कमजोर डॉलर

- निर्यातकों को डॉलर की कमाई 5 दिन से अधिक होल्ड करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।
- एनआरआई अकाउंट (विदेशी मुद्रा) पर ब्याज दर बढ़ाया जाए तो डॉलर का प्रवाह बढ़ेगा।
- गैर जरूरी सामान पर आयात शुल्क बढ़ाने की आवश्यकता है।
- आरबीआई को बैंकों को अमेरिकी डॉलर फिक्स्ड डिपॉजिट ड्राइव चलाने की सलाह देनी चाहिए। इसकी मैच्य़ोरिटी छह माह से दो साल होनी चाहिए। इसके अनुसार ब्याज दर में बढ़ोतरी करनी चाहिए।
मुद्रा का दबाव: डॉलर के मुकाबले रुपये का अवमूल्यन
दुनिया के अन्य प्रमुख मुद्राओं के साथ रुपया एक फिर से एक नए दबाव का सामना कर रहा है। फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दर में भारी - भरकम 75 आधार अंकों की ताजा वृद्धि और अमेरिकी केंद्रीय बैंक द्वारा अपना ध्यान पूरी तरह से मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने पर केंद्रित रखने के स्पष्ट संदेश के मद्देनजर डॉलर में मजबूती जारी है। सप्ताह के अंत में एक नए रिकॉर्ड स्तर पर लुढ़क कर बंद होने से पहले, भारतीय मुद्रा शुक्रवार को दिन – भर के व्यापार (इंट्राडे ट्रेड) के दौरान पहली बार डॉलर के मुकाबले 81 अंक के पार जाकर कमजोर हुई। अस्थिरता को कम करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप से रुपये में गिरावट की रफ्तार को नरम किया गया। लेकिन 16 सितंबर से 12 महीनों में इस तरह के हस्तक्षेपों का कुल नतीजा यह हुआ कि भारतीय रिजर्व बैंक के विदेशी मुद्रा भंडार के आपातकालीन कोष में लगभग 94 बिलियन डॉलर की कमी आई और यह कोष अब घटकर 545.65 बिलियन डॉलर का रह गया है। डॉलर के मुकाबले अकेले रुपये में ही गिरावट नहीं होने का तथ्य अपने कारोबार के सुचारू संचालन के लिए कच्चे माल या सेवाओं के आयात पर निर्भर रहने वाली भारतीय कंपनियों के लिए थोड़ा सा भी सुकून भरा नहीं हो सकता है। ये कंपनियां एक ऐसे समय में बढ़ती लागत की समस्या से जूझ रहीं हैं, जब महामारी के बाद की स्थिति में घरेलू मांग का एक टिकाऊ स्तर पर पहुंचना अभी भी बाकी है। आयात का बढ़ता खर्च भी पहले से ही लगातार बढ़ती मुद्रास्फीति से घिरी अर्थव्यवस्था पर मुद्रास्फीति के दबाव में और इजाफा करेगा तथा चढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने के मौद्रिक नीति निर्माताओं के प्रयासों को और अधिक जटिल बनाएगा।
इस साल 24 फरवरी को यूक्रेन पर रूस के हमले के मद्देनजर आई लगभग तमाम गिरावटों के साथ 2022 में अब तक डॉलर के मुकाबले रुपये में आठ फीसदी के अवमूल्यन ने कच्चे तेल की खरीद पर भारतीय खर्च में काफी हद तक हुई कमी और उसके युद्ध-पूर्व स्तरों के करीब पहुंच
जाने से मिले फायदों को बेजान कर दिया है। अगस्त में और इस महीने के अधिकांश वक्त तक स्थानीय परिसंपत्तियों की खरीद फिर से शुरू करने कमजोर डॉलर के बाद विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक भी पिछले दो सत्रों के दौरान एक बार फिर से भारतीय शेयरों और देनदारियों के शुद्ध विक्रेता बन गए हैं। नतीजतन, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने कुल निवेश के तीन लगातार वर्षों के बाद 2022 में अब तक कुल 20.6 बिलियन डॉलर मूल्य की भारतीय इक्विटी और देनदारियों से अपना हाथ खींच लिया है। और, फेडरल रिजर्व द्वारा कम से कम 125 आधार अंकों की और अधिक मौद्रिक सख्ती के अनुमान से इस वर्ष की अंतिम तिमाही में और अधिक संख्या में विदेशी निवेशकों के बाहर निकल जाने की आशंका है। रुपये की वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (आरईईआर) या इसके मूल्य के व्यापार-भारित औसत द्वारा भारतीय मुद्रा के अभी भी अधिमूल्यित होने या इसका मूल्य अधिक आंके जाने के संकेत के मद्देनजर भारतीय रिजर्व बैंक के दर निर्धारित करने वाले पैनल को अगले सप्ताह विकास की रफ्तार को बाधित किए बिना मूल्य स्थिरता को बहाल करने और रुपया को बहुत तेजी से कमजोर होने से बचाने के लिए जूझने के क्रम में तलवार की धार पर चलना होगा।
डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निचले स्तर पर रुपया, लेकिन दूसरी मुद्राओं से बेहतर
रुपया सोमवार को डॉलर के मुकाबले अपने रिकॉर्ड निचले स्तर 80.40 रुपए पर पहुंच गया। रुपया भले ही बहुत कमजोर नजर आ रहा हो लेकिन इसकी एक दूसरी तस्वीर भी है। इसी दौरान रुपया अन्य प्रमुख मुद्राओं ब्रिटिश पाउंड यूरो और जापानी येन के मुकाबले मजबूत भी हुआ है।
नई दिल्ली, स्कन्द विवेक धर। रुपया सोमवार को डॉलर के मुकाबले अपने रिकॉर्ड निचले स्तर 80.40 रुपए पर पहुंच गया। इस साल रुपया अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले 10% लुढ़क चुका है। इन आंकड़ों में रुपया भले ही बहुत कमजोर नजर आ रहा हो, लेकिन इसकी एक दूसरी तस्वीर भी है। इसी दौरान रुपया अन्य प्रमुख मुद्राओं ब्रिटिश पाउंड, यूरो और जापानी येन के मुकाबले मजबूत भी हुआ है। पाउंड के मुकाबले तो रुपए में 10 फीसदी की मजबूती आई है।
बहरहाल, पहले बात डॉलर के मुकाबले रुपए में आई रिकॉर्ड गिरावट की। एचडीएफसी सिक्युरिटी रिसर्च रिटेल के एनालिस्ट दिलीप परमार के मुताबिक, जेपी मॉर्गन ग्लोबल बॉन्ड इंडेक्स में भारत के बॉन्ड को शामिल करने में देरी, कच्चे तेल की कीमतों में तेज उछाल और भारतीय शेयर बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) के शुद्ध विक्रेता बनने के चलते रुपए में ये गिरावट आ रही है। परमार के मुताबिक, ब्याज दर में अंतर, कमोडिटी की कीमतों में उछाल और बढ़ते घाटे का असर निकट भविष्य में भारतीय रुपए पर पड़ सकता है।
लेकिन रुपए की यह गिरावट सिर्फ डॉलर के सामने है। अन्य प्रमुख विदेशी मुद्राओं पाउंड, यूरो और येन के मुकाबले रुपया मजबूत हुआ है। इस साल की शुरुआत में एक ब्रिटिश पाउंड की कीमत 100 रुपए से भी अधिक थी, जो अब 91.32 रुपए रह गई है। इसी तरह, यूरो जो इस साल जनवरी में 84.30 रुपए का था, अब 80 रुपए का रह गया है। 100 जापानी येन की कीमत जनवरी में 64.43 रुपए थी, जो अब 56.70 रुपए रह गई है।
आनंद राठी शेयर्स एंड स्टॉक ब्रोकर्स के डायरेक्टर (कमोडिटीज एंड करेंसीज) नवीन माथुर कहते हैं, रूस-यूक्रेन युद्ध, चीन वियतनाम तनाव जैसे भू-राजनैतिक कारणों से दुनिया की सभी करेंसी स्थिरता के लिए डॉलर को ट्रैक कर रही हैं। इधर, अमेरिकी केंद्रीय बैंक ब्याज दरें बढ़ा रहा है, जिससे डॉलर की मांग बढ़ रही है। इसके चलते, रुपए समेत अन्य करेंसियां डिप्रेसिएट हो रही हैं। लेकिन, हर देश की करेंसी को उसके फंडामेंटल्स भी प्रभावित कर रहे हैं। उदाहरण के लिए यूके की राजकोषीय हालत बहुत खराब है। उनका मिनी बजट बैक-फायर कर गया। इसके चलते पाउंड में रिकॉर्ड गिरावट आई कमजोर डॉलर है। ज्यादातर देशों में महंगाई से निपटने को प्राथमिकता दी जा रही है, जबकि ग्रोथ की बात सेकंडरी हो गई है।
कमोडिटी एडवायजरी फर्म केडिया कमोडिटीज के डायरेक्टर अजय केडिया भी माथुर से इत्तेफाक रखते हुए कहते हैं, डॉलर में जितनी तेजी आई है, उतनी ही अन्य मुद्राओं में गिरावट आई है। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते यूरोप पर एनर्जी संकट गहराया है। इसी वजह से पाउंड और यूरो में गिरावट आई है। येन की बात करें तो वहां भी अर्थव्यवस्था स्थिर नहीं है, हाल ही में वहां पूर्व-प्रधानमंत्री की कमजोर डॉलर हत्या हुई थी।
माथुर कहते हैं, इन सब के बीच भारत एक ब्राइट स्पॉट बना हुआ है। तमाम चुनौतियों के बीच हमारी ग्रोथ रेट इस साल 7% के करीब रहने की उम्मीद है। आरबीआई के पास मौजूद फॉरेक्स रिजर्व और अच्छी राजकोषीय नीति के चलते रुपया होल्ड कर रहा है। केडिया भी मानते हैं कि अन्य मुद्राओं के मुकाबले रुपए की स्थिति बेहतर है। उन्हाेंने कहा, हमारे यहां महंगाई कम है, हम किसी युद्ध का हिस्सा नहीं है। अर्थव्यवस्था में स्थिरता है। वर्तमान भू-राजनैतिक स्थिति को देखते हुए रुपए के 80.50 से 83.60 प्रति डॉलर के बीच रहने की उम्मीद है। आगे रुपए में मजबूती नजर आएगी।
रुपए को संभालने के लिए ये कदम उठाने की जरूरत
अर्थशास्त्री मनोरंजन शर्मा कहते हैं, डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत में गिरावट को रोकने के लिए जल्द ठोस कदम उठाने होंगे। कुछ कदम तो तुरंत उठाए जा सकते हैं।
- निर्यातकों को डॉलर की कमाई 5 दिन से अधिक होल्ड करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।
- एनआरआई अकाउंट (विदेशी मुद्रा) पर ब्याज दर बढ़ाया जाए तो डॉलर का प्रवाह बढ़ेगा।
- गैर जरूरी सामान पर आयात शुल्क बढ़ाने की आवश्यकता है।
- आरबीआई को बैंकों को अमेरिकी डॉलर फिक्स्ड डिपॉजिट ड्राइव चलाने की सलाह देनी चाहिए। इसकी मैच्य़ोरिटी छह माह से दो साल होनी चाहिए। इसके अनुसार ब्याज दर में बढ़ोतरी करनी चाहिए।
विश्व व्यापार में डॉलर से मुक्ति की मुहिम शुरू
डॉलर के अचानक मजबूत होने से कई देश अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलर के विकल्प पर विचार करने लगे हैं।
मौजूदा भू-राजनैतिक परिस्थितियों ने भी ग्लोबल ट्रेड का तरीका बदला है। यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण भारत और रूस रुपया-रूबल में व्यापार करने पर सहमत हुए हैं। चीन और रूस के बीच भी युआन-रूबल में कारोबार हो रहा है। ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) में रूस के प्रतिनिधि पावेल न्याजेव ने पिछले दिनों कहा कि संगठन नई रिजर्व करेंसी बनाने पर विचार कर रहा है। आपसी कारोबार में उसी करेंसी का इस्तेमाल होगा। हालांकि नई करेंसी का गठन अभी शुरुआती चरण में है, लेकिन डॉलर पर निर्भरता कम करने की गंभीर कोशिशें शुरू हो गई हैं। इसे ‘डि-डॉलराइजेशन’ कहा जा रहा है।