प्रसार कम है

स्कूलों में ‘हाइब्रिड’ पढ़ाई से कोविड-19 के प्रसार को काफी हद तक कम किया जा सकता : अध्ययन
इस अध्ययन को जर्नल बीएमसी पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित किया गया है। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि इससे नीति निर्माताओं को कोविड-19 की अन्य लहर या इसी प्रकार की अन्य बीमारियों में निर्णय लेने में मदद मिलेगी।
अमेरिका स्थित जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में प्रोफेसर और इस अध्ययन के प्रमुख पिनार केस्किनोकाक ने कहा, ‘‘महामारी के शुरुआत में जब स्कूलों को बंद करना परिपाटी बन रही थी तब इसके पक्ष और प्रसार कम है विरोध में कई बहस हुई।’’
उन्होंने कहा, ‘‘सवाल उठे कि क्या हमें सामाजिक कीमत और शिक्षा पर होने वाले असर से अधिक लाभ मिलेगा?’’ केस्किनोकाक ने बयान में कहा कि यह अध्ययन दिखाता है कि संक्रमण कम करने में इस कदम से लाभ हुआ, खासतौर पर दवाओं की अनुपस्थिति में और सबसे अधिक लाभ ‘हाइब्रिड’ पहल से हो सकता है।
यह अध्ययन खासतौर पर महामारी के शुरुआती दिनों के संदर्भ में प्रासंगिक है जब नीति निर्माता अपने-अपने जिलों में पड़ने वाले स्कूलों को बंद करने का फैसला लेने में मुश्किल का सामना कर रहे थे।
इस नतीजे पर पहुंचने के लिए अध्ययनकर्ताओं ने कोविड-19 के प्रसार के कृत्रिम मॉडल का इस्तेमाल किया और स्कूलों को खोलने की अलग-अलग रणनीति के असर का आकलन किया जिनमें स्कूलों को पूरी तरह से बंद करना, एक बच्चे को सप्ताह में दो दिन बुलाना, हर दूसरे दिन बुलाना, केवल छोटे बच्चों को बुलाना, नियमित बुलाना शामिल है।
अध्ययनकर्ताओं ने बताया कि स्कूलों को नियमित आधार पर खोलने के बजाय उपरोक्त रणनीति को अपनाने से क्रमश: 13,11, नौ प्रतिशत और छह प्रतिशत तक संक्रमण में कमी आई।
उन्होंने निष्कर्ष निकाला की केवल छोटे बच्चों को बुलाने, हर दूसरे दिन बुलाने और पूरी तरह से ऑनलाइन पढ़ाई से समुदाय स्तर पर संक्रमण में कमी लाने में मदद मिली।
हालांकि, पूरी तरह से स्कूलों को बंद करने के मुकबाले हाइब्रिड रणनीति का लाभ कम रहा।
उन्होंने कहा कि हाइब्रिड रणनीति में आमने-सामने और ऑनलाइन कक्षा का समिश्रण होता है और यह खासतौर पर परिवारों और शिक्षकों को विकल्प देता है। यह नियमित तौर पर स्कूल खोलने के मुकाबले संक्रमण को कम करने में बेहतर संतुलन पैदा करता है जबकि आमने-सामने की शिक्षा तक पहुंच सुनिश्चित करता है।
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.
बड़ों की तुलना में बच्चों से फैलता है कम एयरोसोल, सम्पर्क में आने वालों में संक्रमण की दर भी पायी गयी कम
एक नयी स्टडी के अनुसार बच्चे कम एयरोसोल्स वायु में प्रवाहित करते हैं और उनके संपर्क में आने वाले लोग अधिक बीमार नहीं होते हैं।
Written by Sadhna Tiwari | Updated : March 1, 2022 7:41 PM IST
Aerosol Transmission Of SARS-CoV-2 By Children:कोरोना वायरस महामारी के कमजोर पड़ने के साथ ही दुनियाभर में स्कूलों और शिक्षण संस्थानों को धीरे-धीरे खोलने का कार्य शुरू हो रहा है। ऐसे में माता-पिता और अभिभावकों में बच्चों के संक्रमित होने का डर और चिंता भी देखी जा रही है। गौरतलब है कि कई देशों में बच्चों के लिए कोरोना वैक्सीनेशन का कार्य भी तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है लेकिन, अधिकांश बच्चों का टीकाकरण अभी नहीं हुआ है। इसीलिए, स्कूल खुलने के साथ ही बच्चों की सुरक्षा से जुड़े सवाल उठाए जा रहे हैं। इस बीच एक राहतभरी खबर सामने आयी है। एक नयी स्टडी के आधार पर वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि बड़ों की तुलना में बच्चे गाते, बोलते और सांस छोड़ते समय बहुत कम एयरोसोल वायु में प्रवाहित करते हैं। जिससे उनके आसपास के अन्य बच्चों में संक्रमण फैलने की संभावना भी काफी कम है। (Aerosol Transmission Of SARS-CoV-2 By Children In Hindi.)
क्या बच्चों से कम फैलता है कोरोना?
गौरतलब है कि बोलने, खांसने, गाने या चिल्लाते समय सांस के साथ हवा में फैलने वाली छोटी बूंदे कोरोना वायरस को फैलाने में सहायक पायी गयी हैं। लेकिन, इस नयी स्टडी के अनुसार, वयस्कों की तुलना में बच्चे लगभग 75 फीसदी कम एयरोसोल हवा में छोड़ते हैं, जिससे वायरस का प्रसार भी कम होता है। सीएनएन की एक रिपोर्ट में कहा है कि शोध जर्नल ऑफ रॉयल सोसायटी इंटरफेस में प्रकाशित इस स्टडी के परिणामों के आधार पर जो दावे किए जा रहे हैं, उससे स्कूलों में रिस्क मैनेजमेंट से जुड़े निर्णय लेने में मदद मिलेगी।
इस शोध में जर्मनी के शोधकर्ताओं ने 15 बच्चों और 15 व्यस्कों की बोलते , गाते और सांस छोड़ने की दर मापी और इस दौरान निकलने वाले सूक्ष्म अणुओं यानि एयरोसोल्स की सीमा का पता लगाया। इसमें पाया गया है कि बच्चों में इनकी रफ्तार और मात्रा व्यस्कों की तुलना में काफी कम पाई गई थी।
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बच्चों में वायरल लोड भी है कम
उन्होंने बताया कि इस अध्ययन से एक बात साबित होती है कि स्कूल संबंधी कोई भी श्वास नीति बनाते समय इन मानकों का ध्यान रखना होगा क्योंकि कोई भी मानक बच्चों और व्यस्कों पर समान रूप से लागू नहीं किया जा सकता है। इसका एक कारण यह भी है कि बच्चों के फेफड़े,श्वास नलिका और अन्य श्वसन अंग व्यस्कों की तुलना में काफी छोटे होते हेैं और यही कारण है कि बच्चों में बड़ों की तुलना में वायरल लोड बहुत कम होता है। एक और बात यह भी साबित हुई है कि ऐसे बच्चे कम एयरोसोल्स वायु में प्रवाहित करते हैं और उनके संपर्क में आने वाले लोग अधिक बीमार नहीं होते हैं। (Aerosol Transmission Of SARS-CoV-2 By Children)
प्रसार कम है
भारतीय महिलाओं में खून की कमी के लिए जिम्मेवार है बढ़ता प्रदूषण
पीएम 2.5 में प्रति 10 माइक्रोग्राम क्यूबिक मीटर की वृद्धि भारत में 15 से 49 वर्ष की युवतियों और महिलाओं में एनीमिया के प्रसार को 7.63 फीसदी तक बढ़ा सकती है।
By प्रसार कम है Lalit Maurya
On: Friday 30 September 2022
भारत में 15 से 49 वर्ष की आयु की करीब 53.1 फीसदी महिलाएं और युवतियां ऐसी हैं जो खून की कमी और एनीमिया का शिकार हैं। देखा जाए तो भारत में जितनी फीसदी महिलाएं एनीमिया से ग्रस्त है वो वैश्विक औसत से भी 20 फीसदी ज्यादा है। आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत उन देशों में शामिल हैं जहां 15 से 49 वर्ष की युवतियों और महिलाओं में एनीमिया का प्रसार सबसे ज्यादा है।
शोध के मुताबिक शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में एनीमिया का प्रसार कहीं ज्यादा है। राज्यों में भी जहां नागालैंड में 22.6 फीसदी 15 से 49 वर्ष की महिलाएं और युवतियां एनीमिया से ग्रस्त थी वहीं झारखंड में यह आंकड़ा 64.4 फीसदी तक दर्ज किया गया था।
ऐसे में यह गंभीरता से सोचने का विषय है कि ऐसा क्या है जो इतनी बड़ी संख्या में देश की महिलाएं खून की कमी से जूझ रही हैं, जोकि उनके जीवन के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। भारत में खान-पान में पोषण की कमी इसकी एक वजह है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश में बढ़ता वायु प्रदूषण भी इस समस्या को और बढ़ा रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एनीमिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें रक्त में मौजूद लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या या हीमोग्लोबिन की मात्रा सामान्य से कम हो जाती है। गौरतलब है कि शरीर में ऑक्सीजन प्रवाह के लिए हीमोग्लोबिन की आवश्यकता होती है।
ऐसे में यदि शरीर में लाल रक्त कोशिकाएं और पर्याप्त हीमोग्लोबिन नहीं है, तो उसकी वजह से शरीर के ऊतकों तक ऑक्सीजन ले जाने के लिए रक्त की क्षमता कम हो जाती है। इसके कारण थकान, कमजोरी, चक्कर आना और सांस लेने में तकलीफ जैसे समस्याएं हो सकती हैं, कई मामलों में तो यह कमी जानलेवा भी हो सकती है।
हाल ही में इसपर इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) दिल्ली के शोधकर्ताओं की अगुवाई में एक अध्ययन किया गया है जिससे पता चला है कि वायु प्रदूषण और उसमें मौजूद प्रदूषण के महीन कण जिन्हें हम पीएम 2.5 के नाम से जानते हैं उनके लम्बे समय तक संपर्क में रहने से एनीमिया का खतरा बढ़ सकता है।
शोधकर्ताओं ने इसे समझने के लिए एक मिश्रित मॉडल का उपयोग किया है जिसमें विश्लेषण से पता चला है कि पीएम 2.5 में प्रति 10 माइक्रोग्राम क्यूबिक मीटर की वृद्धि भारत में 15 से 49 वर्ष की युवतियों और महिलाओं में एनीमिया के प्रसार को 7.63 फीसदी तक बढ़ा सकती है।
शोध के मुताबिक लम्बे समय तक पीएम2.5 के उच्च स्तर के संपर्क में रहने के कारण ऑक्सीडेटिव तनाव की वजह से सूजन और जलन पैदा हो जाती है जो शरीर में आयरन के प्रसार और अवशोषण को बाधित करता है। इसकी वजह से शरीर में हीमोग्लोबिन बनने के लिए जरूरी आयरन की कमी हो जाती है जो एनीमिया का कारण बनती है।
प्रदूषण की रोकथाम से 14 फीसदी तक घट सकता है एनीमिया का प्रसार
शोधकर्ताओं ने जो विश्लेषण किए हैं उनसे पता चला है कि यदि भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी वायु गुणवत्ता मानक 5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर को हासिल कर लेता है तो उससे देश में एनीमिया का प्रसार 53 फीसदी से घटकर 39.प्रसार कम है 5 फीसदी हो जाएगा। मतलब की देश में वायु गुणवत्ता में सुधार करके एनीमिया का प्रसार को 14 फीसदी तक कम किया जा सकता है। इतना ही नहीं शोध में यह भी सामने आया है कि इसकी वजह से देश में करीब 186 जिले एनीमिया के लिए 35 फीसदी के राष्ट्रीय लक्ष्य को हासिल कर लेंगें।
जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित इस रिसर्च से यह भी पता चला है कि वायु प्रदूषण के रूप में कार्बनिक और धूल कणों की तुलना में सल्फेट और ब्लैक कार्बन एनीमिया के प्रसार के लिए कहीं ज्यादा जिम्मेवार हैं। शोध के मुताबिक देश में बढ़ते पीएम2.5 के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेवार उद्योग हैं। वहीं इसके साथ-साथ बिजली, असंगठित क्षेत्र और घरों से हो रहा प्रदूषण, सड़कों की धूल, कृषि अपशिष्ट जलाने और परिवहन के कारण भी देश में पीएम 2.5 का स्तर बढ़ रहा है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक देश में वायु प्रदूषण में कटौती और स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने से 'एनीमिया मुक्त' मिशन के लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में तेजी आएगी।
प्रसार कम है
चक्रवात सितरंग: बंगाल की खाड़ी के ऊपर बना कम दबाव का क्षेत्र
चक्रवात सितरंग से होने वाले प्रभाव को लेकर ओडिशा के 7 जिलों में अलर्ट जारी किया गया है।
By Dayanidhi
On: Thursday 20 October 2022
इस साल दिवाली के दौरान भारत के तटीय क्षेत्र में चक्रवाती तूफान 'सितरंग' के टकराने के आसार हैं। मौसम विभाग द्वारा पूर्वानुमान लगाया गया हैं कि आज सुबह बंगाल की खाड़ी के ऊपर एक कम दबाव का क्षेत्र बन गया है।
मौसम विभाग के मुताबिक उत्तरी अंडमान सागर और इसके निकटवर्ती इलाकों पर चक्रवाती प्रसार के प्रभाव के चलते, उत्तरी अंडमान सागर और दक्षिण अंडमान सागर और बंगाल की दक्षिण पूर्व खाड़ी के आस-पास के क्षेत्रों में एक कम दबाव का क्षेत्र बन गया है। इससे संबंधित चक्रवाती प्रसार समुद्र तल से औसतन 7.6 किमी ऊपर तक फैला हुआ है।
इसके पश्चिम, उत्तर-पश्चिम की ओर बढ़ने और 22 अक्टूबर तक मध्य और उससे सटे दक्षिण पूर्व बंगाल की खाड़ी के ऊपर एक डिप्रेशन में बदलने का पूर्वानुमान है। इसके अगले 48 घंटों के दौरान पश्चिम-मध्य बंगाल की खाड़ी के ऊपर एक चक्रवाती तूफान में बदलकर और तेज होने की आशंका जताई गई है।
वहीं एक ट्रफ रेखा उत्तरी अंडमान सागर और दक्षिण अंडमान सागर के आसपास के क्षेत्रों और बंगाल की दक्षिण पूर्व खाड़ी के आसपास के क्षेत्रों से लेकर निचले स्तरों में बंगाल की दक्षिण खाड़ी में तमिलनाडु तट तक जा रही है।
एक चक्रवाती प्रसार निचले स्तरों में महाराष्ट्र तट से पूर्व मध्य अरब सागर के ऊपर बना हुआ है।
एक उत्तर-दक्षिण ट्रफ रेखा केरल तट से दक्षिण पूर्व अरब सागर से निचले स्तरों में महाराष्ट्र तट से पूर्व मध्य अरब सागर के ऊपर चक्रवाती प्रसार तक जाती है।
मौसम विभाग ने 23 अक्टूबर से मौसम में बदलाव होने का अनुमान लगाया है। जगतसिंहपुर, केंद्रपाड़ा और पुरी जिलों में भारी बारिश का येलो अलर्ट जारी किया गया है।
चक्रवात तथा तूफानी हवाओं के चलते मछुआरों को समुद्र से दूर रहने की चेतावनी
आज अंडमान सागर और इससे सटे दक्षिण-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम बंगाल की खाड़ी में 40 से 45 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली तूफानी हवाओं के और तेज होकर 55 किमी प्रति घंटे की रफ्तार में तब्दील होने की आशंका हैं।
वहीं आज दक्षिण श्रीलंका तट और उससे सटे दक्षिण-पश्चिम बंगाल की खाड़ी में 45 से 55 किमी प्रति घंटे की दर से चलने वाली तेज हवाओं के और तेज होकर 65 किमी प्रति घंटे की दर तक पहुंचने के आसार हैं।
उपरोक्त चक्रवात संबंधी गतिविधि को देखते हुए मौसम विभाग ने मछुआरों को इन इलाकों में मछली पकड़ने तथा किसी तरह के व्यापार से संबंधित काम के लिए न जाने की चेतावनी जारी की है।
चक्रवात सितरंग से होने वाले प्रभाव को लेकर ओडिशा के 7 जिलों में अलर्ट जारी किया गया है।
यदि बंगाल की खाड़ी के ऊपर बना चक्रवाती प्रसार एक चक्रवात में बदल जाता है और ओडिशा तट को पार कर जाता है, तो यह 2013 में चक्रवात फैलिन के बाद राज्य में आने वाला दूसरा तूफान होगा। चक्रवात फैलिन 12 अक्टूबर, 2013 को ओडिशा में गंजम के गोपालपुर तट के पास टकराया था। अक्टूबर महीने में 1891 से 2021 के बीच अब तक 15 चक्रवात ओडिशा तट को पार कर चुके हैं। 1999 का सुपर साइक्लोन, हालांकि, बंगाल की खाड़ी के इतिहास में अक्टूबर में आने वाला सबसे तीव्र चक्रवात बना हुआ है।
इस बीच, चक्रवात ने ओडिशा के तटीय जिलों में किसानों को धान की खड़ी फसलों पर इसके प्रभाव से चिंता में डाल दिया है। कई किसान अब खड़ी फसलों को काटने की योजना बना रहे हैं।