे फंडामेंटल्स बेहतर नजर आते हैं तो यह क्रिप्टो में निवेश का सबसे उचित समय कहा जा सकता है.
इन चीजों को ध्यान में रखना जरूरी
Cryptocurrency अपनी शुरुआत से लेकर काफी Volatile रही है. ऐसे में इसमें निवेश करते समय इंवेस्टर्स को तमाम Aspects को ध्यान में रखना चाहिए. किसी भी अफवाह या जल्दबाजी से बचना चाहिए.
60 फीसदी पैसा इक्विटी में डालें, बाकी गोल्ड, कैश और शॉर्ट टर्म डेट फंड्स में : ये है निवेश का फॉर्मूला
iThought नामक एक कंपनी बनाने वाले श्याम शेखर अब निवेश जगत के जाने माने नाम हैं. उन्होंने निवेश से जुड़े कई सवालों के अहम जवाब दिए, जो किसी भी निवेशक को सफल बना सकने के लिए काफी हैं. उन्होंने निवेश का पूरा फॉर्मूला बता दिया है.
- News18Hindi
- Last Updated : October 13, 2022, 14:12 IST
हाइलाइट्स
iThought के संस्थापक श्याम शेखर ने बताया निवेश का फॉर्मूला.
शेखर ने बताया लार्ज कैप में निवेश करना चाहिए या स्माल कैप में?
स्माल कैप फंड्स को लेकर उन्होंने जो कहा, वह काफी महत्वपूर्ण.
नई दिल्ली. निवेश की सलाह देने वालों की दुनिया में श्याम शेखर आज एक बड़ा नाम है, लेकिन यह नाम हमेशा से इतना पॉपुलर नहीं था. श्याम शेखर ने मनीकंट्रोल को दिए एक इंटरव्यू में निवेश के बारे में बड़ी जबरदस्त सलाह दी है. उन्होंने लाखों की बात, बातों-बातों में ही शेयर कर दी है. हम आज आपको उनकी बेशकीमती सलाह के बारे में बताएंगे, लेकिन उससे पहले थोड़ा-सा श्याम शेखर के बारे में भी बता दें.
श्याम शेखर ने अपने प्रोफेशनल जीवन के पहले 22 साल बिलकुल अलग ही काम में लगाए. वे पेंट फॉर्मूलेटर और टेक्नोलॉजिस्ट थे और उनका पेंट (Paint) बनाने का बिजनेस था. लेकिन शेखर हमेशा से इक्विटी और शेयर बाजार में रुचि रखते थे. तमिलनाडु के जिस क्षेत्र में वह रहते थे, वहां उन दिनों शेयर बाजार में निवेश को बहुत इज्जत या सम्मान वाला काम नहीं माना जाता था. लोग निवेश के लिए इंश्योरेंस स्कीम और FD पर भरोसा करते थे.
शेखर 1990 में जब ग्रेजुएट हुए तो उन्होंने अपनी सेविंग्स के साथ ट्रेडिंग की शुरुआत की. समय बीता तो इक्विटी के साथ उनका प्यार और गहरा होता चला गया. 2 दशकों साथ पेंट का बिजनेस करने वाले शेखर ने अपने प्यार (इक्विटी में काम) को ज्यादा तवज्जो देते हुए 2010 में वेल्थ मैनेजमेंट का काम शुरू कर दिया. उन्होंने अपनी कंपनी का नाम रखा आईथॉट (iThough). शुरुआती वर्षों में iThought म्यूचुअल फंड्स और दूसरे फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश के लिए लोगों की मदद करती थी. 2016 में उनकी कंपनी को लाइसेंस मिल गया और वे एक रजिस्टर्ड इन्वेस्टमेंट एडवाइजर बन गए. 2019 में उन्हें पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विस (PMS) का लाइसेंस भी मिल गया. वे चेन्नई के इन्वेस्टर क्लब का हिस्सा बने और बाद में तमिलनाडु इन्वेस्टर्स एसोसिएशन के अध्यय भी रहे… उनका यह सफर जारी है. मनीकंट्रोल के कुछ सवाल और शेखर द्वारा किए गए उनके जवाब कुछ यूं हैं-
सवाल: मार्केट इस वर्ष में काफी वोलाटाइल रही है. सेंसेक्स 60 हजार के ऊपर निकला और फिर गिरकर 51 हजार के आसपास आ गया. क्या यह समय निवेश के लिए सही है?
जवाब: हां. आपको अवश्य ही निवेश करना चाहिए, क्योंकि “इंतज़ार” की रणनीति ज्यादातर फ्लॉप ही होती है. निवेश करना और फिर इंतज़ार करना अच्छी रणनीति है. हां, आप कुछ पैसा बचाकर रख सकते हैं, ताकि बाजार के गिरने पर आप उसमें निवेश कर पाएं.
सवाल: यदि मेरे पास 10 लाख रुपये हैं, तो आप उस पैसे को कहां निवेश करने की सलाह देंगे? आप मोटे तौर पर हमें समझा सकते हैं.
जवाब: 60 फीसदी पैसा इक्विटी में डालिए. बाकी गोल्ड, कैश और शॉर्ट टर्म डेट फंड्स में रखिए.
सवाल: विदेशों में निवेश इन दिनों काफी चर्चा में है. क्या आप इंटरनेशनल स्टॉक्स में निवेश की सलाह नहीं देंगे?
जवाब: जब मैंने 60 फीसदी हिस्सा इक्विटी में निवेश के लिए कहा है, उसमें 10 फीसदी अंतरराष्ट्रीय बाजारों में डालने की सलाह भी शामिल है. अंतरराष्ट्रीय बाजारों में सिर्फ अमेरिकी बाजारों में. बाकी के बाजारों पर जियो-पॉलिटिकल प्रेशर काफी ज्यादा असर डाल रहा है. दूसरा, आप सभी बाजारों को ट्रैक भी नहीं कर सकते, क्योंकि वहां की सरकार और उसकी रणनीतियों को समझना मुश्किल होता है.
सवाल: क्या भारत में अब भी अच्छी बड़ी और छोटी कंपनियां खोजना आसान काम है?
जवाब: भारत में लार्ज कंपनियां खोजना बहुत आसान है, लेकिन छोटी और अच्छी कंपनियां अगर डॉलर गिरता है तो मुझे क्या निवेश करना चाहिए? खोजना उतना ही मुश्किल. क्योंकि जो बिजनेस हम देखते हैं, उसकी वैल्यूएशन पहले से ही काफी बढ़ी हुई होता है. दूसरा, छोटी कंपनियों में अगर वैल्यूएशन कम भी हो तो लिक्विडिटी की समस्या पैदा हो जाती है. लिक्विडिटी का न होना एक बड़ी प्रॉब्लम है.
यही वजह है कि कई मिड-कैप और स्माल-कैप कंपनियों की इम्पैक्ट कॉस्ट ज्यादा होती है. आपको इस इम्पैक्स कॉस्ट के बारे में सावधान रहना चाहिए. यह किसी भी स्टॉक को खरीदने के लिए दिया गया अतिरिक्त पैसा है. इसलिए ही कई एक्सपर्ट कहते हैं कि स्माल-कैप और मिड-कैंप कंपनियों को आपको म्यूचुअल फंड्स के जरिए खरीदना चाहिए. यहां समस्या इतनी-सी है कि अच्छा करने वाले फंड्स लगातार बढ़ते रहते हैं, क्योंकि निवेशक उन्हें चेज़ करते हैं. जब तक आप समझते हैं, तब तक स्माल और मिड कैप फंड, बड़े (लार्ज) हो चुके होते हैं.
आपने देखा होगा, स्माल कैप फंड्स में लोग ज्यादा निवेश करते हैं. उन्हें लगता है कि ये लार्ज कैप के मुकाबले बेहतर रिटर्न देंगे. लेकिन जरूरी नहीं कि यह सोच हमेशा सही हो. आज, भारतीय स्माल कैप कंपनियों की वैल्यूएशन दूसरे बाजारों की स्माल कैप कंपनियों से अधिक है. आपको स्माल कैप शेयर तब खरीदने चाहिएं, लेकिन जब वे काफी कम कीमत पर मिल रहे हों. इस तरह आपको ज्यादा रिटर्न मिलता है. यही मेरा अनुभव भी है.
लोग स्माल कैप कंपनियों में जमकर पैसा डाल रहे हैं, ताकि वे अपना पोर्टफोलियो बना सकें. स्माल कैप कंपनियों में निवेश करने का यह सही तरीका नहीं है. यही वजह है कि मैं स्माल कैप्स को लेकर अतिरिक्त सावधान रहता हूं. मैं ऐसे बिजनेसेज़ में निवेश करता हूं, जहां मुझे ज्यादा इम्पैक्ट कॉस्ट न लगाकर भाग लेने का मौका मिले. स्माल कैप स्टॉक्स की दुनिया बड़ी संकरी और भीड़भरी है. यहां किसी भी समय भगदड़ मच सकती है.
इस इंटरव्यू में श्याम शेखर ने और भी कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी राय रखी है, जैसे कि एक अच्छा पोर्टफोलियो कैसे बनाएं, ब्याज दरें बढ़ने पर क्या करें, और महंगाई से पार कैसे पाएं. इस सभी प्रश्नों के उत्तर हम कल (शुक्रवार) को छापेंगे. उम्मीद करते हैं कि आप एक सॉलिड पोर्टफोलियो बनाने की जानकारी लेने जरूर पढ़ेंगे.
Written by KAYEZAD E ADAJANIA / MoneyControl
(Disclaimer: यह एक इंटरव्यू पर आधारित खबर हैं. यदि आप किसी भी फंड में पैसा लगाना चाहते हैं तो पहले सर्टिफाइड इनवेस्टमेंट एडवायजर से परामर्श कर लें. आपके किसी भी तरह के लाभ या हानि के लिए News18 जिम्मेदार नहीं होगा.)
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Crypto Trading : क्रिप्टोकरेंसी ट्रेड ब्लॉकचेन तकनीक पर काम करती है और निवेश को सुरक्षित रखने के लिए एन्क्रिप्शन कोड का इस्तेमाल करती है. आप अपने क्रिप्टो टोकन या तो सीधे बायर को बेच सकते हैं या फिर ज्यादा सुरक्षित रहते हुए एक्सचेंज पर ट्रेडिंग कर सकते हैं.
Cryptocurrency Trading : क्रिप्टोकरेंसी में निवेश को लेकर है बहुत से भ्रम. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) एन्क्रिप्शन के जरिए सुरक्षित रहने वाली एक डिजिटल करेंसी है. माइनिंग के जरिए नई करेंसी या टोकन जेनरेट किए जाते हैं. माइनिंग का मतलब उत्कृष्ट कंप्यूटरों पर जटिल गणितीय समीकरणों को हल करने से है. इस प्रक्रिया को माइनिंग कहते हैं और इसी तरह नए क्रिप्टो कॉइन जेनरेट होते हैं. लेकिन जो निवेशक होते हैं, वो पहले से मौजूद कॉइन्स में ही ट्रेडिंग कर सकते अगर डॉलर गिरता है तो मुझे क्या निवेश करना चाहिए? हैं. क्रिप्टो मार्केट में उतार-चढ़ाव का कोई हिसाब नहीं रहता है. मार्केट अचानक उठता है, अचानक गिरता है, इससे बहुत से लोग लखपति बन चुके हैं, लेकिन बहुतों ने अपना पैसा भी उतनी ही तेजी से डुबोया है.
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अगर आपको क्रिप्टो ट्रेडिंग को लेकर कुछ कंफ्यूजन है कि आखिर यह कैसे काम करता है, तो आप अकेले नहीं हैं. बहुत से लोग यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि वर्चुअल करेंसी में कैसे निवेश करें. हम इस एक्सप्लेनर में यही एक्सप्लेन करने की कोशिश कर रहे हैं कि आप क्रिप्टोकरेंसी में कैसे निवेश कर सकते हैं, और क्या आपको निवेश करना चाहिए.
क्रिप्टोकरेंसी क्या है?
क्रिप्टोकरेंसी क्या है, ये समझने के लिए समझिए कि यह क्या नहीं है. यह हमारा ट्रेडिशनल, सरकारी करेंसी नहीं है, लेकिन इसे लेकर स्वीकार्यता बढ़ रही है. ट्रेडिशनल करेंसी एक सेंट्रलाइज्ड डिस्टिब्यूशन यानी एक बिंदु से वितरित होने वाले सिस्टम पर काम करती है, लेकिन क्रिप्टोकरेंसी को डिसेंट्रलाइज्ड टेक्नॉलजी, ब्लॉकचेन, के जरिए मेंटेन किया जाता है. इससे इस सिस्टम में काफी पारदर्शिता रहती है, लेकिन एन्क्रिप्शन के चलते एनॉनिमिटी रहती है यानी कि कुछ चीजें गुप्त रहती हैं. क्रिप्टो के समर्थकों का कहना है कि यह वर्चुअल करेंसी निवेशकों को यह ताकत देती है कि आपस में डील करें, न कि ट्रेडिशनल करेंसी की तरह नियमन संस्थाओं के तहत.
क्रिप्टो एक्सचेंज का एक वर्चुअल माध्यम है. इसे प्रॉडक्ट या सर्विस खरीदने के लिए इस्तेमाल में लिया जा सकता है. जो क्रिप्टो ट्रांजैक्शन होते हैं. उन्हें पब्लिक लेज़र यानी बहीखाते में रखा जाता है और क्रिप्टोग्राफी से सिक्योर किया जाता है.
क्रिप्टोकरेंसी की ट्रेडिंग कैसे होती है?
इसके लिए आपको पहले ये जानना होगा कि यह बनता कैसे है. क्रिप्टो जेनरेट करने की प्रक्रिया को माइनिंग कहते हैं. और ये काम बहुत ही उत्कृष्ट कंप्यूटर्स में जटिल क्रिप्टोग्राफिक इक्वेशन्स यानी समीकरणों को हल करके किया जाता है. इसके बदले में यूजर को रिवॉर्ड के रूप में कॉइन मिलती है. इसके बाद इसे उस कॉइन के एक्सचेंज पर बेचा जाता है.
कौन कर सकता है ट्रेडिंग?
ऐसे लोग जो कंप्यूटर या टेक सैवी नहीं हैं, वो कैसे क्रिप्टो निवेश की दुनिया में प्रवेश कर सकते हैं? ऐसा जरूरी नहीं है कि हर निवेशक क्रिप्टो माइनिंग करता है. अधिकतर निवेशक बाजार में पहले से मौजूद कॉइन्स या टोकन्स में ट्रेडिंग करते हैं. क्रिप्टो इन्वेस्टर बनने के लिए माइनर बनना जरूरी नहीं है. आप असली पैसों से एक्सचेंज पर मौजूद हजारों कॉइन्स और टोकन्स में से कोई भी खरीद सकते हैं. भारत में ऐसे बहुत सारे एक्सचेंज हैं तो कम फीस या कमीशन में ये सुविधा देते हैं. लेकिन यह जानना जरूरी है कि क्रिप्टो में निवेश जोखिम भरा है और मार्केट कभी-कभी जबरदस्त उतार-चढ़ाव देखता है. इसलिए फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स निवेशकों से एक ही बार में बाजार में पूरी तरह घुसने की बजाय रिस्क को झेलने की क्षमता रखने की सलाह देते हैं.
यह समझना भी जरूरी है कि सिक्योर इन्वेस्टमेंट, सेफ इन्वेस्टमेंट नहीं होता है. यानी कि आपका निवेश ब्लॉकचेन में तो सुरक्षित रहेगा लेकिन बाजार में उतार-चढ़ाव का असर इसपर होगा ही होगा, इसलिए निवेशकों को पैसा लगाने से पहले जरूरी रिसर्च करना चाहिए.
क्रिप्टोकरेंसी का इस्तेमाल क्या है?
यह डिजिटल कॉइन उसी तरह का निवेश है, जैसे हम सोने में निवेश करके इसे स्टोर करके रखते हैं. लेकिन अब कुछ कंपनियां भी अपने प्रॉडक्ट्स और सर्विसेज़ के लिए क्रिप्टो में पेमेंट को समर्थन दे रही हैं. वहीं, कुछ देश तो इसे कानूनी वैधता देने पर विचार कर रहे हैं.