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ऑप्शन का फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में बदलाव

ऑप्शन का फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में बदलाव

India VIX ने समझाया: India VIX क्या है और यह कैसे काम करता है?

शेयर बाजार को अस्थिर माना जाता है, जिसमें उच्च स्तर की अस्थिरता होती है, जिसका अर्थ है कि छोटी अवधि में शेयरों की कीमतों में भारी ऊपर और नीचे की गति हो सकती है। बाजार के निवेशकों को डर सूचकांक या अस्थिरता सूचकांक जैसे शब्दों का सामना करना पड़ सकता है। भारत VIX या भारत अस्थिरता सूचकांक के बारे में जानना महत्वपूर्ण है, जो भारत में निवेशकों और व्यापारियों को अस्थिरता-प्रेरित उतार-चढ़ाव को समझने में मदद करता है। इस लेख में, हम VIX इंडिया और इसके महत्व के बारे में चर्चा करेंगे जो आपको सूचित निवेश निर्णय लेने में मदद कर सकता है।

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डेरिवेटिव्स क्या है और इसके प्रकार | What is Derivatives in Hindi ?

डेरिवेटिव्स क्या है: एक फाइनेंसियल Contract है, जिसकी वैल्यू Underlying Asset से जुडी हुई है। एक ऐसा कॉन्ट्रैक्ट जिसमे Underlying Asset की फ्यूचर वैल्यू का अंदाजा लगाते हुए शेयर बाजार में ट्रेड की जाती है। खासकर शेयर मार्किट में Underlying Asset's का मतलब होता है शेयर, कमोडिटी, बॉन्ड, करेंसी, इन्डेक्सेस आदि। इन Asset's की प्राइस की उतार-चढ़ाव से Derivative Contract की वैल्यू में बदलाव देखने को मिलती है।

आसान भासा में समझें तो Derivatives एक ऐसा चीज है जिसकी वैल्यू किसी दूसरे चीज से निकाले जाते हैं। शेयर बाजार में Derivatives क्या होता है ? Derivatives का इस्तेमाल Risk को कम करने के लिए की जाती है। लेकिन आमतौर पे ट्रेडर्स इसे ट्रेडिंग करने के लिए इस्तेमाल करते हैं, जिसके जरिये एक छोटा अमाउंट ऑप्शन का फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में बदलाव इन्वेस्ट करते हुए बड़ा Lot Size को buy या Sell करना होता है। ट्रेडर्स को Financial Derivatives में ट्रेडिंग करना इसीलिए पसंद है क्यों की इसमें उन्हें कम इन्वेस्टमेंट में ज्यादा मुनाफा कमाने का मौका मिलता है, हालाँकि इसमें रिस्क भी उतना ही है।

भारत में Derivatives की शुरुआत साल 2000 में हुआ था, उस समय केवल Future Contract की ही ट्रेड होती थी। उसके बाद साल 2021 में Future and Option (F&O) ट्रेडिंग होने लगी।

Derivatives दो तरह के ट्रेडिंग की जाती है, Speculations और Hedge जिसमे ट्रेडर्स आपने Risk को कम करने के लिए Hedging का इस्तेमाल करते हैं और कई ट्रेडर्स मार्किट की Direction को अनुमान लगाते हुए ट्रेड execute करते हैं। Speculations एक तरह की सटेबाजी होती है, इसमें जितना प्रॉफिट दीखता है उससे कई ज्यादा आपको नुकसान उठाना पड सकता है। पेशेवर ट्रेडर्स Derivatives Contract को ज्यादातर Hedging के लिए इस्तेमाल करते हैं।

Derivatives के प्रकार (Types of Derivatives in Hindi)

आमतौर पे Derivatives 4 प्रकार के होते हैं : Forward Contract, Future Contract, Option Contract और Swap Contract. इन सभी Financial Derivatives के बारे में हम अभी समझेंगे।

Forward Contract:

Forward Contract एक तरह की कॉन्ट्रैक्ट है जिसमे Buyer और Seller के बिच फ्यूचर में होनेवाले deal में रिस्क को कम करने के लिए की जाती है। यह एक Future Contract की तरह ही है, लेकिन Forward Contract किसी भी थर्ड पार्टी एक्सचेंज में ट्रेड नेहो होती। इस कॉन्ट्रैक्ट में Buyer और Seller में से कोई एक भी डिफ़ॉल्ट करता है तो Settlement के लिए curt के चक्कर लगाने पड़ेंगे।

एक Example से Forward Contract को समझने की कोसिस करते हैं: एक किसान है जो Tomato की खेती करता है, लेकिन किसान यह नहीं जनता की जब फसल तैयार हो जायेंगे तो उस समय बाजार में टोमेटो की कीमत क्या होगी, जब की आज Tomato 10 रुपए/किलो बिक रहा है। क्यूंकि Market Price तो तय होती है उस समय की डिमांड और सप्लाई के हिसाब से, ऐसे में उस किसान को एक Sauce बनाने वाली कंपनी आके उस किसान को ये कहता है की वे Tomato के आज के भाव में यानि 10 रुपए/किलो में उसके सारे Tomato खरीद लेंगे जब भी फसल रेडी हो जाये।

इसमें उस Sauce कंपनी को लगता है की Tomato की कीमत आगे बढ़ने वाली है, ऐसे में कंपनी को भी फ़ायदा है। किसान को भी यह डर है की फसल रेडी होते होते कही उसे बाजार में कम कीमत ना बेचना पड़े। इसीलिए दोनों पार्टी के बिच एक Forward Contract Sign होता है। क्यूंकि यह कॉन्ट्रैक्ट फ्यूचर में पूरा होगा यानि दो या तीन महीने बाद Settlement होगा, इसीलिए इसे Forward Contract कहा जाता है।

Future Contract:

फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट भी कुछ हद तक Forward Contract की तरह होता हैं, जिसमे एक थर्ड पार्टी Exchange की जिम्मेदारी होती है की Buyer और Seller के बिच Settlement पूरा हो। शेयर बाजार में Stock Exchanges इसीतरह के काम करते हैं, स्टॉक एक्सचेंज को यह सुनिश्चित करना होता है की Buyer को Settlement के दौरान शेयर मिले और Seller को पुरे पैसे मिले।

Future Contract 3 तरह के होते हैं, जैसे की Near Month Contract, Next Month Contract और Far Month Contract. Near Month Contract में Current month के आखिर दिन (यानि की इस महीने के Last Working Day) Expiry Date होता है जिस में ट्रेड को close की जाती है, जिसमे Buyer को शेयर की डिलीवरी मिलजाती है और Seller को उसके पुरे पैसे। ठीक उसी तरह Next Month Contract में डिलीवरी एक महीने बाद मिलता है और Far Month Contract में 2 महीने बाद डिलीवरी मिलती है।

यह जरुरी नहीं है की Future Contract लेने के बाद ट्रेडर्स Expiry Date तक रुके। अगर इस फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में दोनों पार्टी मार्किट या उस शेयर की ट्रेंड को अनुमान लगते हुए ट्रेड कर रहे हैं तो वे या तो उस ट्रेड से profit लेके या अपना Stop Loss को respect करते हुए Expiry Date से पहले निकल जायेंगे।

एक Example से समझते हैं : आज के date-19/03/2022 को एक Buyer को रिलायंस शेयर का Current month future खरीदना है, जिसकी प्राइस आज 2490 रुपए है और Buyer को लग रहा है की आनेवाले दिनों में रिलायंस शेयर का प्राइस बढ़ने वाला है। ठीक उसी तरह एक Seller को लगता है की आनेवाले दिनों में रिलायंस शेयर का प्राइस गिरने वाला है। ऐसे में Buyer कुछ प्रीमियम देके Reliance का 1 लोट यानि 250 शेयर्स का लोट खरीद लेता है। अगर Expiry Date तक रिलायंस शेयर की प्राइस बढ़ जाती है तब भी वे आज के प्राइस पे seller को पुरे पैसे देके शेयर की डिलीवरी उठा सकते हैं।

इस दौरान अगर Reliance शेयर की कीमत गिरने लगे तो वे थोड़ा Loss उठाते हुए मार्किट में सारे शेयर्स को बेच सकते हैं, जबकि उनके पास एक्चुअल में 250 शेयर्स है नहीं। यह काम करता है स्टॉक एक्सचैंजेस जो Buyer और Seller के बिच के Transaction को Execute करना और समय पर Settlement करना सुनिश्चित करे।

Option Contract :

ऑप्शन्स एक डेरिवेटिव्स कॉन्ट्रैक्ट्स हैं जो Buyer को एक निश्चित समय अवधि के लिए एक निश्चित मूल्य पर Underlying asset खरीदने या बेचने की अनुमति देते हैं। लेकिन खरीदार को यह अधिकार मिलता है वे इस ट्रेड को चाहे तो Execute करे या न करें। Buyer जो भी प्रीमियम देके उस कॉन्ट्रैक्ट को खरीद रहे हैं, उस प्रीमियम का उनको loss उठाना होगा अगर वे इस कॉन्ट्रैक्ट को एक्सेक्यूटे नहीं करते हैं तब। लेकिन Future Contract में ऐसा नहीं होता, अगर खरीदार फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट Expire होने तक ट्रेड को क्लोज नहीं करते तो उन्हें डिलीवरी उठाना ही होगा।

Option contract को एक Example से समझते हैं : मानलेते हैं मुझे एक Honda की ब्लैक कलर की बाइक खरीदना है, में Showroom में गया तो देखा ब्लैक कलर की बाइक हे ही नहीं। ऐसे में शोरूम के एक Sells Executive ने मुझे आकर कहा की अगले महीने हम आपको ब्लैक कलर की गाड़ी दे सकते हैं, और उस समय चाहे Bike की जो भी कीमत होगी हम आपको आज के कीमत पर देंगे, बस आपको 1000 रुपए देके आज ही रजिस्ट्रेशन करना होगा और ये Non-Refundable है। हम मानलेते हैं की उस बाइक की कीमत उस दिन 1,30,000 रुपए था।

एक महीने बाद में फिर उसी शोरूम में जाता हूँ, तो मुझे ब्लैक कलर की बाइक देखने को मिलती है लेकिन आज उस बाइक की कीमत घटकर 1,20,000 रुपए हो जुका है। ऐसेमें क्या में इस बाइक को पिछले महीने के दाम पर खरीदूंगा, जाहिर सी बात है "नहीं"। भले ही मेरे 1000 रुपए डूब जाये, में आज के दाम पर ही बाइक खरीदूंगा क्यूंकि मुझे आज उस बाइक के लिए 10000 कम देने पड़ रहें हैं।

ठीक ऑप्शन का फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में बदलाव उसी तरह शेयर बाजार में ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट काम करते हैं। अगर Buyer या Seller को एक Option contract से नुकसान हो रहा है तो वे सौदा पूरा नहीं करेंगे, क्यों की उनके पास ऑप्शन है।

Swap Contract :

Swap Contract भी एक तरह के Financial Derivatives है जिसमे दो पार्टी के बिच फाइनेंसियल लेनदेन की अदला बदली की कॉन्ट्रैक्ट होता है यानि के Loan और Interest rate आदि। Swap Contract को Commodity और Currency मार्किट की Price Fluctuation रिस्क को कम करने के लिए भी Use में लाया जाता है। आमतौर पे Swap Contract किसी एक्सचेंज में ट्रेड नहीं होता, यह एक निजी अनुवंध होता है दोनों पार्टी के बिच में।

ट्रेडिंग टाइमिंग बढ़ने से फायदा कम, पचड़ा ज्यादा

बड़ी चिंता यह है कि इस कदम से स्टॉक मार्केट और बैंकिंग गलियारों में काम करने वाले कई लोगों को दिक्कतें पैदा होंगी.

टैक्स जानकारों का मानना है कि ट्रेडिंग के घंटे बढ़ने से वॉल्यूम में नाटकीय बदलाव नहीं आएगा और साथ ही एसटीटी के तौर पर होने वाले टैक्स संग्रह पर भी ज्यादा असर नहीं होगा। एसटीटी संग्रह बीते वित्त वर्ष की तुलना में इस कारोबारी साल में अब तक 10 फीसदी बढ़कर 5,428 करोड़ रुपये पर पहुंच चुका है। डिलीवरी आधारित टर्नओवर के मामले में खरीद-बिक्री, दोनों पर 0.125 फीसदी एसटीटी लगता है, जबकि इंट्रा-डे या गैर-डिलीवरी आधारित टर्नओवर में बिकवाली पक्ष पर 0.025 फीसदी एसटीटी वसूला जाता है।

इसी तरह एफऐंडओ सेग्मेंट में बिकवाली पक्ष पर फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट पर 0.017 फीसदी एसटीटी देना पड़ता है, जबकि खरीद पक्ष के लिए यह 0.125 फीसदी तय है। ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट में बिकवाली पक्ष को 0.017 फीसदी एसटीटी देना पड़ता है। काफी देर तक खुलने वाली दुकान का उदाहरण देते हुए इनकम टैक्स विभाग के एक सीनियर अधिकारी ने कहा, 'बिक्री केवल इसलिए नहीं बढ़ेगी कि कोई संस्था ज्यादा घंटे के लिए काम कर रही है. इसलिए यह जरूरी नहीं है कि ट्रेडिंग का वक्त बढ़ने से आवश्यक रूप से लिक्विडिटी को मजबूती मिली और टैक्स कलेक्शन में इजाफा हो।'

एक अन्य टैक्स जानकार ने भी इस बात से इत्तफाक जताया। सीनियर चार्टर्ड अकाउंटेंट टी. पी, ओस्टवाल ने कहा, 'मुझे इस बात में संदेह है कि बाजारों के जल्द खुलने से उसमें ज्यादा लोग हिस्सा लेंगे और टैक्स के जरिए होने वाली आमदनी में काफी बढ़ोतरी होगी। बाजार में हिस्सा लेने वाले स्थानीय लोगों से ज्यादा इस कदम से सिंगापुर और हॉन्गकॉन्ग जैसी जगह विदेशी निवेशकों को फायदा होगा, जो स्क्रीन पर देखकर नाश्ते ऑप्शन का फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में बदलाव के वक्त फैसला कर सकेंगे, जो अभी के कार्यक्रम के तहत नहीं हो पाता।'

Share Market: सेंसेक्स में बड़ी गिरावट, इस एक कंपनी ने दर्ज की उछाल

शेयर बाजार में गिरावट की वजह और आगे बाजार पर इसका असर

Share Market: सेंसेक्स में बड़ी गिरावट, इस एक कंपनी ने दर्ज की उछाल

भारतीय शेयर बाजार (Share Market) के इंडेक्स सेंसेक्स (Sensex) और निफ्टी (Nifty) 24 सितंबर को भी पिछले पांच दिनों की तरह ही गिरावट के साथ बंद हुए. गुरुवार को बाजार में स्थिरता की उम्मीदों के बीच बेयर्स (Bears) का बाजार पर कब्जा पूरी तरह स्पष्ट दिखा और दोनों ही सूचकांको में करीब 3% की भारी गिरावट देखने को मिली. अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भी हालात ऐसे ही दिखे और ज्यादातर देशों के बाजार निवेशकों के लिए अच्छा मुनाफा नहीं बना सके. बाजार बंद होते समय निफ्टी के 50 में 49 तो सेंसेक्स के 30 में से 29 शेयर रेड जोन में ट्रेड कर रहे थे. जानिए इस गिरावट की वजह और आगे बाजार पर इसका असर.

बाजार की चाल-

निफ्टी

  • खुला - 11011.00
  • पीक - 11015.30
  • बंद हुआ- 11805.55
  • कुल गिरावट- (-2.93%)

सेंसेक्स

  • खुला - 37282.18
  • पीक- 37304.26
  • बंद हुआ- 36553.60
  • कुल गिरावट- (-2.96%)

क्या रहा इसका कारण?

सेंसेक्स में करीब 1115 और निफ्टी में लगभग 326 अंको के आज की गिरावट का बड़ा कारण आर्थिक उबार के लिए ठोस संकेतो का आभाव रहा. विश्व भर के बाजार कोरोना की चिंताओं के बीच करेक्शन देख रहे है. यूएस फेड एवं अन्य सरकारों की तरफ से फिस्कल सपोर्ट में कमी के बीच आर्थिक सुधारों में देरी हो सकती है. भारत में भी कोरोना के मामलों में कोई खासी कमी नहीं दिख रही.

आज हालांकि सितंबर महीने के फ्यूचर एवं ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट एक्सपायरी का दिन होने के कारण भी बाजार में वोलटॅलिटी ज्यादा दिखी. लगातार बढ़ते सेलिंग प्रेशर के बीच बाजार ने आखिरी समय में अपना आज का न्यूनतम स्तर छुआ. ट्रेंड के अनुरूप मिडकैप और स्मॉलकैप, दोनों ही इंडेक्स ने काफी नेगेटिव में रहें. ध्यान रहे कि कल निफ्टी, सेंसेक्स में गिरावट के बाद भी स्मॉलकैप इंडेक्स स्थिर रहा था. निफ्टी स्मॉल-कैप 100 में 2.57% का नकारात्मक बदलाव देखा गया जबकि निफ्टी मिड-कैप 100 ने 2.51% की अच्छी कमी दर्ज की.

किस सेक्टर ने किया कैसा प्रदर्शन?

जैसा की स्पष्ट है, आज का दिन ट्रेडर्स एवं निवेशकों के लिए काफी बुरा रहा. ऐसे में लगभग सारे सेक्टर्स में रेड जोन की तरफ बड़ा झुकाव देखने को मिला. नॉन-कंज्यूमर ड्यूरेबल्स के अलावा सभी सेक्टर्स बाजार बंद होने के समय लाल में रहे. बड़ी उम्मीदों के बीच टेक ने जहां -4.15% की बड़ी कमी के साथ निराश किया, वहीं ऑटोमोटिव और फार्मा क्षेत्रों में भी -3.29% की कमजोरी देखी गई. टेलीकॉम, बैंक, मेटल्स एवं माइनिंग, सीमेंट, केमिकल और कंगलोरोमैट्स जैसे सेक्टर्स ने भी नेगेटिव ट्रेंड को महसूस किया.

ओपन इंटरेस्ट में नई ऊंचाई पर सोना, 25 टन के पार पहुंचा गोल्ड

मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में सोने की कीमतों में 591 रुपये की गिरावट देखी गई, जबकि बुधवार को सोना 200 रुपये टूटा था.

25 जून को सोने का ओपन इंटरेस्ट 25 टन के पार चला गया था. पिछले 6 वर्षों में ओपन इंटरेस्ट में यह अधिकतम ऊंचाई देखने को मिली है. (Photo-Reutres)

इंटरनेशन परिदृश्य में चल रही गतिविधियों का असर सोना पर साफ-साफ देखने को मिल रहा है. जब अमेरिका के शीर्ष फेड बैंक द्वारा ब्याज दरों में कटौती की चर्चा चली तो सोना रिकॉर्ड ऊंचाई पर चला गया. और अब जब ब्याज दरों में फिलहाल कोई बदलाव नहीं हो रहा है तो सोना लगातार गिर रहा है.

मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में सोने की कीमतों में 591 रुपये की गिरावट देखी गई, जबकि बुधवार को सोना 200 रुपये टूटा था. मंगलवार को सोने के दामों में आई रिकॉर्ड तेजी के बाद सोने में गिरावट लगातार जारी है. गुरुवार को सोने के दाम 34,124 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बन रहे. सोने के दामों में तेजी से उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है.

उधर, गोल्ड में ओपन इंटरेस्ट में भी इजाफा हुआ है. 25 जून को सोने का ओपन इंटरेस्ट 25 टन के पार चला गया था. पिछले 6 वर्षों में ओपन इंटरेस्ट में यह अधिकतम ऊंचाई देखने को मिली है. सोने का टर्नओवर 11,447 करोड़ रुपये पर पहुंच गया है. बाजार विशेषज्ञ इसे फ्यूचर के लिए अच्छा मान कर चल रहे हैं.

सोने में इस हलचल से आम निवेशक या घरेलू खरीदार सोने से दूरी बनाए हुए है. इस सीजन में सोना की मांग कम ही रहती है. इसके अलावा कमोडिटी मार्केट में आई रिकॉर्ड तेजी से लोगों ने सोने से दूरी बना ली है. लेकिन यह दौर अस्थाई है. सोना का भाव अभी ऊपर ही रहेगा. बाजार में अब दबाव देखा जा रहा है.

उधर, मार्केट एक्सपर्ट चांदी में बिकवाली की सलाह दे रहे हैं. सोने-चांदी का रेश्यो इस समय 92 का चल रहा है. इसका मतलब है कि सोने में खरीदारी औऱ चांदी में बिकवाली करके चलें. वर्तमान हालात भी चांदी के पक्ष में कम ही दिख रहे हैं.

वायदा कारोबार में सोना टूटा
कमजोर वैश्विक संकेतों के साथ सटोरियों के सौदा कम किये जाने से वायदा बाजार में बृहस्पतिवार को सोने की कीमत 254 रुपये टूटकर 34,133 रुपये प्रति 10 ग्राम पर पहुंच गयी.

मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में अगस्त महीने की डिलिवरी के लिये सोने का भाव 254 रुपये यानी 0.74 प्रतिशत की गिरावट के साथ 34,133 रुपये प्रति 10 ग्राम पर पहुंच गया। इसमें 17,851 लॉट के लिये कारोबार हुआ. अक्टूबर महीने की डिलिवरी के लिये सोने की कीमत 277 रुपये यानी 0.8 प्रतिशत की गिरावट के साथ 34,318 रुपये प्रति 10 ग्राम पर आ गयी. इसमें 5,314 लॉट का कारोबार हुआ.

वैश्विक स्तर पर न्यूयार्क में सोना 0.54 प्रतिशत की गिरावट के साथ 1,407.70 डॉलर प्रति औंस रहा.

ओपन इंटरेस्ट
किसी भी फ्यूचर, पुट या कॉल में चल रही ट्रेडिंग की भविष्य की दिशा के बारे में ओपन इंटरेस्ट से ही जानकारी मिलती है. यह फ्यूचर, पुट और कॉल में उन कॉन्ट्रैक्ट की संख्या बताता जिनकी पोजीशन जीरो नहीं हुई है.

अगर कोई निवेशक 10 फ्यूचर खरीदता है और 4 बेच देते है. उसके ओपन इंटरेस्ट की संख्या 6 हुई और वॉल्यूम की संख्या 10 हुई. ओपन इंटरेस्ट का इस्तेमाल केवल फ्यूचर और ऑप्शन मार्केट में ही होता है, स्पॉट मार्केट में नहीं.

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